Homeतिलिस्मी कहानियाँ80 – ड्रैगन का हमला | Dragon ka Hamla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

80 – ड्रैगन का हमला | Dragon ka Hamla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

पिछले एपिसोड में आप ने देखा कि करण और उस के बाकी मित्र सितारा का श्राप तुड़वाने के लिए भविष्य में चले गए थे, जहां पर उन की उम्र बढ़ गई थी। बड़ी मुश्किल से उन सभी को बाबा मिल जाते हैं। वहीं बाबा का मुनि नामक खरगोश भी बाबा के साथ रहता है और मुनि का एक परिवार भी है। एक सुबह टॉबी अचानक शुगर से शादी करने की जिद पकड़ लेता है।

टॉबी बार-बार यही कह रहा था कि उस की शादी शुगर से करवा दी जाए।

लेकिन सभी उसे समझाने में लगे हुए थे।

तजिन्दर- “ओह जी.. इतनी जल्दी तो मुझे भी नहीं थी पुतर जी व्याह दी, जिनी तेनु है.. हा हा हा!”

सुनीता (शर्मा कर)- “ओह जी…बच्चों के सामने कैसी बातें कर रहे हो तजिंदर जी, तुसी वी न!”

तजिन्दर- “ओह माफ करना सुनीता कौर जी,

सुनीता- “हम्म.. हुण तुसी चुप ही बैठो जी कद्दू काट के!”

और तभी मुनि खरगोश भी अपने परिवार के साथ वहां आ जाता है।

बुलबुल- “मुनि जी, आप ही समझाइए ना टॉबी को!”

मुनि- “टॉबी, फिक्र मत करो.. तुम तो शुगर से दिल के बंधन से जुड़ गए हो….और यही तो सब से बड़ी बात है ना!”

मुनि की पत्नी- “हाँ…टॉबी, विवाह तो बाहरी दिखावा है, मन से जुड़ाव जरूरी है ना …!”

शुगर- “हाँ टॉबी… समझो सब की बात.. बच्चों जैसी जिद मत करो!”

टॉबी- “हम्म…हम्म, सुन रहा हूँ! ठीक है”

और इस के बाद टॉबी जा कर मुनि के बच्चों के साथ खेलने लग जाता है।

करमजीत- “न जाने क्या हो गया टॉबी को!!”

मुनि- “चलो अच्छी बात है मान गया और खेल में लग गया!”

करण- “हम्म.. टॉबी को बच्चों से बहुत ज्यादा प्यार है…!”

मुनि- “हाँ… वह तो दिख ही रहा है, कितना खुश हैं मेरे बच्चों के साथ!”

तो कुछ ही देर बाद करण देखता है कि मुनि कुछ सिल रहा है। दिखने में वह किसी मोटे बिस्तर जैसा लग रहा था।

मुनि- “यह क्या कर रहे हो मुनि?”

मुनि- “वो मै सोने के लिए कुछ आरामदायक चीज बना रहा हूं ताकि मेरे बच्चे इस पर आराम कर सकें!”

करण- “वाह…!! तुम्हें तो घर के काम भी आते हैं!”

मुनि- “हाँ…वो तो है…सीखना पड़ता है…करण..!”

करण- “हम्म… तुम अपने परिवार का बहुत अच्छे से ख्याल रखते हो.. बहुत ही अच्छी बात है!”

मुनि- “हाँ…हा हा हा, तारीफ़ के लिए शुक्रिया मित्र!”

वहीं दूसरी और बाकी मित्र बैठे हुए हैं और बातचीत कर रहे हैं।

तजिन्दर- “हुण बस बाबा जी जल्दी आ जाए तो मेनू वह बात पता चल जावे, जो बात बाबा जी ने हम से बताने को कही सी!”

सुनीता- “हाँ जी..मैं वी ओ ही सोच रही हां!”

कर्मजीत- “हॉं और अपना काम कर के हम लोग जल्द ही यहां से निकल जाए!!

बुलबुल- “हाँ…कर्मजीत… लेकिन अभी उन को आने मे न जाने कितने दिन बाकी है!”

शुगर- “हाँ वहीं तो…!तब तक बड़े बन कर रहो भविष्य में,”

तजिन्दर- “चलो जी, रात हो गई है.. सो जाओ सब..!”

