Home2011May (Page 18)

राजधानी लौटते समय मार्ग में राजा हरिश्चंद्र इस उधेड़-बुन में लगे हुए थे अपनी धर्मपत्नी शैव्या को अपने सर्वस्व दान  बात कैसे बताएंगे| उन्हें न तो स्वयं राज्य का लाभ था, न धन का लालच| परन्तु शैव्या और पुत्र रोहिताश्व की प्रतिक्रिया के बारे में वे अवश्य चिंतित थे|

पिछले 20 सालों से, उनका जीवन स्वाध्याय, ध्यान, प्रवचन, कथा वाचना, धार्मिक शिक्षा और लोगों के कल्याण के आसपास घूमता रहा है। वह हिंदू धर्म के आदर्शों का प्रचार करने के मिशन के साथ एक परोपकारी राष्ट्रीय संत हैं।