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शिरडी में रहते हुए एक बार बाबा साहब की पत्नी श्रीमती तर्खड दोपहर के समय खाना खाने बैठी थीं| उसी समस दरवाजे पर एक भूखा कुत्ता आकर भौंकने लगा| श्रीमती तर्खड ने अपनी थाली में से एक रोटी उठाकर उस कुत्ते को डाल दी| कुत्ता उस रोटी को बड़े प्रेम से खा गया| उसी समय वहां एक कीचड़ से सना हुआ सूअर आया तो उसे भी उन्होंने रोटी दे दी| यह एक सामान्य घटना थी, जिसे वह भूल गयीं|

रहाता शिरडी की दक्षिण दिशा और नीम गांव उत्तर दिशा में बसा हुआ था| इन दोनों गांवों के मध्य में बसा था शिरडी| पर साईं बाबा अपाने पूरे जीवनकाल में इन दोनों गांव के बाहर कभी नहीं गए| न ही बाबा न रेलगाड़ी देखी थी और न ही उसमें कभी सफर ही किया था| फिर भी साईं बाबा को शिरडी से जाने वाली रेलगाड़ी के सही समय की जानकारी रहती थी|

शिरडी के पास के गांव में लक्ष्मीबाई नाम की एक स्त्री रहा करती थी| नि:संतान होने के कारण वह रात-दिन दु:खी रहा करती थी| जब उसको साईं बाबा के चमत्कारों के विषय में पता चला तो वह द्वारिकामाई मस्जिद में आकर वह साईं बाबा के चरणों पर गिरने ही वाली थी कि साईं बाबा ने तुरंत उसे कंधों से थाम लिया और बोले- “मां, यह क्या करती हो ?”

साईं बाबा ईशावतार थे| सिद्धियां उनके आगे हाथ जोड़कर खड़ी रहती थीं| पर बाबा को इन बातों से कोई मतलब नहीं था| बाबा सदैव अपनी फकीरी में अलमस्त रहते थे| बाबा, जिनकी एक ही नजर में दरिद्र को बादशाहत देने की शक्ति थी, फिर भी वे भिक्षा मांगकर स्वयं का पेट भरते थे| भिक्षा मांगते समय बाबा कहा करते थे – “ओ माई ! एक रोटी का टुकड़ा मुझे मिले|”