87 – जादुई संदूक | Jadui Sandook | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
नैरेटर:- पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि करण और उसके सभी दोस्तों को वह संदूक मिल गया था, जिसके अंदर वह चारों सामग्रियां थी। उसके बाद वे सभी जंगल में सो गए थे, परंतु जब लव सुबह सो कर उठता है तो उसे संदूक अपने आसपास वह कहीं भी नहीं दिखता, तो वह इस बात से बहुत ज्यादा घबरा जाता है।
नैरेटर:- रात को सभी वहां पर सो गए थे, जब लव को संदूक कहीं नहीं दिखती, तो वह सभी को उठा देता है।
लव:- कल रात को तो वह यहीं पर थी, आखिर अब यह संदूक कहां गायब हो गया।
टॉबी:- तुम चिंता मत करो, लव वह संदूक कहीं नहीं गयी है, यहीं पर है।
लव:- परंतु मैंने तो हर जगह देख लिया मुझे तो कहीं पर भी नहीं मिली। यह देखो टॉबी यहां पर संदूक कहीं भी नहीं है।
नैरेटर:- उसके बाद टॉबी उस वृक्ष के पीछे जाकर एक गड्ढा खोदने लगता है और उसमें से संदूक बाहर निकाल कर ले आता है।
टॉबी:- यह देखो लव संदूक यहीं पर है तुम्हें कल रात संदूक की बहुत ज्यादा चिंता हो रही थी इसलिए मैंने इसे गड्ढे में छुपा दिया था ताकि कोई इसे उठाकर ना ले जाए।
बुलबुल:- शुक्र है कि संदूक यही पर था, नहीं तो मुझे लगा कि हमें फिर से इसे ढूंढना पड़ता।
लव:- हां बुलबुल हमने इतने राक्षसों का सामना करके इतनी मुश्किल से संदूक को हासिल किया है। मैं अब और राक्षसों का सामना नहीं करना चाहता, चलो अब हम जल्दी से वापस घर चलते हैं।
करमजीत:- हां हमें अब अपना आगे का सफर शुरू कर देना चाहिए क्योंकि हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना हैं।
शुगर:- तुम सही कहते हो करमजीत हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना है। मैं घर जाकर आराम करना चाहती हूं।
नैरेटर:- उसके बाद वे सभी अपनी आगे की यात्रा आरंभ कर देते हैं। फिर वे वापस उस गांव में पहुंच जाते हैं।
करण:- देखो दोस्तों हम पहुंच गए।
तेजिंद्र सिंह:- ओहो पुत्तर जी मजा आ गया। हम वापस घर आ गए। चलो जी अंदर चलते ऐ जी।
नैरेटर:- फिर मुनी भी अपने घर से बाहर आ जाता है। वह सभी को आता देखकर बहुत खुश हो जाता है और दौड़कर उनके पास आ जाता है।
मुनी:- वाह मित्रों तुम सब वापस आ गए। मैं बहुत ही ज्यादा खुश हूं कि तुम सभी सही सलामत हो।
लव:- हां मुनी मैं भी घर वापस आकर बहुत ज्यादा खुश हूं। अब मैं कुछ दिन आराम से सो सकूंगा।
मुनी:- लगता है तुम कई दिनों से सोए नहीं हो। कोई बात नहीं अब आप सब अंदर चलिए और अंदर चलकर आराम कीजिए।
बुलबुल:- मुनी जी बाकी सभी कहां पर है और सुनीता जी और सितारा वह दोनों भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
मुनी:- आप सभी पहले अंदर चलिए।
नैरेटर:- उसके बाद वे सभी अंदर चले जाते हैं। फिर उसके बाद सुनीता वहां पर सितारा को लेकर आ जाती है। सितारा घर के बाहर आंगन में मिट्टी खा रहा था इसीलिए वह उसे डांट रही थी परंतु जैसे ही वह सभी को अपने सामने देखती है तो वह बहुत प्रसन्न हो जाती है।
(सितारा मिट्टी खा रहा था और उसके चेहरे पर भी मिट्टी लगी हुई है, मिट्टी से उसके हाथ भी गंदे हो रखे हैं। सुनीता के हाथ में एक छोटा सा पतला सा डंडा है, जिसे सितारा को दिखाकर वह डांट रही थी और हल्का सा गुस्से में थी।)
सुनीता:- (खुश होते हुए) ओए जी आप सभी वापस आ गए जी, कद्दू काट के।
लव:- नहीं सुनीता जी, हम कद्दू काट के वापस नहीं आए है, हम तो राक्षसों को मार कर वापस आए हैं।
(लव की यह बात सुनकर सभी हंसने लगते हैं।)
सुनीता:- लव पुत्तर तुसी वी ना। अजी मैंनु आप सभी को देखकर वहोत खुशी हो रही है जी।
तेजिंद्र सिंह:- अजी सुनीता जी आप कैसी हैं? आप ठीक तो है ना?
