अध्याय 62
1 [ज]
तवत्तः शरुतम इदं बरह्मन देवदानवरक्षसाम
अंशावतरणं सम्यग गन्धर्वाप्सरसां तथा
1 And when any one offereth an oblation of a meal-offering unto Jehovah, his oblation shall be of fine flour; and he shall pour oil upon it, and put frankincense thereon:
श्रीशत्रुघ्नजी का चरित्र अत्यन्त विलक्षण है| ये मौन सेवाव्रती हैं| बचपनसे श्रीभरतजीका अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख व्रत था| ये मितभाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान् श्रीरामके दासानुदास हैं| जिस प्रकार श्रीलक्ष्मणजी हाथमें धनुष श्रीरामकी रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार श्रीशत्रुघ्नजी भी श्रीभरतजीके साथ रहते थे|
कुछ संक्रामक रोगों के कारण शरीर पर फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं| प्रदूषित वातावरण भी फोड़े-फुंसियों को उत्पन्न करने का कारण बनता है| फोड़े-फुंसियों के निकलने पर उनमें खुजली-जलन होती है तथा रोगी बेचैनी महसूस करता है|
“Yudhishthira said, ‘Thou hast already explained to me, O grandsire, howthe religion of Yoga, which leads to the six well-known attributes, maybe adopted and practised without injuring any creature.
प्राचीन काल में उज्जयिनी नामक नगरी में मूलदेव नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह बहुत विद्वान एवं चतुर था| उसने शास्त्रार्थ में कई पंडितों एवं विद्वानों को परास्त कर रखा था| इसी कारण वह वेदों एवं शास्त्रों का प्रकांड पंडित माना जाने लगा था|
1 [स]
आमन्त्रये तवा नरदेव देव; गच्छाम्य अहं पाण्डव सवस्ति ते ऽसतु
कच चिन न वाचा वृजिनं हि किं चिद; उच्चारितं मे मनसॊ ऽभिषङ्गात