78 – यह बच्चा कौन? | Yeh Baccha Kon | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था
कि टॉबी तजिन्दर सिंह और सुनीता जी के पालतू पशु गुल्लू की तरह व्यवहार कर रहा था। वहीं कहानी के अंत में आप ने देखा था कि सितारा भी एक बच्चे की तरह व्यवहार कर रहा था। क्योंकि उसे एक साधु ने श्राप दे दिया था और उस ने अपनी याददाश्त खो दी थी।
सितारा टॉबी के साथ खेल रहा था.. और टॉबी कों बहुत परेशान कर रहा था। उसे देख सब लोग हैरान परेशान हो गए थे।
सितारा- “ओ ले …ओ ले, गुलु गुलु. गुलु.।!”
शुगर- “सितारा, छोड़ दो टॉबी को!!”
तजिन्दर- “सुनीता…जल्दी से कोई गुड्डा दे दो इसे खेलने वास्ते!”
सुनीता- “हाँ.. जी.. अभी लायी जी कद्दू काट के..!”
और सुनीता एक पुराना गुड्डा ला कर सितारा को दे देती है… तब जा कर सितारा टॉबी को छोड़ता है।
बुलबुल- “हे भगवान, सितारा ऐसे क्यों कर रहा है!!”
कर्ण- “वही तो मैं भी सोच रहा हूँ, आखिर हुआ क्या है!”
कुश- “ओह…ये अच्छा हुआ कि उसे गुड्डा मिल गया…!”
कर्मजीत- “हाँ… पता नहीं, यह कैसी नई मुसीबत आ गई है अब फिर से!”
करन- “हाँ.. क्या करें कुछ समझ में भी नहीं आ रहा! ये कैसे ठीक होगा”
बुलबुल- “हम्म!! सुनो, तुम ने उस साधु बाबा को देखा था ना, कहीं ऐसा तो नहीं है कि किसी कारण से बाबा ने ही सितारा को ऐसा बना दिया हो!”
तजिन्दर- “हाँ…पुत्तर… मुझे भी शक हो रहा है अब एस गल ते”
सुनीता- “हाँ जी…कददू काट के , साधु का तो काम ही है श्राप देना!”
कुश- “श्राप, हे ईश्वर, अब क्या होगा?..
लव- “अगर सच मे श्राप की वजह से हो रहा है, तो ये टूटेगा कैसे?.”
कर्मजीत- “फिर तो हमें उन साधु बाबा को ही ढूंढना होगा.. क्योंकि शायद वो ही बता सकेंगे कि इस का श्राप कैसे टूटेगा!”
टॉबी- “हाँ.. करण !! जल्दी से सितारा का श्राप तुड़वाओ…नही तो वो मेरे गाल नोच कर मुझे भूत बना देगा…!”
शुगर- “हाँ.. देखो तो इस का क्या हाल कर दिया है उस ने.. पर वो भी क्या क्या करें.. इस में उस की भी तो कोई गलती नहीं है!”
लव- “हाँ…बस जल्दी ठीक हो जाए बेचारा सितारा!”
जहां सभी लोग सितारा के बारे में ही सोच रहे होते हैं, वहीं दूसरी ओर सितारा पूरे घर मे हड़कंप मचा रहा होता है।
अचानक से शोर आना बंद हो जाता है।
लव- “काफी शांति हो गयी हैं ना!”
कर्मजीत- “अरे सितारा कहां गया.. वह तो अभी यहीं पर था?”
करन- “ढूंढो उसे.. कहीं वह खुद को कोई नुकसान ना पहुंचा ले..!”
और तभी सभी लोग रसोई घर में पहुंचते हैं जहां पर सितारा आटा निकाल कर उस मे बैठा हुआ था।
कुश- “हा हा हा, सफेद भूत बन गया है ये तो!”
तजिन्दर- “ओह जी…तू तो.. तूफान से भी तेज है पुत्तर…!”
सुनीता- “हाँ जी…इन्ना शैतान बच्चा तो मैंने अज तक नहीं देखा जी…!!”
सितारा- “ही ही ही, तो देख लो…ये लो..!”
तभी सितारा आटा उड़ा कर सुनीता के चेहरे पर फेंक देता है, और सभी हंसने लग जाते हैं।
तजिंदर- “ओहो, हा हा हा, आ की किता पुतर!!
सुनीता- “सफेद भूतनी बना दिया मेनू वी!!”
तजिंदर- “एस शैतान को चक के लाता हूँ मैं!!”