सुनीता:- अजी मैंनु की होएगा, मैं तो बिल्कुल ठीक हूं। आप दस्सों जी आप तो ठीक हो ना और पुत्तर आप सब वी ठीक तो हो ना।
तेजिंद्र सिंह:- हम भी बिल्कुल ठीक है जी।
सुनीता:- आप सवी नु उत्तथे किन्नी सारी मुश्किलों दा सामना करना पड़ा होगा ना जी।
लव:- पता है सुनीता जी वहां पर पहले राक्षस ने तो मुझे और करमजीत को निगल लिया था।
सुनीता:- औए जी फिर की होया सी। फिर तुसी उसके पेट तो वाहर निकले कि नहीं।
तेजिंद्र सिंह:- सुनीता जी तुसी ऐ की गल कर रहे ओ, ऐ वाहर नी निकले होंदे, तो इथ्थे कैसे ओंदे जी।
सुनीता:-(हंसते हुए) अजी मैं ता मजाक कर रही सी, कद्दू कट के।
(उसके बाद सभी हंसने लगते हैं)
सुनीता:- लव पुत्तर आगे दस्सों, फेर की होया।
लव:- उसके बाद तेजिंद्र सिंह जी ने हमें बचाया। उन्हें भी राक्षस ने निघल लिया था। फिर उन्होंने अपने चाकू की सहायता से उस राक्षस के पेट में वार किया। फिर वह राक्षस वहां से गायब हो गया और इस तरह तेजिंद्र सिंह जी ने हम सबको बचा लिया।
सुनीता:- अजी यह तो बढ़िया हुआ। कद्दू काट के।
नैरेटर:- उसके बाद लव सुनीता को सारे किस्से सुनाता है कि किस तरह उन्होने सभी राक्षसों का सामना किया और आखिर में वह किस तरह मॉम की तरह पिघल रहे थे। वह उन्हें शुरू से लेकर आखिरी तक सब बताता है।
सुनीता:- अजी पुत्तर तुम सभी ने बहुत हिम्मत से काम किया है। तुम सव नु कितनी मुसीबतो दा सामना करना पडा। तुम सव ठीक तो होना पुत्तर जी?
