जेठा जी को लाहौर भेजना – साखी श्री गुरु अमर दास जी
श्री गुरु अमरदास जी ने अकबर बादशाह के बुलावे पर बाबा बुड्ढा जी व बुद्धिमान सिक्खों के साथ सलाह करके श्री रामदास जी को लाहौर जाने के लिए कहा|
श्री गुरु अमरदास जी ने अकबर बादशाह के बुलावे पर बाबा बुड्ढा जी व बुद्धिमान सिक्खों के साथ सलाह करके श्री रामदास जी को लाहौर जाने के लिए कहा|
इंग्लैंड के एक गांव में मार्शल नामक फलों का व्यापारी रहता था | उसका व्यापार बहुत अच्छा था | मार्शल का बेटा थामस पढ़-लिख कर अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था | वह खूब मेहनती और होशियार था | पिता को अपने पुत्र की काबिलियत पर गर्व था |
ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र ने शैव्या को अपने साथ चलने को कहा| तभी रोहिताश्व ने अपनी माँ का आंचल पकड़ लिया| यह देखकर विनम्र दिखने वाला ब्राह्मण चिल्लाया, “ऐ लड़के! साड़ी का पल्ला छोड़ दे| मैंने तेरी माँ को ख़रीदा है, तुझे नहीं|”
एक दिन अमरदास जी गुरु जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये| गिरने कि आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है?
“Vaisampayana continued, ‘Some time after, Bhishma the intelligent son ofSantanu set his heart upon getting Pandu married to a second wife.
गुरु जी अपने पुराने मित्रों को मिलने के लिए कुछ सिख सेवको को साथ लेकर हरीके गाँव पहुँचे| गुरु जी की उपमा सुनकर बहुत से लोग श्रधा के साथ दर्शन करने आए| हरीके के चौधरी ने अपने आने की खबर पहले ही गुरु जी को भेज दी कि मैं दर्शन करने आ रहा हूँ| गाँव का सरदार होने के कारण उसमे अहम का भाव था|
एक तपस्वी जो कि खडूर साहिब में रहता था जो कि खैहरे जाटो का गुरु कहलाता था| गुरु जी के बढ़ते यश को देखकर आपसे जलन करने लगा और निन्दा भी करता था| संवत १६०१ में भयंकर सूखा पड़ा| लोग दुखी होकर वर्षा कराने के उदेश्य से तपस्वी के पास आए| पर उसने कहना शुरू किया कि यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है|
कन्नौज के युद्ध में हारकर दिल्ली का बादशाह हमायूँ गुरु घर की महिमा सुनकर खडूर साहिब में सम्राट का वर प्राप्त करने के लिए आया| गुरु जी अपनी समाधि की अवस्था में मगन थे| पांच दस मिनट खड़े रहने पर भी जब उसकी और ध्यान नहीं दिया गया तो इसे उसने अपना निरादर समझा क्यूंकि उसे अपने बादशाह होने का अहंकार आ गया|
“Yudhishthira said, ‘Without doubt, O Sanjaya, it is true that righteousdeeds are the foremost of all our acts, as thou sayest. Thou shouldst,however, ensure me having first ascertained whether it is virtue or vicethat I practise.