अध्याय 102
1 [य]
शरुतं मे भरतश्रेष्ठ पुष्पधूप परदायिनाम
फलं बलिविधाने च तद भूयॊ वक्तुम अर्हसि
“Tuladhara said, ‘See with thy own eyes, O Jajali, who, viz., those thatare good or those that are otherwise, have adopted this path of duty thatI have spoken of.
प्राचीन काल में पाटलिपुत्र में वररुचि नाम का एक विद्वान ब्राह्मण युवक रहता था| वह भगवान शिव का परम भक्त था और प्रतिदिन नियमपूर्वक भगवान शिव के मंदिर में जाकर उनकी आराधना किया करता था|
1 [ज]
जयेष्ठानुज्येष्ठतां तेषां नामधेयानि चाभिभॊ
धृतराष्ट्रस्य पुत्राणाम आनुपूर्व्येण कीर्तय
Sanjaya said, “The heroic Drona, that great bowman endued with theprowess of an infuriate elephant, that foremost of men possessed of greatmight,
“Vaisampayana said, ‘After Dushmanta had left the asylum having madethose promises unto Sakuntala, the latter of tapering thighs broughtforth a boy of immeasurable energy. And when the child was three yearsold, he became in splendour like the blazing fire.
“Draupadi said, ‘I shall now indicate to thee, for attracting the heartof thy husbands a way that is free from deceit.
एक बार काशी के निकट के एक इलाके के नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी दौलत का?‘ नानक ने कहा, ‘इसका जवाब उचित समय पर दूंगा।’ कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे थे।
इस रोग में आंखों की किसी एक पलक पर या कोने में एक फुन्सी निकल आती है| यह बंद गांठ-सी होती है| इसे छूने पर कड़ापन मालूम पड़ता है|