बुलबुल:- जी सुनीता जी हम सब भी बिल्कुल ठीक है। आपको सितारा ने पीछे से ज्यादा परेशान तो नहीं किया।
सुनीता:- अजी पुत्तर तोहानु हुण मैं की दस्सा जी।
(अपना सिर ना में हिलाते हुए कहती है।)
लव:- लगता है सितारा ने आपको बहुत ज्यादा परेशान किया है।
शुगर:– परंतु सितारा है कहां पर अभी तो वह यहीं पर था।
कुश:- वह अभी ही बाहर गया है।
सुनीता:- वो जरूर फिर से मिट्टी खान वास्ते ई बाहर गया होगा। मैं अवी औसनु लेकर आंदी आं जी। कद्दू काट के।
नैरेटर:- उसके बाद सुनीता फिर से सितारा को डांटते हुए वापस अंदर लेकर आती है तब सितारा बहुत ज्यादा रोने लगता है।
सितारा:- (रोते हुए) मुझे..बाहर.. जाना.. है।
सुनीता:- नहीं पुत्तर मिट्टी खाना अच्छी बात नहीं होती, यह बहुत गंदी होती है जी। कद्दू काट के।
सितारा:- नहीं कद्दू अच्छा नहीं होता, छी छी। मिट्टी बहुत अच्छी होती है।
(सितारा के ऊपर सब हंसने लगते हैं।)
बुलबुल:- सितारा तो बिल्कुल बच्चों वाली हरकतें कर रहा है।
लव:- अरे बुलबुल क्या तुम भूल गई की सितारा को यही तो श्राप मिला है, इसे तुड़वाने के लिए ही तो हम सब इतनी मेहनत कर के आए हैं।
बुलबुल:- नहीं लव मुझे सब याद है मैंने तो बस ऐसे ही कहा। अच्छा बाबा जी कहां पर है हमें उन्हें यह सामग्रियां दिखानी थी।
मुनी:- बाबा तो किसी काम से बाहर गए हैं, वह शाम तक वापस आ जाएंगे।
करण:- कोई बात नहीं तब तक हम सभी थोड़ा आराम कर लेते हैं।
सुनीता:- पहले पुत्तर तुम सभी खाना खा लो।
तेजिंद्र सिंह:- हां जी सुनीता जी तुसी जल्दी से खाना लगाओ, मैंनु वहोत जोरो से भूख लग रही ऐ जी।
सुनीता:- हां जी मैं अवी लाई कद्दू काट के।
तेजिंद्र सिंह:- सुनीता जी तुसी कद्दू काट के मत लाना जी। (हंसते हुए)
सुनीता:- अजी अब आप भी शुरू हो गए।
नैरेटर:- उसके बाद सभी खाना खाने बैठ जाते हैं।
लव:- कितने दिनों बाद घर का खाना नसीब हुआ है।
कुश:- तुम बिल्कुल सही कह रहे हो लव। घर का खाना खाकर तो मन खुश हो गया।
नैरेटर:- उसके थोड़ी देर बाद शाम हो जाती है, तब बाबा भी वापस घर आ जाते हैं।
बाबा:- आप सभी अपनी यात्रा पूरी कर के वापस आ गए हैं।
करण:- जी बाबा हम सभी वह संदूक भी अपने साथ लेकर आए है, उसके अंदर चारों सामग्रियां भी है।
बाबा:- ठीक है बच्चों, तुम सभी ने फिर से बहादुरी दिखाई है।
करण:- बाबा अब हमें हवन किस समय करना है जिससे जल्दी से सितारा का श्राप टूट जाए।
बाबा:- हम कल सुबह ही हवन आरंभ कर देंगे परंतु याद रहे की हवन में सितारा को जरूर उपस्थित होना होगा और उसे कोई भी शरारत नहीं करनी होगी, क्योंकि अगर हवन भंग हो गया तो इसका श्राप कभी भी नहीं टूट सकेगा।
बुलबुल:- परंतु बाबा सितारा का दिमाग तो बिल्कुल बच्चे जैसा हो गया है वह तो शांति से बैठ ही नहीं सकता भला यह कैसे संभव होगा।
लव:- बुलबुल तुम सही कहती हो, यह तो हमारे लिए बहुत ही कठिन कार्य होने वाला है।
करण:- परंतु बाबा सितारा तो बहुत ही चंचल है उसका हवन में शांति से बैठना तो बहुत ही मुश्किल है। क्या इसका कोई दूसरा उपाय नहीं है?
बाबा:- नहीं यह हवन सितारा के लिए ही हो रहा है अगर वह इस हवन में उपस्थित नहीं होगा तो इस हवन का कोई फायदा नहीं होगा।
शुगर:- इसका मतलब अगर सितारा हवन में शांति से नहीं बैठा, तो वह कभी भी अपने इस श्राप से मुक्त नहीं हो सकेगा, यह तो बड़ी समस्या हो जाएगी। अब हम सभी क्या करेंगे?