तजिंदर उस के पास जाने लगता है, तभी सितारा
एक मटका तोड़ने के लिए नीचे जमीन पर फेंकता है लेकिन तभी तजिंदर सिंह उस मटके को पकड़ लेता है।
तजिंदर- “न न न, देखा…मै भी हवा से तेज हुँ…हा हा हा..शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ता है…।”
लव- “वाह जी, कमाल कर दिया आप ने
सितारा यह देख कर गुस्सा हो जाता है और दूसरे मटके को जमीन पर फेंकता है लेकिन तभी करण उस मटके को पकड़ लेता है।
सितारा- “सितारा यह क्या कर रहे हो, रुक जाओ?”
तजिन्दर- “पुत्तर…रुक जा… तू रुक जाएगा तो तुझे गरम-गरम पराठे खिलाएंगे!”
सितारा- “नहीं नहीं नहीं, मुझे कोई पराठे नहीं खाने, आप ही खा लो!”
तजिन्दर- “ओ हो… लगता है इस को तुम्हारे पराठे पसंद नहीं आये सुनीता कौर!”
सुनीता- “अजी… नहीं.. नही.. ऐसा हो ही नहीं सकता कि मेरे पराठे किसे नू पसंद ना आए हो!”
सितारा- “नही खाने है पराठे… मुझे मिठाई खानी है बस, मिठाई चाहिए, चाहिए चाहिए!”
तजिन्दर- “अच्छा.. अच्छा.. तो रुक पुत्तर… हम तेरे लिए मिठाई बनाते हैं! अभी के अभी”
सुनीता- “हाँ हाँ.. और क्या, बना देने हैं मैं हुणे ही लड्डू…!”
बुलबुल (डांट कर)- “हां सितारा ,तुम जो बोलोगे तुम्हें खाने को मिलेगा लेकिन तुम शैतानी करना बंद कर दो! तभी मिलेंगे लड्डू”
सितारा- “हाँ.. जल्दी-जल्दी बनाओ लड्डू मेरे लिए!”
और बुलबुल के समझाने पर सितारा मान जाता है।
सब लोग तैयारी में लग जाते हैं और थोड़ी देर में लड्डू बन जाते है।
तजिन्दर- “ले पुत्तर.. खा ले..!”
सितारा (लड्डू खा कर)- ”हम्म.. बहुत स्वादिष्ट हैं! आ हा, आंनद आ गया”
टॉबी- “ओह शुक्र है, ये शांत तो हुआ!”
शुगर- “बच गया टॉबी , अभी ले लिए तो!”
और फिर सभी को थोड़ी शांति मिलती है।
करण- “तो चलो साथियों… जंगल की तरफ चलते हैं और साधु को ढूंढते है.. नहीं तो हालात और भी खराब हो जाएंगे!”
सुनीता- “हाँ पुत्तर.. चलो!”
कर्मजीत- “कुश और लव.. तुम दोनों यहीं पर रहना और सितारा का ध्यान रखना…ये कहीं भाग न जाये!”
बुलबुल- “हां और यह मत भूलना कि अभी वह एक बच्चा है और इस का एक बच्चे की तरह ही ध्यान रखना होगा!”
लव- “हाँ बुलबुल…कर्ण, चिंता मत करो! हम सब देख लेंगे”
कुश- “हाँ अवश्य, अब तुम सभी लोग जाओ..जल्दी से!”
टॉबी- “हाँ…कुश… जल्द मिलते हैं!”
लव कुश के अलावा बाकी सभी जंगल की तरफ निकल जाते हैं…बहुत आगे निकलने पर उन्हें रास्ते में एक बूढ़े दंपत्ति मिलते है जो उन्हें साधु बाबा के बारे में बताते हैं।
बूढ़ी औरत- “वह बाबा तो काफी शक्तिशाली है.. मैंने उन के बारे में कई लोगों से सुन रखा है… लेकिन पूर्वी ओर पहाड़ियों है.. वहीं कई सारी गुफाएं हैं.. तुम्हें अवश्य किसी गुफा में बाबा मिल जाएंगे!”
कर्मजीत- “अच्छा… हमें उन का पता बताने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!”
आदमी- “कोई बात नहीं बेटा, बस तुम लोग थोड़ा संभल कर जाना, काफी बाधाएं आ सकती हैं…!”
करन (हाथ जोड़ के)- “ठीक है धन्यवाद, अब हम चलते हैं!”
दम्पति- “आयुष्मान भव!”
और सभी लोग वहां से आगे चले जाते हैं।
और दो घंटे बाद पहाड़ी पर पहुंचते हैं। जहां काफी गुफाएं थी।
बुलबुल- “यह पहाड़ियां तो हमें मिल गई लेकिन यहां पर तो कई सारे गुफाएं हैं.. अब हमें कैसे पता चलेगा कि कहां पर बाबा होंगे?”
