अध्याय 196
1 [वै]
ततॊ युधिष्ठिरॊ राजा मार्कण्डेयं महाद्युतिम
पप्रच्छ भरतश्रेष्ठ धर्मप्रश्नं सुदुर्वचम
1 [वै]
ततॊ युधिष्ठिरॊ राजा मार्कण्डेयं महाद्युतिम
पप्रच्छ भरतश्रेष्ठ धर्मप्रश्नं सुदुर्वचम
जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब शिष्यों ने आचार्य से दक्षिणा माँगने के लिए कहा| पहले तो आचार्य ने माँगना न चाहा, किन्तु शिष्यों के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने कहा, “कोई ऐसी चीज लाओ, जब कोई देखे नहीं|”
1 [य]
कथं स वै विपन्नश च कथं वै पातितॊ भुवि
कथं चानिन्द्रतां पराप्तस तद भवान वक्तुम अर्हति
“Jajali said, ‘This course of duty that thou, O holder of scales,preachest, closes the door of heaven against all creatures and puts astop to the very means of their subsistence.
प्राचीन काल में कान्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) नगर में शूरदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह सौ गांवों का स्वामी था|
Sanjaya said, “The mighty bowman (Alamvusha) the son of Rishyasringa, inthat battle, resisted Satyaki clad in mail and proceeding towardsBhishma.