करमजीत:- क्यों ना हम सभी सितारा को रस्सी से बांध दे ताकि वह कहीं पर भी ना जा सके।
करण:- अगर करमजीत हम उसे रस्सी से बांध देंगे तो बहुत बहुत ज्यादा रोएगा, जिसकी वजह से हवन भंग होगा।
टॉबी:- क्यों ना करण हम सितारा के मुंह पर भी कपड़ा बांध दे ताकि उसके रोने की आवाज ना आ सके।
करण:- नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हवन लंबा चलेगा। साथ ही अगर हम ऐसा करेंगे तो सितारा को बहुत ज्यादा तकलीफ होगी।
लव:- सही कहा तुमने, यह तो हम सभी के लिए बहुत ही बड़ी चुनौती होने वाली है।
बाबा:- आप सभी जो संदूक लेकर आए हैं कृपया करके मुझे दिखाइए, मैं उन सामग्रियों को देखना चाहता हूं।
करण:- जी बाबा मैं अभी वह संदूक लेकर आता हूं।
नैरेटर:- उसके बाद करण वहां से संदूक लेने चला जाता है। फिर वह संदूक लेकर आता है और बाबा को दे देता है।
बाबा:- करण बेटा इस संदूक की चाबी कहां पर है?
करण:- वह चाबी तो लव के पास थी। लव इस संदूक की चाबी तुमने कहां पर रख दी?
लव:- करण वह चाबी तो वही संदूक के पास ही रखी थी।
करण:- लव मुझे वह चाबी कहीं पर भी नहीं मिली है।
लव:- परंतु ऐसा कैसे संभव है मैंने तो चाबी वहीं पर रखी थी।
बुलबुल:- कोई बात नहीं हम सभी मिलकर उस चाबी को ढूंढते हैं।
नैरेटर:- फिर करण और उसके सभी दोस्त मिलकर उस चाबी को ढूंढने लगते हैं, परंतु किसी को भी वह चाबी कहीं पर भी नहीं मिलती।
करमजीत:- अगर हमें वह चाबी नहीं मिली तो, हम सब क्या करेंगे? हम उस चाबी के बिना संदूक को भी नहीं खोल सकते और कल सुबह ही हमें हवन भी करना है। हमारे पास बहुत ही कम समय है, हम सभी को जल्दी से जल्दी उस चाबी को ढूंढना होगा।
बाबा:- बच्चों तुम सभी को इस तरीके से संदूक के मामले में लापरवाही नहीं करनी चाहिए थी। तुम्हें पता है कि यह संदूक हमारे लिए इस समय बहुत ज्यादा कीमती है तो उसकी चाबी भी संभाल कर रखनी चाहिए थी।
करण:- जी बाबा हमें क्षमा कर दीजिए। हम वह चाबी अभी अवश्य ढूंढ कर रहेंगे।
बाबा:- ठीक है, मैं अभी हवन की बाकी की सामग्रियां लेकर आता हूं। जिसकी हमें कल सुबह हवन में जरूरत पड़ेगी।
नैरेटर:- उसके बाद बाबा वहां से चले जाते हैं और बाकी सभी संदूक की चाबी ढूंढने लगते हैं, परंतु वे इसमें नाकामयाब रहते हैं।
मुनी:- आप सभी जो चाबी ढूंढ रहे हैं। आपको वह चाबी इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली। उसके लिए आपको थोड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा।
नैरेटर:- आखिर वह संदूक की चाबी कहां गायब हो गई थी और क्या कल सितारा हवन में शांति से बैठ पाएगा, क्या करण और उसके सभी दोस्त मिलकर सितारा का श्राप तुड़वाने में कामयाब हो पाएंगे। यह सब जानने के लिए बने रहियेगा तीलीस्मी कहानी के अगले एपिसोड तक।