अध्याय 110
1 [धृ]
दैवम एव परं मन्ये धिक पौरुषम अनर्थकम
यत्राधिरथिर आयस्तॊ नातरत पाण्डवं रणे
“Brahmana said, ‘Some regard Brahman as a tree. Some regard Brahman as agreat forest. Some regard Brahman as unmanifest.
भगवती गायत्री आद्यशक्ति प्रकृति के पाँच स्वरूपों में एक हैं| भगवान व्यास कहते हैं कि गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है| गायत्री चालीसा के नित्य पाठ से मनुष्य सभी रोग-दोष तथा आवागमन के बंधन से मुक्त होता है एवं धन-धान्य से परिपूर्ण होता है साथ ही उसकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं|
1 [य]
बरूहि पुत्रान कुरुश्रेष्ठ वर्णानां तवं पृथक पृथक
कीदृश्यां कीदृशश चापि पुत्राः कस्य च के च ते
1 [कॊटि]
का तवं कदम्बस्य विनम्य शाखाम; एकाश्रमे तिष्ठसि शॊभमाना
देदीप्यमानाग्निशिखेव नक्तं; दॊधूयमाना पवनेन सुभ्रूः
हरि तुम बहुत
हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हो .
साधन धाम विविध दुर्लभ तनु मोहे कृपा कर दीन्हो ..
“‘Yajnavalkya said, That which is without attributes, O son, can never beexplained by ascribing attributes to it.
1 Now the serpent was more subtle than any beast of the field which Jehovah God had made. And he said unto the woman, Yea, hath God said, Ye shall not eat of any tree of the garden?