सुनीता (उबासी लेते हुए)- “हाँ..! जी चलो, ”

खैर ऐसे ही चार दिन और बीत जाते हैं।

तो एक दिन सभी लोग अपने भोजन की तैयारी कर रहे थे तभी अचानक से घर के अंदर कोई एक बड़ी सी पोटली फेंक कर चला जाता है।

सुनीता- “आ की होया, ऐ पोटली किदर तों आई ??”

टॉबी- ”कर्ण देखो तो यह कौन फेंक कर गया है? “

कर्ण और करमजीत भाग कर बाहर जाते है, पर उन्हें वहां कोई दिखाई नही देता।

करमजीत- “लगता है भाग गया, जो भी था!”

करण- “सावधान टॉबी, उस पोटली के पास मत जाओ!!”

बुलबुल- “कोई बड़ी चालाकी से फेंक गया है, दिखाई तक नही दिया।”

टॉबी- “लेकिन इस मे क्या हो सकता है करण? “

शुगर- “ कहीं यह किसी की चाल तो नहीं!”

कर्मजीत- “हो सकता है.. कोई भी इस पोटली को छूना मत!”

और सभी लोग थोड़ी देर तक पोटली को घूर-घूर कर देखने लगते हैं।

और तभी उस में से एक बच्चे की रोने की आवाज आती है।

तजिन्दर- “हायो रब्बा, एस च तां, कोई बच्चा है जी? “

सुनीता- “अजी उस के पास न जाओ तुसी, …!”

बुलबुल- “हाँ इसे यहां से दूर रखना होगा!!”

करन- “हाँ…रुको…मै कुछ करता हुँ…!”

और करण उस पोटली को धीरे-धीरे उठा लेता है और उसे दूसरी जगह पर रखने के लिए जाने लगता है। तभी बच्चे की तेज आवाज आती है।

शुगर- “अगर बच्चा सच मे हुआ तो!!”

टॉबी- “नही कर्ण रुको…. एक बार उसे खोल कर तो देख लो, क्या पता उस के अंदर सच में कोई बच्चा हो!”

करण- “लेकिन टॉबी यह ठीक नहीं है.. तुम्हें पता है ना हम सब एक मायावी दुनिया में है, जहां पर कहीं भी कुछ भी हो सकता है!”

बुलबुल- “भला कोई भी बच्चा क्यों फेंक कर जाएगा!!”

टॉबी- “लेकिन एक बार खोलने में क्या जाता है.. क्या पता इस पोटली के अंदर वाक्य में कोई हो!

सुनीता- “हाय सही गल है, खोल ले कर्ण पुतर

और टॉबी बार बार पोटली खोलने की जिद करने लगता है और आखिरकार करण को उस की बात माननी ही पड़ती है।

करण- “हम्म… ठीक है, अगर तुम इतनी जिद कर रहे हो तो मैं इसे खोल ही लेता हूं!”

तजिंदर- “घबरा ना पुतर, मैं हूँ न!”

तो करन उस पोटली को खोल ही लेता है। लेकिन उस मे कुछ नही था।
तभी मुनि के साथ उस का परिवार भी वहां आ जाता है,

करण- “इस में तो कोई बच्चा नहीं है . मैंने कहा था ना कि यह कोई जादुई चीज है!”

बुलबुल- “इस पोटली को बाहर फेंक दो!”

टॉबी- “हम्म, लाओ मैं फेंक देता हूँ!”

तो टॉबी उस पोटली को फेंकने के लिए आगे बढ़ता ही है कि तभी उस पोटली से धुआं निकलने लगता है।

टॉबी- “ये क्या!!”

करमजीत- “बचो सब!”

करण- “यहां से जाना होगा.. सभी लोग यहां से चलो!”

सभी बाहर निकलते हैं लेकिन लेकिन मुनि वहीं अंदर ही रह जाता है

बुलबुल- “करण… मुनि कहाँ है?… लगता है वह अंदर ही रह गया।..!”

शुगर- “हाँ.. हमें अंदर जाना होगा… हम उसे अकेले ऐसे नहीं छोड़ सकते!”

तजिन्दर- “हाँ जी…चलो…फिर…शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ता है…!”

सुनीता- “रुक जाओ जी, हम आ रहे हैं कद्दू काट के!”

और सभी लोग चुपके से अंदर चले जाते हैं। अंदर जाने पर वो छुप कर देखते हैं कि वहां पर एक प्राणी उड़ रहा है (ड्रैगन fly जैसा, बड़े हाथ भी हैं) जिस के पैर किसी चिड़िया जैसे हैं और उस के पँख भी है।

प्राणी (गुस्से में)- “कहाँ है तू?? कहाँ है मुनि खरगोश??”

बुलबुल- “अब ये क्या है!”

करण- “श….सभी लोग…चुप रहना… इस ने अभी हमें देखा नहीं है..इसलिए सब लोग शांत रहना!”

कर्मजीत- “हाँ.. देखने में तो काफी गुस्से में लग रहा है… यह जरूर मुनि को नुकसान पहुंचाने आया है!”

करन- “हाँ.. यह जरूर उसी की तलाश में आया है…बिल्कुल उसी आदमी की तरह जो की मुनि को लेने आया था!”

तजिन्दर- “हाँ…कोई ना….इस बार भी हम लोग इसे हरा देंगे!”

सुनीता- “हाँ जी…. बिल्कुल!”

तभी वह प्राणी उड़ जाता है और अचानक से जा कर टॉबी को उठा लेता है , कर्ण और बाकी साथी भाग कर वहां आते हैं

टॉबी- “जल्दी बता मुनि कहाँ है?? “

टॉबी (डर कर) – ”छोड़ मुझे, मुझे नहीं पता.. जाने दो मुझे..कर्ण बचाओ!”

प्राणी- “जल्दी से तुम में से कोई उस का पता बता दो नहीं तो इस को अभी यहीं पर मार डालूंगा!”

मुनि की पत्नी- “बोला ना हमें नहीं पता…तुम ने तो उसे हर जगह ढूंढ लिया है.. अगर तुम्हें नहीं मिल पाया तो हमें कहां से मिलेगा?”

टॉबी- “जाने दो मुझे…!”

और तभी वह प्राणी टॉबी को दूर फेंक देता है लेकिन तजिन्दर जल्दी से भाग कर उसे पकड़ लेता है , इस से तजिंदर गिर जाता है और उसे चोट लग जाती है।

सुनीता- “हे भगवान, ओ जी..उठो , ठीक तो हो न तुसी…!”

टॉबी- “उठीये…गुरु जी उठिए!”

तजिंदर (उठ कर)- “ठीक हूँ जी, चिंता ना करो!!”

वहीं अब उस प्राणी को बहुत गुस्सा आ रहा था, इसलिए वह अब उन सभी पर हमला करने लगता है।

तभी करण, करमजीत और बुलबुल उस प्राणी से बहादुरी से लड़ने लगते हैं।

प्राणी- “तुम सब मुझ से नहीं जीत पाओगे.. मेरे सामने हार मान लो..वरना तुम सब को जिंदा नहीं छोडूंगा..!”

करण- “नही.. हम हार नहीं मानेंगे..!”

प्राणी- “अच्छा तो आ जाओ, फिर…हा हा हा!”.

और वो प्राणी हवा में ऊंचे तक उड़ने लगता है। और हमला कर के बार बार उड़ कर भाग जाता है

प्राणी- “हा हा हा! आ जाओ उड़ कर”

बुलबुल- “करण इस के पर काट दो!”

और करण उस के पर काटने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। वह प्राणी बार-बार करन पर हमला कर रहा था।

करमजीत- “ये बहुत चालाक है!”

कर्ण- “हां पहुँच से बाहर निकल रहा है!!”

वह प्राणी हमला करने थोड़ा नीचे आता है और अचानक टॉबी और शुगर मौका पा कर उस के पैरों पर हमला कर देते हैं, वहीं करमजीत और बुलबुल उस के चेहरे और गर्दन पर वार करते हैं।

करण- “अब आया न पकड़ में, अब मेरी बारी है!”

प्राणी- “छोड़ दो मुझे…!”

और तभी करण उस के पर काटने ही वाला होता है , लेकिन वो प्राणी अपने हाथ खोलता है और उस के हाथ से कई सारी छोटी-छोटी चिड़िया निकलती है और बहुत तेज शोर करती हैं।

बुलबुल (कान पर हाथ रख के)- “अह्ह्ह, इन की आवाज ऐसी क्यों है…!”

टॉबी- “हां!! इन की आवाज तो हमें मार डालेगी!”

मुनि की पत्नी- “हाँ… आवाज बहुत तेज है और तीखी है!”

शुगर- “हाँ…. करण…कुछ करो…!”

तजिन्दर- “हे वाहेगुरु जी… हम सब दी रक्षा करना!”

और तभी उस प्राणी को मुनि भागता हुआ दिख जाता है…और वो मुनि को पकड़ कर वहां से उड़ जाता है।

मुनि की पत्नी- “नही…जाने दो.. जाने दो.. उसे…!”

प्राणी- “हा हा हा…आ गया पकड़ में!”

मुनि के बच्चे और पत्नी रोने लग जाते हैं, क्योंकि प्राणी उसे ले कर जा चुका था।

मुनि की पत्नी- “ये क्या हो गया? “

बुलबुल- “आप रोइये मत, हम कुछ करते हैं!”

सभी मुनि की पत्नी को समझा रहे थे और अचानक पीछे से मुनि आ जाता है , उसे देख कर सभी लोग हैरान रह जाते हैं।

सुनीता- “आ की..??”

करण- “तुम ??…

करमजीत- “ये कैसे हुआ!”

मुनि- “वो मेरा पुतला था… वह जल्दी बाजी में था इसलिए मुझे सही से पहचान नहीं पाया… जल्दी चलो अब यहां से!”

मुनि की पत्नी- “हाँ.. चलो, जल्दी..!”

तो सभी वहां से जाने लगते हैं।

थोड़ी दूर जा कर उस प्राणी को पता चलता है कि उस के साथ धोखा हुआ है.. तो वह तुरंत वापस उसी स्थान पर जाता है लेकिन उसे वहां पर कोई भी नहीं मिलता।

प्राणी- “छल हुआ है मेरे साथ!!”

वहीं मुनि उन सभी को एक विशेष स्थान पर ले गया था।

मुनि- “हम सब यही रुकेंगे , क्योंकि कल शायद बाबा यहां पर आ जाएंगे!”

कर्मजीत- “ठीक है..!”

टॉबी- “यहां कोई खतरा तो नही है??”

मुनि- “नही नही, आराम से सो जाना सब!”

सभी सो जाते हैं और अगले दिन, बाबा भी वहां पहुंच जाते हैं।

सभी- “प्रणाम बाबा जी!”

बाबा- “तुम सब ठीक हो ना? “

करन- “हां बाबा जी हम सब ठीक है.. आप तो ठीक है ना!”

बाबा- “हां मैं भी ठीक हूं..!”

बुलबुल- “बाबा जी… आप विश्राम कर लीजिए!”

बाबा- “हाँ…लेकिन तेजिंदर तुम्हें याद है ना कि मैंने क्या कहा था!”

तजिन्दर- “हां बाबा जी बताइए , आखीर क्या बात थी!”

बाबा- “मैं बताना चाह रहा था कि तुम्हारा और टॉबी का एक पुराना रिश्ता है…!”

तजिन्दर- “क्या मतलब जी????”

बाबा- “मतलब ये कि टॉबी कोई और नहीं बल्कि तुम्हारा पुराना पालतू पशु ही है जिस की मृत्यु हो गई थी!”

सुनीता (भावुक)- “साडा गुल्लू??????”

इतना कह कर सुनीता टॉबी को गले से लगा कर बहुत रोती है। वहीं तेजेद्र और बाकी सब की आंखों से भी आंसू आ जाते हैं।

करण- “यह तो कुदरत का करिश्मा है!”

बुलबुल- “हाँ करण…वास्तव मे…!”

टॉबी- “मै बहुत खुश हुँ कि ईश्वर ने हम सभी को फिर से मिला दिया…!”

सुनीता- “हाँ पुत्तर…हाँ… अब तुम उसे कभी जुदा न होना पुत्तर!”

टॉबी- ”हाँ माता जी…!”

वहीं करण मन ही मन कुछ सोच रहा था।

खैर सभी लोग तेजिंदर सिंह और सुनीता के लिए बहुत खुश हो रहे थे।

सुनीता- “हुन घर ही रहना पुत्तर, तुझे जो पसंद है ना..मैं तेरे वास्ते बनाऊंगी… कद्दू काट के!”

बाबा- “लगता है पुत्री को कद्दू बहुत ज्यादा प्रिय है!”

बुलबुल- “हा हा हा…हाँ बाबा जी..!”

और सभी लोग हंसने लगते हैं।

तो क्या करण और उस के सभी मित्र वापस अपनी दुनिया में जा पाएंगे??
जानने के लिए बने रहिएगा तिलिस्मी कहानी की अगले एपिसोड तक।

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