टॉबी- “हाँ.. अब क्या करें करण? “
करण- “हाँ टॉबी, कहीं ऐसा ना हो कि इन गुफाओ के अंदर कई खतरनाक प्राणी हो… या फिर कुछ ऐसा जिस की हमें कल्पना भी ना हो!”
शुगर- “हाँ… क्या करें!”
तजिन्दर- “लेकिन क्या करें फेर, हिम्मत कर के अंदर तो जाना ही पड़ेगा पुतर जी… नही तो बाबा के बारे में किंवे पता चलेगा!”
सुनीता- “हाँ जी.. बिल्कुल सही कह रहे हो! चलो जी चलो कद्दू काट के”
कर्मजीत- “हाँ…चलिए…!”
तो सभी लोग बड़ी हिम्मत कर के उन में से एक गुफा के अंदर जाते हैं।
करन- “अंदर तो काफी अंधेरा है…!”
बुलबुल- “अरे कर्ण, सितारा ने जो तुम्हें जादूइ कड़ा दिया था, उस का इस्तेमाल करो !”
टॉबी- “हाँ. मैं तो भूल ही गया था कि कर्ण के पास कड़ा भी है.!”
करण- “हाँ.. मै भी भूल ही गया था टॉबी!”
कर्ण वह कड़ा निकलता है।
कर्ण- “ऐ.. जादुई कड़े…अपनी शक्ति से यहां रोशनी प्रज्वलित करो!”
तजिन्दर- “वाह… यह तो बहुत शानदार जादुई कड़ा हैगा है जी…!”
सुनीता- “हाँ जी… देखो तो कितनी रोशनी हो गई..!”
शुगर- “हाँ.. चलिए अब आगे बढ़ते हैं!”
करमजीत- “शोर मत करना, आगे कुछ भी हो सकता है, दबे पांव चलो सब!”
और सभी लोग दबे पांव गुफा के अंदर जाने लगते हैं।
और तभी उन्हें किसी जानवर की आवाज आती है जो काफी भयानक आवाज थी।
कर्मजीत (तलवार निकाल कर)- “…सावधान…पीछे हटो सभी…खतरा है!”
तजिन्दर- “ध्यान से पुत्तर…!”
कर्ण (तलवार निकाल कर)- “हमारी तरफ आ रहा है कुछ!”
और तभी सामने से एक चीता आता है जिस के 6 पैर होते हैं।
सुनीता (डर के)- “ओह जी…ये क्या बला है?? “
बुलबुल- “हाँ… काफी डरावना है!”
टॉबी- “करण, करमजीत…ध्यान से!”
तभी करण उसे वो जादुई कड़ा दिखा कर उसे दूर भगाने की कोशिश करता हैं.. पहले तो वो जानवर थोड़ा पीछे तो हट जाता है लेकिन फिर से उन पर हमला करने आ जाता है।
करमजीत- “कर्ण, ये ऐसे नही जाएगा!”
कर्ण- “हाँ, हम दोनों की तलवार काफी है इस के लिए !!”
तो करण उस से लड़ने लगता है। करमजीत भी उस का साथ देता है
शुगर- “करण बच के…!”
बुलबुल- “हे ईश्वर, रक्षा करना मेरे मित्रों की!”
सुनीता- “तुसी वी जाओ जी, तुसी वी बहादुरी दिखाओ!”
और तभी तजिन्दर सिंह भी उस जानवर को रोकने का प्रयास करता हैं…,
तजिंदर- “शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ता है… भज जा…भज जा…”
सुनीता- “ओह जी.. ध्यान से…!”
कर्मजीत- “कर्ण यह जानवर तो काफी भयानक है और ताकतवर भी, अब क्या करें!”
करन- “लड़ते रहो करमजीत लड़ते रहो, इस पर असर नहीं हो रहा है हमारे प्रहारों का! पर हम लड़ना छोड़ नही सकते”
टॉबी- “ओह नही, अब क्या होगा!”
तभी बुलबुल को एक उपाय सूझता है।
बुलबुल- “करण…करमजीत, तुम सब लड़ना बंद करो…जल्दी से इस गुफा से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं… क्या पता , हम लोग बच जाए!”
टॉबी- “हाँ…बुलबुल… यह बात तुम ने सही कही.. हो सकता है कि इस गुफा के अंदर आने की वजह से ही यह हम पर हमला कर रहा हो!”
शुगर- “हाँ…चलो…!”
करण, करमजीत और तजिंदर सिंह उस जानवर के आसपास रह कर उस का ध्यान बटाते हैं…वही बाकी मित्र गुफा से बाहर निकल जाते हैं।
कर्ण- “तुम सब जाओ, हम आते हैं!”
