Home2011July (Page 38)

पहले वाली स्थितियों में ही बोर होकर मैं एक बार फिर पाँचवी यात्रा पर निकल पड़ा, जो मेरी पहले वाली चारों यात्राओं से भयानक रही| मगर इस बार मैं किसी किराए के जहाज़ पर नही गया बल्कि मैंने अपना ही एक जहाज़ खरीद लिया| इस यात्रा में मैंने अपने कुछ खास सौदागर साथियों को भी अपने साथ ले लिया| हमारा जहाज़ इस बार पूरब की ओर बढ़ा|

किसी समय वर्षा के मौसम में वर्षा न होने से प्यास के मारे हाथियों का झुंड अपने स्वामी से कहने लगा — हे स्वामी, हमारे जीने के लिए अब कौन- सा उपाय है? छोटे- छोटे जंतुओं को नहाने के लिए भी स्थान नहीं है और हम तो स्नान के लिए स्थान न होने से मरने के समान है।