अध्याय 134
1 [वै]
ततः सर्वाः परकृतयॊ नगराद वारणावतात
सर्वमङ्गल संयुक्ता यथाशास्त्रम अतन्द्रिताः
देवधर और मंगल की मित्रता ऐसी थी, जैसे दोनों एक ही शरीर के दो अंग हों | यदि एक को चोट लगती तो तकलीफ दूसरे को होती | वे दोनों बचपन से ही मित्र थे |
“Santanu asked, ‘What was the fault of the Vasus and who was Apava,through whose curse the Vasus had to be born among men? What also haththis child of thine, Gangadatta, done for which he shall have to liveamong men? Why also were the Vasus, the lords of the three worlds,condemned to be born amongst men? O daughter of Jahnu, tell me all.’
“–The Brahmana said, ‘The acts, good and bad, that a Jiva does are notsubject to destruction. Upon attainment of body after body, those actsproduce fruits corresponding with them.
“Salya said, ‘Then the goddess of Divination stood near that chaste andbeautiful lady. And having beheld that goddess, youthful and lovely,standing before her, Indra’s queen, glad at heart, paid respects to themand said, ‘I desire to know who thou art, O thou of lovely face.’
राजा हरिश्चंद्र के दरबार से जसने के उपरांत महर्षि वशिष्ठ से चुप नहीं रहा गया| वे गंभीर होकर विश्वामित्र से बोले, “ऋषिवर! आप यह ठीक नहीं कर रहे हैं| आपका वैर मुझसे है| यदि आपको परेशान करना है तो आप मुझे करें| महाराज से आपका व्यवहार ऋषि-परम्परा के विरूद्ध है|”
नुस्खा – सोंठ, नागरमोथा, भुनी हींग, चीता की जड़, अतीस तथा कुण्डा की छाल – सबको कूट-पीसकर कपड़छन कर चूर्ण बना लें|
Markandeya continued, “O Yudhishthira, the virtuous fowler, eminent inpity, then skilfully addressed himself again to that foremost ofBrahmanas, saying,
एक राजा हर समय ईश्वर की भक्ति में डूबा रहता था। उसकी इकलौती लड़की भी उसी की तरह धर्मानुरागी थी। राजा की इच्छा थी कि वह अपनी पुत्री का विवाह ऐसे युवक के साथ करे , जो उसी की तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो।