Homeतिलिस्मी कहानियाँ86 – मोम का राक्षस | Mom ka Rakshas | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

86 – मोम का राक्षस | Mom ka Rakshas | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

नैरेटर:- पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि करण और उसके सभी दोस्त उस महल में थे और जब वह खाना खाकर रात को सोने लगे, तब उनका शरीर पिघलना शुरू हो गया था।

नैरेटर:- उसके बाद करण और उसके सभी दोस्त पूरे महल में छान-बिन करने लग जाते हैं कि आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है और वह इस मुसिबत से कैसे बाहर निकल सकते हैं?

शुगर:- दोस्तों अब हम सब क्या करेंगे? मुझे तो बहुत डर लग रहा है, मुझे नहीं लगता कि हम सभी बच पाएंगे, हम तो बिल्कुल मॉम की तरह पिघल जाएंगे।

टॉबी:- शुगर तुम चिंता मत करो हम सभी करण के साथ मिलकर इस मुसीबत का भी हल अवश्य निकाल लेंगे।

करण:- दोस्तों तुम सभी चिंता मत करो तुमने हमेशा हर मुसीबत का सामना किया है, तो हम इस मुसीबत का भी सामना कर लेंगे।

बुलबुल:- मुझे भी नहीं लगता कि इस बार हम इस मुसीबत से बच पाएंगे क्योंकि अगर हमारा शरीर ही हमारा साथ नहीं देगा तो हम इस मुसीबत का सामना भला कैसे कर सकेंगे? हमारा तो शरीर भी पिघल रहा है, अगर हमारा शरीर ही नहीं रहेगा तो हम इस मुसीबत से बाहर कैसे निकल सकेंगे?

करमजीत:- बुलबुल तुम चिंता मत करो।

तेजिंद्र सिंह:- अजी पुत्तर तुम सभी चिंता मत करो। करण पुत्तर क्यों ना हम सभी उस कमरे में चले। जित्थे ओ सारी मॉम दी मुर्ती बनी हुई सी, ओ जी की पता हमें वहां पर कोई सुराग ही मिल जाए।

करण:- पाजी आप बिल्कुल सही कहते हो, हमें वहीं पर चलना चाहिए।

नैरेटर:- उसके बाद करण और उसके सभी दोस्त उस कमरे में चले जाते हैं। फिर जब वे उस कमरे में जाते हैं, तब उन्हें वहां पर बहुत सारी मॉम की मुर्तियां दिखती है।

करण:- दोस्तों हमें इन सभी की जांच करनी होगी क्योंकि शायद उन्होने हमारी मुर्ती भी बना कर इसी कमरे में रखी हो और उसे जलाया हो जिसकी वजह से शायद हम पिघल रहे हैं। अगर हम अपनी मुर्तियां ढूंढ कर उनकी आग बुझा देंगे तो शायद हमारा भी पिघलना बंद हो जाएंगा।

नैरेटर:- उसके बाद सभी उस कमरे में मुर्तियां ढूंढने लगते हैं।

लव:- मुझे तो हमारी मुर्तियां कहीं दिख ही नहीं रही है।

कुश:- यह देखो मुझे हमारी मुर्तियां मिल गई है।

बुलबुल:- (खुश होते हुए) क्या कहा कुश? क्या तुम्हें सच में हमारी मुर्तियां मिल गई है। शुक्र है अब हम सभी बच सकते हैं।

करण:- तुम सही कहते हो यह तो हम सभी की मुर्तियां है, चलो अब हम इसे बुझा देते हैं।

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी उस मॉम की मुर्ती को बुझाने की कोशिश करते हैं, परंतु वह उसके बाद भी जलती ही रहती है।

कुश:- (वह उनकी मॉम की मुर्ती पर बार-बार फूंक मारता है।) परंतु यह तो बुझ ही नहीं रही है, अब हम क्या करेंगे?

