अध्याय 112
1 [य]
असौम्याः सौम्य रूपेण सौम्याश चासौम्य दर्शिनः
ईदृशान पुरुषांस तात कथं विद्यामहे वयम
“Vyasa said, ‘There is a wonderful tree, called Desire, in the heart of aman. It is born of the seed called Error. Wrath and pride constitute itslarge trunk.
1 [दुर]
यद आह विरुदः कृष्णे सर्वं तत सत्यम उच्यते
अनुरक्तॊ हय असंहार्यः पार्थान परति जनार्दनः
1 [भस]
जामदग्न्येन रामेण पितुर वधम अमृष्यता
करुद्धेन च महाभागे हैहयाधिपतिर हतः
शतानि दश बाहूनां निकृत्तान्य अर्जुनस्य वै
Dhritarashtra said, “How did those bulls among men, viz., that greatbowman Drona, and Dhananjaya the son of Pandu, encounter each other inbattle?
“Janamejaya said, ‘O Brahmana, those thou hast named and those thou hastnot named, I wish to hear of them in detail, as also of other kings bythousands. And, O thou of great good fortune, it behoveth thee to tell mein full the object for which those Maharathas, equal unto the celestialsthemselves, were born on earth.’
Vaisampayana said, “Hearing the words of Yudhishthira, those bulls amongmen, headed by Bhimasena, rose up with faces beaming in joy.
बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे। राजा होने के नाते वे काफी दान आदि भी करते थे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर के रूप में फैलने लगी और पांडवों को इसका अभिमान होने लगा।
1 [देव]
कामं देवापि मां विप्र न विजानन्ति तत्त्वतः
तवत परीत्या तु परवक्ष्यामि यथेदं विसृजाम्य अहम
बहुत समय पहले की बात है, तब दक्षिण देश के कम्बुक नाम के नगर में एक ब्राह्मण रहता था| उसका नाम था – हरिदत्त|