Chapter 173
“Arjuna continued, ‘Then firmly confident, the sovereign of thecelestials considering as his own, pertinently said these words unto mewounded by cleaving shafts, ‘All the celestial weapons,
“Arjuna continued, ‘Then firmly confident, the sovereign of thecelestials considering as his own, pertinently said these words unto mewounded by cleaving shafts, ‘All the celestial weapons,
“Utanka said, ‘Do thou, O Kesava, tell me that faultless Adhyatma. Havingheard thy discourse I shall ordain what is for thy good or denounce acurse to thee, O Janarddana.’
1 [स]
परिवर्तमाने तव आदित्ये तत्र सूर्यस्य रश्मिभिः
रजसा कीर्यमाणाश च मन्दी भूताश च सैनिकाः
एक गाँव की सच्ची घटना है| वहाँ एक मुसलमान के घर बालक हुआ, पर बालक की माँ मर गयी| वह बेचारा बड़ा दुखी हुआ| एक तो स्त्री के मरने का दुःख और दूसरा नन्हे-से बालक का पालन कैसे करूँ-इसका दुःख! पास में ही एक अहीर रहता था|
“Yudhishthira said, ‘How was Suka, the son of Vyasa, in days of old, wonover to Renunciation? I desire to hear thee recite the story. Mycuriosity in this respect is irrepressible.
1 [वैषम्पायन]
अभिषिक्तॊ महाप्राज्ञॊ राज्यं पराप्य युधिष्ठिरः
दाशार्हं पुण्डरीकाक्षम उवाच पराञ्जलिः शुचिः
देवीसहायका लड़का भगवती प्रसाद बीमार हो गया था| वह गरमी की दोपहरी में घर से चुपचाप आम चुनने भाग गया और वहाँ उसे लू लग गयी| उसे जोर से ज्वर चढ़ा था| देवीसहाय ने वैद्य जी को अपने लड़के की चिकित्सा के लिये बुलाया|