टॉबी:- हमें इसे पानी से बुझाने की कोशिश करनी चाहिए।

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी उन्हें पानी की सहायता से भी बुझाने की कोशिश करते हैं परंतु वे फिर से उन्हें बुझाने में नाकामयाब होते हैं।

बुलबुल:- हे भगवान अब हम भला क्या करेंगे? मुझे लगा था कि हमारी यह समस्या हल हो जाएगी। परंतु मुझे तो अब पूर्ण विश्वास हो चुका है कि हम नहीं बचने वाले।

करण:- रुको दोस्तों शायद मैं जानता हूं कि हम इस मुसीबत से कैसे बाहर निकल सकते हैं।

करमजीत:- कहो करण हमें क्या करना होगा?

(वहीं पर उस कमरे में थोड़ी दूर एक राक्षस और राक्षसी की बड़ी सी मॉम की मुर्तीयां होती है।)

करण:- मुझे पहले से ही यहां पर कुछ गड़बड़ लग रही थी और अब मुझे पूरा यकीन हो चुका है कि यह सब जरूर उन राक्षसों की ही चाल होगी। अगर हम राक्षस की इन दोनों मूर्तियों को जला दें तो शायद उसके बाद हम उनके इस जाल से बाहर आ सकते हैं।

टॉबी:- करण क्या तुम्हें पूरा यकीन है कि ऐसा करने से हम सभी बच जाएंगे?

करण:- मैं पूरे यकीन के साथ तो नहीं कह सकता लेकिन हमारे पास और कोई रास्ता भी नहीं है। हमें एक बार प्रयास अवश्य करना चाहिए।

शुगर:- अगर हम इसमें कामयाब नहीं हो पाए तो हमारा क्या होगा करण?

करमजीत:- तुम सभी घबराओ मत, भगवान पर भरोसा रखो, सब ठीक ही होगा।

टॉबी:- परंतु करण एक बात सोचो कि हमारी मॉम की मुर्तीयां तो इतनी छोटी है और इनके जलने के बाद भी हम इतनी धीरे पिघल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इन दोनों राक्षसों की मुर्तियां तो कितनी ज्यादा बड़ी है। तो इन्हें पिघलने में तो हमसे भी ज्यादा समय लगेगा।

करण:- तुम बिल्कुल सही कहते हो इसलिए हमें कुछ और करना होगा, जिससे यह मूर्तियां जल्दी से जल्दी पिघल जाए। हमें इन मुर्तियों को आग में डाल देना चाहिए ताकि यह जल्दी से पिघल जाए।

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी उस राक्षस और राक्षसी की मूर्तियां उठाकर दूसरे कमरे की तरफ चले जाते हैं। वहां पर कोने में आग जल रही थी जिसमें वह सभी उन दोनों मोतियों को उस आग में डाल देते हैं।

करमजीत:- अब शायद इन राक्षसों का खात्मा जल्दी ही हो जाएगा।

लव:- हां तुम बिल्कुल ठीक कहते हो करमजीत।

नैरेटर:- जैसे ही उन राक्षसों की मूर्तियां जल्दी से जलकर पिघलने लगती है वैसे ही उस कमरे में वह बूढ़ा व्यक्ति और बूढी औरत वहां पर आ जाते हैं। वे दोनों दर्द से बहुत ज्यादा तड़प और चिल्ला रहे थे।

(जब वे दोनों बूढ़ा व्यक्ति और उस बूढी औरत का शरीर पिघल रहा होता है और वह दर्द में चिल्ला रहे थे तभी वह चिल्लाते हुए एक भयंकर राक्षस का रूप ले लेते हैं।)

बूढ़ा व्यक्ति:- बस करो, तुमने ऐसा क्यों किया मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।

बुढ़ी औरत:- आआ……. मुझे बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है, उन मुर्तियों को उस आग से बाहर निकालो।

लव:- भला हम क्यों बाहर निकलेंगे। तुमने भी तो हमारे साथ यही किया था।

(उसके बाद वह बुढा़ व्यक्ति और बूढी औरत अपनी मूर्तियों को उस आग से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, परंतु वह और भी ज्यादा तेजी से पिघलने लगते हैं और आखिर में उनका शरीर वहां पर एक तेज रोशनी के बाद वहां से गायब हो जाता है और बाकी सभी का शरीर पिघलना बंद हो जाता है।)