बुलबुल- “ठीक है, ध्यान रखना!”
वहीं करण, करमजीत और तजिंदर सिंह भी जैसे तैसे कर के बाहर निकल जाते हैं।
कर्मजीत- “देखो…वह जानवर वहीं अंदर रह गया है…!”
करन- “हां अच्छा हुआ, बुलबुल ने हमें सही बात कही!”
बुलबुल- “हाँ…वो पीछे नहीं आया.!”
करण- “तो अब हमें जिस भी गुफा के अंदर जाना होगा.. सोच समझ कर ही जाना होगा, अंदर काफी खतरा है!”
और तभी थोड़ी देर बाद सभी साथी फिर से दूसरी गुफा में जाते हैं।
टॉबी- “लगता है, यहां पर सब कुछ ठीक है!”
शुगर- “हम्म.. लेकिन अभी कुछ कह नहीं सकते.. क्यूंकि कभी भी कुछ भी हो सकता है!”
कर्मजीत- “हाँ..! फूंक फूंक कर कदम रखना”
तेजिंदर- “रुको! रुको!”
सुनीता- “क्या हुआ जी हुन? “
तेजिंदर- “मेनू ऐसा लगया, जैसे की धरती हिल रही है!”
कर्ण- “हाँ सही कहा आप ने!”
और इन के कहते ही वह गुफा हिलने लगती है।
सभी का संतुलन बिगड़ जाता है।
सभी- “आ ~~आ, बाहर भागो।।”
सुनीता- “अह्ह्ह….. तेजिंदर जी…. बचाओ!”
तेजिंदर- “डर मत…मै हुँ ना… मैं तुझे कुछ भी नहीं होने दूंगा सुनीता कौर!”
टॉबी- “चलो यहां से भागते है…!”
शुगर- “हाँ.. इस गुफा में भी बाबा जी नहीं है!”
और तभी एक पत्थर टॉबी के सिर पर गिरने वाला होता है लेकिन तजिंदर सिंह लात मार कर पत्थर को वहाँ से हटा देते हैं।
टॉबी डर के मारे तजिंदर के पीठ पर आ जाता है।
तेजिंदर- “एस तरह ही तां बिल्कुल गुल्लू भी मेरे पीठ मे बैठ जाया करता था, जब वह बहुत डर जाता था!”
सुनीता- “हाँ जी… वही तो मैं भी देख रही हूं! साडा गुल्लू”
करण- “…जल्दी चलिए अब यहां से….गिरने वाली है गुफा!”
तजिन्दर- “हाँ जी.. चलो, नहीं तो यहां हम सब की चटनी बन जाएगी!”
सुनीता- “हाँ और चटनी पराठे के साथ कोई खा जाएगा… कद्दू काट के!”
तो सभी उस गुफा से भी बाहर आ जाते हैं और देखते-देखते वह गुफा ढह जाती है।
सुनीता- “हो गया काम तमाम!”
बुलबुल- “कट गया कद्दू, हा हा हा!”
टॉबी- “अब क्या करें? “
शुगर- “हाँ… दोनों गुफायें खतरनाक थी.. न जाने इस बार तीसरी गुफा में क्या निकलेगा? “
करमजीत- “हाँ…थोड़ा रुकते है ., थकावट हो गयी है.!”
और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद वे लोग फिर से तीसरी गुफा में जाने का निर्णय लेते हैं।
तभी कर्ण को गुफा के बाहर कुछ दिखाई देता है
करण- “ठहरो…सभी लोग!”
कर्मजीत- “क्या हुआ करण…!”
करण- “वो देखो… गुफा के बाहर कमण्डंल….!”
बुलबुल- “हां करण…यह कमंडल ! ये तो वही है जो बाबा जी के हाथ में थी!”
करण- “हाँ… पक्का!! बाबा इसी गुफा के अंदर होंगे! चलो”
और सभी लोग बड़ी हिम्मत जुटा कर अंदर जाते हैं तो उन्हें वहां पर बाबा मिल ही जाते हैं।
तो बुलबुल बाबा को सारी बात बता देती है।
बाबा- “हम्म.. तो यह बात है… मुझे माफ करना.. मुझ से गलती हो गई..मैं तुम सब की सहायता अवश्य करूंगा!”
बुलबुल- “आप का बहुत-बहुत धन्यवाद बाबा जी!”
तो क्या सितारा फिर से पहले जैसा हो जाएगा? या फिर से कुछ नई बाधा आने वाली है? ये जानने के लिए बने रहिएगा करण और उस के मित्रों के इस एडवेंचरस सफर में आगे तक…