अध्याय 154
1 [ज]
आपगेयं महात्मानं भीष्मं शस्त्रभृतां वरम
पितामहं भारतानां धवजं सर्वमहीक्षिताम
“Dhritarashtra said, “I ask thee, O Sanjaya, in the presence of my boyand of these kings, what words were said by the illustrious Dhananjaya ofmight that knoweth no diminution,–that leader of warriors,–thatdestroyer of the lives of the wicked?’
जिन दिनों महाराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ का उपक्रम चल रहा था, उन्हीं दिनों रत्नपुराधीश्वर महाराज मयूरध्वज का भी अश्वमेधीय अश्व छुटा था, पाण्डवीय अश्व की रक्षा में श्रीकृष्ण, अर्जुन थे, उधर ताम्रध्वज ! मणिपुर में दोनों की मुठभेड़ हो गई| युद्ध में भगवदेच्छा से ही अर्जुन को पराजित करके ताम्रध्वज दोनों अश्वों को अपने पिता के पास ले गया| पर इससे महाराज मयूरध्वज के मन में हर्ष के स्थान पर घोर विषाद हुआ| कारण, वे श्रीकृष्ण के अद्वितीय भक्त थे|
Vaisampayana continued, “And when the night had passed, Yudhishthira thejust, arose and together with his brothers, performed the necessaryduties.
“Vaisampayana said, ‘As he of Vrishni’s race was proceeding to Dwaraka,those foremost princes of Bharata’s race, those chastisers of foesembraced him and fell back with their attendants.
शरीर बहुत ही प्यारा लगता है, पर यह जाने वाला है| जो जाने वाला है उसकी मोह-ममता पहले से ही छोड़ दें| यदि पहले से नहीं छोड़ी तो बाद में बड़ी दुर्दशा होगी| भोगों में, रूपये में, पदार्थों में, आसक्ति रह गयी, उनमे मन रह गया तो बड़ी दुर्दशा होगी| साँप, अजगर बनना पड़ेगा; भूत प्रेत, पिचाश आदि न जाने क्या-क्या बनना पड़ेगा!
यह एक वनस्पति है, जिसे सेनणा नाम से भी जाना है| इसके फूल और फल की सब्जी बनाकर खाई जाती है| इसकी पत्तियों में विटामिन-ए विशेष मात्रा में होता है, जो नेत्रों के लिए बहुत लाभकारी है|