अध्याय 62
1 [दुर]
सदृशानां मनुष्येषु सर्वेषां तुल्यजन्मनाम
कथम एकान्ततस तेषां पार्थानां मन्यसे जयम
Sanjaya said, “O chief of the Bharatas, Ganga’s son, once more addressingthy son who was plunged in thought, told him these delightful words,’Myself and
पहले वाली स्थितियों में ही बोर होकर मैं एक बार फिर पाँचवी यात्रा पर निकल पड़ा, जो मेरी पहले वाली चारों यात्राओं से भयानक रही| मगर इस बार मैं किसी किराए के जहाज़ पर नही गया बल्कि मैंने अपना ही एक जहाज़ खरीद लिया| इस यात्रा में मैंने अपने कुछ खास सौदागर साथियों को भी अपने साथ ले लिया| हमारा जहाज़ इस बार पूरब की ओर बढ़ा|
“Vaisampayana said, ‘They passed that night which was characterised byauspicious constellations even thus, O king, in that retreat of righteousascetics.
किसी समय वर्षा के मौसम में वर्षा न होने से प्यास के मारे हाथियों का झुंड अपने स्वामी से कहने लगा — हे स्वामी, हमारे जीने के लिए अब कौन- सा उपाय है? छोटे- छोटे जंतुओं को नहाने के लिए भी स्थान नहीं है और हम तो स्नान के लिए स्थान न होने से मरने के समान है।
“Sauti said, ‘And Takshaka, after this, answered, ‘If, indeed, thou artable to cure any creature bitten by me, then, O Kasyapa, revive thou thistree bit by me. O best of Brahmanas, I burn this banian in thy sight. Trythy best and show me that skill in mantras of which thou hast spoken.’
Kotika said, “Excellent lady, who art thou that standest alone, leaningon a branch of the Kadamva tree at this hermitage and looking grand likea flame of fire blazing at night time, and fanned by the wind?Exquisitely beautiful as thou art, how is it that thou feelest not anyfear in these forests?
“Sanjaya continued, ‘Then Drona, beholding Yudhishthira near himfearlessly received him with a thick shower of arrows.