शुगर:- वाह हम सभी तो फिर से ठीक हो गए हैं। येएएएए……

टॉबी:- हां शुगर तुम बिल्कुल ठीक कहती हो। अब हम सभी फिर से ठीक हो चुके हैं।

लव:- हां अब मैं भी बहुत ज्यादा खुश हूं।

(उसके बाद सभी खुशी में झुमने लगते हैं।)

बुलबुल:- भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि हम सभी इस मुसीबत से फिर से बाहर आ गए।

तेजिंद्र सिंह:- अजी पुत्तर बिल्कुल जी, करण पुत्तर ने हमें इस मुसीबत से बाहर निकाला है। परंतु एक बात तो माननी पड़ेगी।

लव:- कौन सी बात पाजी।

तेजिंद्र सिंह:- यही बात की करण पुत्तर कभी भी हार नहीं मानता जी। चाहे उसके सामने कितनी ही बड़ी मुसीबत क्यों ना हो, वह उस समय समझदारी से काम लेता है और उसका हल निकालने की कोशिश करता है।

लव:- पाजी आप बिल्कुल सही कह रहे हो।

करण:- इसमें आप सभी का भी पूरा सहयोग है। अगर आप सभी नहीं होते तो, मैं अकेला कुछ भी नहीं कर पाता। अब हम सभी को यहां से चलना चाहिए।

करमजीत:- हम सभी ने उन चारों राक्षसों का सामना कर लिया है। इसके आगे हमें क्या करना है?

करण:- अब हमें वह संदूक ढूंढनी है, जिसके अंदर वह चारों सामग्रियां होंगी।

बुलबुल:- बाबा ने तो कहा था कि उन चारों राक्षसों का सामना करने के बाद ही हमें उस संदूक की चाबी मिल जाएगी। परंतु अब हम उस चाबी को कहां ढूंढेंगे और वह संदूक भी हमें कहां मिलेगी?

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी पूरे महल की तलाश करने लगते हैं, तब उन्हें वहां पर एक छोटा सा कमरा नजर आता है।

लव:- दोस्तों अभी तक हमने इस कमरे की छानबीन नहीं करी है चलो हम इसके अंदर चलकर देखते हैं।

कुश:- हां चलो चलते हैं।

नैरेटर:- उसके बाद करण और उसके सभी दोस्त उस कमरे के अंदर चले जाते हैं। वहीं पर सामने एक संदूक रखा होता है। (जो की बहुत ज्यादा चमक रहा था)

शुगर:- यह संदूक तो बहुत ज्यादा चमक रहा है।

तेजिंद्र सिंह:- परंतु इसकी चाबी कहां पर है? हमें अभी इस कमरे की भी तलाश करनी होगी।

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी उस कमरे की छानबीन करने लगते हैं।

बुलबुल:- देखो दोस्तों मुझे यहां पर एक छोटा सा बक्सा मिला है।

लव:- बुलबुल उसे खोल कर देखो कि उसके अंदर क्या है?

(बुलबुल बक्सा खोलती है, उसके अंदर से चाबी निकलती है।)

शुगर:- अरे बुलबुल इसके अंदर तो चाबी थी। आखिर तुमने चाबी को ढूंढ ही लिया।

बुलबुल:- चलो अब हम इस बंदूक को खोलकर देखते हैं।

टॉबी:- हां हमें अच्छे से छानबीन करनी चाहिए कहीं ऐसा ना हो कि हमें यहां से जाने के बाद यह पता चले कि यह चाबी तो इस संदूक की थी ही नहीं या फिर इसके अंदर सामग्री ही नहीं थी और हमारी सारी मेहनत खराब हो जाती।

करण:- नहीं नहीं टॉबी तुम चिंता मत करो। हम पूरी तसल्ली करने के बाद ही यहां से वापस जाएंगे।

लव:- सही बात है, मैं यहां पर फिर से वापस नहीं आना चाहता।

नैरेटर:- उसके बाद सभी उस बंदूक को खोल लेते हैं और उसके अंदर बहुत अलग-अलग तरह की सामग्रियां थी जो की बहुत ही तेज रोशनी में चमक रही थी। (कुछ जड़ी बूटियों और लकड़ियों के टुकड़े)

