अध्याय 111
1 [स]
तवात्मजांस तु पतितान दृष्ट्वा कर्णः परतापवान
करॊधेन महताविष्टॊ निर्विण्णॊ ऽभूत स जीवितात
1 [स]
तवात्मजांस तु पतितान दृष्ट्वा कर्णः परतापवान
करॊधेन महताविष्टॊ निर्विण्णॊ ऽभूत स जीवितात
पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशनगर में एक दर्जी रहता था जो अपनी दुकान में बैठकर कपड़े सीता था| एक दिन वह अपनी दुकान पर काम कर रहा था कि एक कुबड़ा एक दफ्म (बड़ी खंजरी जैसा बाजा) लेकर आया और उसकी दुकान के नीचे बैठकर गाने लगा| दर्जी उसका गाना सुनकर बहुत खुश हुआ|
मैं मिस्त्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ| मेरा बाप दलाल था| उसके पास काफ़ी पैसा हो गया| उसके मरने के बाद मैंने भी वही व्यापार आरंभ किया| एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार के लिए गया तो मुझे अच्छे कपड़े पहने एक आदमी मिला| उसने मुझे थोड़े-से तिल दिखाकर पूछा, “ऐसे तिल क्या भाव बिकते है?”
“Sauti said, ‘That best of snakes, viz., Vasuki, hearing the curse of hismother, reflected how to render it abortive. He held a consultation withall his brothers, Airavata and others, intent upon doing what they deemedbest for themselves.’
आत्म शुधि और आत्म समर्पण के लिए सत्यनारायण कथा सबसे आसान तरीका है| भगवान् सत्येनारायण जी सभी मनोकामना पूर्ण कर दुखों का नाश करते हैं| सत्यनारायण कथा हर प्रकार से हमे पवित्र कर वासना,क्रोध, लोभ, मोह,और अहंकार से हमे बचाती है|
“Dhritarashtra said, ‘Thou hast, O Sanjaya, described to me manyexcellent single combats. Hearing about them, I envy those that haveeyes.
1 [धृ]
यत तदा पराविशत पाण्डून आचार्यः कुपितॊ वशी
उत्क्वा दुर्यॊधनं सम्यङ मम शास्त्रातिगं सुतम
नुस्खा – पीपल, आंवला, हर्र, बहेड़ा और सेंधा नमक – सभी चीजें बराबर की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| फिर इसे शीशी में भरकर डॉक लगा दें ताकि सीलन न जाने पाए|
काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।।