Home2011July (Page 34)

छठी यात्रा के बाद जब मेरा सम्बन्ध अमीर के मुल्क से जुड़ गया तो मैंने सोच लिया कि अब मैं जीवन में कभी यात्रा नही करुँगा और जो बेशुमार धन आज तक मैंने कमाया है, उसी के सहारे जीवन गुजारूँगा| दूसरी यात्राओं से तौबा करने वाली बात यह थी कि अब मेरा शरीर बुढ़ाने लगा था| हिम्मत और साहस की मुझमें कमी नही थी, मगर मेरा शरीर अब मुझे यात्राओं की इजाजत नही देता था| कुछ छोटे-मोटे रोग भी अब मुझ पर हावी होने लगे थे|

“Sauti said, ‘Being thus addressed, and hearing that his sire was bearinga dead snake, the powerful Sringin burned with wrath. And looking atKrisa, and speaking softly, he asked him, ‘Pray, why doth my father beartoday a dead snake?’ And Krisa replied, ‘Even as king Parikshit wasroving, for purpose of hunting, O dear one, he placed the dead snake onthe shoulder of thy sire.’

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।