करमजीत:- अब हमें संदूक भी मिल गई है अब हम सभी को वापस जाने के लिए अपनी यात्रा आरंभ कर देनी चाहिए।

टॉबी:- हां करमजीत तुम बिल्कुल सही कहते हो। हम जल्दी से वापस चलते हैं ताकि हम फिर से अपने समय में वापस पहुंच सके। हम सब यहां पर इतने बड़े लग रहे हैं, मैं फिर से वापस छोटा होना चाहता हूं।

करण:-(हंसते हुए) बेशक टॉबी तुम भविष्य में आकर बड़े हो गए हो परंतु हरकतें तुम्हारी अभी भी बच्चों वाली ही है।

टॉबी:- नहीं करण ऐसा नहीं है, मैं यहां आकर बड़ा होने के बाद बहुत ही समझदार बन गया हूं।

लव:- इसका मतलब तुम यह बात मानते हो कि तुम पहले समझदार नहीं थे और यहां पर आने के बाद हुए हो।

टॉबी:- (चिड़ते हुए) नहीं ऐसा नहीं है।

नैरेटर:- उसके बाद सभी हंसने लगते हैं और फिर से वह अपनी वापस जाने की यात्रा आरंभ कर देते हैं। फिर वे सभी उस महल से बाहर आकर जंगल की ओर बढ़ने लगते हैं। तब धीरे-धीरे शाम ढलने लगती है।

लव:- दोस्तों अंधेरा होने वाला है, मुझे लगता है कि हमें यहीं पर अपनी रात गुजारनी चाहिए।

कुश:- मुझे लगता है कि हमें थोड़ी और आगे जाकर देखना चाहिए। क्या पता हमें कोई मदद मिल जाए।

नैरेटर:- उसके बाद वे सभी थोड़ी देर और चलते हैं परंतु उन्हें वहां पर कुछ भी नजर नहीं आता।

लव:- बस दोस्तों अब रुक भी जाओ। मैं बहुत ज्यादा थक गया हूं, मैं अब ओर नहीं चल सकता।

करमजीत:- परंतु हमारे पास यह संदूक है, हमें इसे सही सलामत वापस ले जाना होगा और मुझे यहां पर कुछ ठीक नहीं लग रहा है।

करण:- इस घने जंगल में हम और कहां रुक सकते हैं हमें यहां पर रहने का कोई स्थान भी नहीं मिलेगा।

तेजिंद्र सिंह:- ओ पुत्तर जी सभी बहुत ज्यादा थक गए हैं, मुझे लगता है कि हमें यहीं पर विश्राम करना चाहिए।

नैरेटर:- उसके बाद सभी वहीं रुकने का निर्णय लेते हैं और एक बड़े से वृक्ष के नीचे अपने सोने का इंतजाम कर लेते हैं।

लव:- हमें इस संदूक के ऊपर बहुत सारे पत्तों से इसे ढ़क देना चाहिए ताकि कोई भी यहां से यह संदूक ना ले जा पाए।

टॉबी:- परंतु इतने सुनसान जंगल में कौन आएगा तुम ज्यादा चिंता मत करो।

लव:- फिर भी यह संदूक हमारे लिए बहुत ज्यादा कीमती है हमे सावधान तो रहना चाहिए।

नैरेटर:- उसके बाद सभी मिलकर पत्तों की सहायता से संदूक को ढ़क देते है, ताकि वह आसानी से किसी को ना दिखे। उसके बाद सभी सो जाते हैं फिर जब लव सुबह उठकर वहां देखता है तो संदूक वहां से गायब हो जाती है।

लव:- आखिर अब यह संदूक कहां गायब हो गई।

नैरेटर:- आखिर वह संदूक कहां गायब हो गई थी। उन सभी ने मिलकर इतनी सारी मुसीबतों का सामना करके उसे हासिल किया था। क्या उन्हें दोबारा संदूक को हासिल करने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। यह सब जानने के लिए बने रहिएगा तिलिस्मी कहानी के अगले एपिसोड तक।

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