Home2011May (Page 61)

एक बार डले गांव के रहने वाले सिक्ख भाई दीपा, नरायण दास व बुला गुरु जी के पास आए| उन्होंने गुरु जी के चरणों में प्रार्थना की कि हमारा जन्म-मरण का दुःख दूर हो जाए|

एक दिन गोंदे क्षत्रि ने गुरु जी के पास आकर प्रार्थना की, कि सच्चे पातशाह! मेरा गांव जो कि व्यास नदी के किनारे स्थित है, वहां भूतों का निवास है जिसके कारण वह गांव बस नहीं रहा|

श्री गुरु अंगद देव जी के सुपुत्र दासू और दातू श्री अमरदास की महिमा दूर-दूर होते देख ईर्ष्या से भर गए| वे गुरुगद्दी संभालने के लिए गोइंदवाल चल पड़े|

हरिपुर के राजा व रानी सावण मल की प्रेरणा से गुरु जी के दर्शन करने के लिए गोइंदवाल आए| सावण मल गुरु जी से बेनती की कि महाराज! हरिपुर का राजा अपनी रानी सहित आपके दर्शन करने आया है|

बाउली की खुदाई का कार्य चल रहा था| बाउली की खुदवाई जब पानी तक पहुंच गई तो आगे पत्थरों की कठोरता आ गई|

बाऊली का निर्माण कार्य समाप्त हो गया| श्री गुरु अमरदास जी ने 84 पौड़िया गिन कर वचन किया कि जो नर-नारी इन 84 पौड़ियों पर बाऊली में 84 बार स्नान करेगा व 84 बार जपुजी साहिब के चौरासी पाठ करेगा तो उसकी जन्म-मरण की चौरासी कट-जाएगी|

एक क्षत्रि प्रेमा जिसे कोहड़ था, उसकी कोई देखभाल करने वाला नहीं था| गुरु जी की महिमा सुनकर गोइंदवाल आ गया|

गुरु जी मरदाने के साथ बैठकर शब्द कीर्तन कर रहे थे तो अचानक अँधेरी आनी शुरू हो गई, जिसका गुबार पुरे आकाश में फ़ैल गया| इस भयानक अँधेरी में भयानक सूरत नजर आनी शुरू हो गई, जिसका सिर आकाश के साथ व पैर पाताल के साथ के साथ थे| मरदाना यह सब देखकर घबरा गया|

गुरु जी होती मरदान और नौशहरे से होते हुआ हसन अब्दाल से बहार पहाड़ी के नीचे आकर बैठ गए| उस पहाड़ी पर एक वली कंधारी रहता था जिसे अपनी करामातो पर बहुत अहंकार था| इसके साथ की पहाड़ी पर ही पानी का एक चश्मा निकलता था| गुरु जी ने उसका अहंकार तोड़ने के लिए मरदाने को उस पहाड़ी पर चश्मे का पानी लाने के लिए भेजा|

मक्के में मुसलमानों का एक प्रसिद्ध पूजा स्थान है जिसे काबा कहते है| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) रात के समय काबे की तरफ विराज गए तब जिओन ने गुस्से में आकर गुरु जी से कहा कि तू कौन काफ़िर है जो खुदा के घर की तरफ पैर पसारकर सोया हुआ है?