Chapter 80
Sanjaya said, “Then when the sun assumed a red hue, king Duryodhana,desirous of battle, rushed towards Bhima from desire of slaying him.
Sanjaya said, “Then when the sun assumed a red hue, king Duryodhana,desirous of battle, rushed towards Bhima from desire of slaying him.
छठी यात्रा के बाद जब मेरा सम्बन्ध अमीर के मुल्क से जुड़ गया तो मैंने सोच लिया कि अब मैं जीवन में कभी यात्रा नही करुँगा और जो बेशुमार धन आज तक मैंने कमाया है, उसी के सहारे जीवन गुजारूँगा| दूसरी यात्राओं से तौबा करने वाली बात यह थी कि अब मेरा शरीर बुढ़ाने लगा था| हिम्मत और साहस की मुझमें कमी नही थी, मगर मेरा शरीर अब मुझे यात्राओं की इजाजत नही देता था| कुछ छोटे-मोटे रोग भी अब मुझ पर हावी होने लगे थे|
“Vaisampayana said, ‘The king, O chief of Bharata’s race, with thoseforemost of men, viz., his brothers, who were all possessed of eyes thatresembled lotus-petals, took his seat in the retreat of his eldest sire.
एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी। किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा, ”जो भी चाहते हो, मांग लो।”
“Sauti said, ‘Being thus addressed, and hearing that his sire was bearinga dead snake, the powerful Sringin burned with wrath. And looking atKrisa, and speaking softly, he asked him, ‘Pray, why doth my father beartoday a dead snake?’ And Krisa replied, ‘Even as king Parikshit wasroving, for purpose of hunting, O dear one, he placed the dead snake onthe shoulder of thy sire.’
Vaisampayana said, “O Bharata, Kotikakhya related to those princes whohad been waiting, all that had passed between him and Krishna.
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।
1 [स]
सैन्धवे निहते राजन पुत्रस तव सुयॊधनः
अश्रुक्लिन्न मुखॊ दीनॊ निरुत्साहॊ दविषज जये
अमन्यतार्जुन समॊ यॊधॊ भुवि न विद्यते
“Sanjaya said, ‘Beholding those Samsaptakas once more return to thefield, Arjuna addressed the high-souled Vasudeva, saying, ‘Urge thesteeds, O Hrishikesa, towards the Samsaptakas.
1 [वै]
तस्मिन नगेन्द्रे वसतां तु तेषां; महात्मनां सद वरतम आस्थितानाम
रतिः परमॊदश च बभूव तेषाम; आकाङ्क्षतां दर्शनम अर्जुनस्य