77 – साधु का श्राप | Sadhu ka shraaap | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था
कि सितारा ; करण और उस के मित्रों को अपनी दुनिया से वापस इंसानी दुनिया में ले आया था और तभी वे लोग तजिंदर सिंह के गांव में भी पहुंच गए थे। वही कहानी के अंत में आप ने देखा था कि टॉबी की नजर एक कपड़े की गेंद पर जाती है। और उस गेंद को देखने के बाद वह कुछ ऐसा बोलता है जिसे सुन कर तजिन्दर सिंह और सुनीता काफी हैरान हो गये थे।
टॉबी उस गेंद को बार-बार देख रहा था, उसे वह गेंद काफी अच्छी लग रही थी, टॉबी गेंद को पकड़ लेता है।
टॉबी- “मेरी प्यारी गेंद…ओह मेरी प्यारी गेंद..तुम कहाँ थी…तुम कहाँ थी???!”
तजिन्दर- “ओ जी सुनीता जी, एन्वें तां….!!एन्वें तां साडा.. पालतू पशु गुल्लू बोलदा सी जी..!”
सुनीता (यह डायलॉग तेजी से बोलना है)- “हाँ जी.. तुस्सी इक दम सही गल केही है जी, ओ ही तां मैं वी समझ नहीं पा रही कि अख़िरकार ऐ टॉबी… बिल्कुल गुल्लू वर्गा किंवे बोल्दा पया है?….सिर्फ ओ ही अपनी इस गेंद नू वेख के एन्वें बोलदा सी”
सितारा- “ये कौन सी भाषा है, कुछ समझ नही आ रहा! और ये इतनी तेजी से बोल रही है!”
लव कुश (सिर खुजलाते हुए)- “समझ नही आया जी!”
कर्ण- “सुनिए क्या आप, थोड़ी सी हिंदी बोल सकते हैं हमे समझ नही आ रहा!”
सुनीता (धीरे धीरे बोलना)- “ओ जी मैं कह रही हूं
कि जिस तरीके नाल टॉबी बोल रेहा हे, ओस के जैसे हमारा पालतू पशु गुल्लू बोलता होता था जी।
तजिन्दर- “हाँ.. ऐ ही देख कर तो मैं भी हैरान हूं… और एस टॉबी को कैसे पता लगया कि यह गेंद उसी की ही है.. ऐ गेंद तां किनी पुरानी हो चुकी है!”
सुनीता- “हाँ.. जी… बड़ी हैरानी की बात है..!”
वहीं टॉबी शुगर के साथ अपनी गेंद के साथ उछल-उछल कर खेल रहा है।
टॉबी को देख कर सुनीता की आंखों से आंसू आ जाते हैं।
तजिन्दर- “सुनीता देख तां एनु.. ये बिल्कुल साडे गुल्लू की तरह प्यारा और समझदार है ना..!”
सुनीता- “हाँ, मेनू तो अपनें गुल्लू की याद आ रही है…टॉबी को एदर आराम से खेलन दो.. हम चलते हैं जी!”
खैर दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर टॉबी ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा था।
लव- “ये सुनीता जी अचानक इतनी दुखी क्यों हो गयी!”
करमजीत- “वही तो मैं भी सोच रहा हूँ..!!”
कर्ण- “शायद टॉबी को देख कर इन्हें अपने पालतू पशु गुल्लू की याद सता रही है!!
तजिन्दर (अपनी पत्नी से)- “दुखी ना हो सुनीता… हुन की कर सकते हैं… जो भाग्य च लिखा होता है, ओह तां होता ही है..!”
तो तजिंदर सिंह अपनी पत्नी को दूसरे कमरे में ले जाता है।
बुलबुल- “आज तो तजिन्दर सिंह और सुनीता ज्यादा परेशान दिख रहे हैं , इस से पहले तो इन को कभी भी इतना परेशान नहीं देखा हमें उन से बात करनी होगी!”
करण- “हां बुलबुल.. चलो, जा कर बात करते हैं उन से!”
और सभी उन दोनों के पास जाते हैं।
बुलबुल- “क्या बात है.. आप दोनों काफी परेशान लग रहे हैं… क्या हुआ !! सब ठीक है ना? “
तजिन्दर- “हां पुतर जी, सब कुछ ठीक है..तुम सब परेशान मत हो!”
सुनीता- “हां पुत्तर..सब चंगा है…हा हा हा!”
सितारा- “नही नही.. कुछ तो बात है जो आप लोग हम से छुपा रहे हैं, बताइए ना क्या बात है!”
बुलबुल- “हाँ.. कृपया आप दोनों बताइए ना कि आखिर बात क्या है.. मैंने आप को देखा था ,आप बहुत दुखी थी!”
और बच्चों के बार बार पूछने के बाद दोनों पति-पत्नी बहुत भावुक हो जाते हैं और उन की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
कुश- “रोइये मत… क्या हुआ है!”
कर्मजीत- “हाँ… आखिर क्या बात है बताइए ना.. अपने दुख को हम सब से बताइये ताकि आप का मन हल्का हो!”
करन- “हाँ… और अगर हम से बना तो हम आप की सहायता अवश्य करेंगे!”
तजिन्दर (रो कर)- “हम्म…वो… हमारा एक पालतू पशु था, ओस दा नाम गुल्लू था.. असी उस से बहुत प्यार करते थे लेकिन किसी कारण से ओस दी जल्दी ही मौत हो गई थी!”
करण- “ओह यह तो बहुत ही बुरा हुआ, ..!”
बुलबूल- “तो क्या आप को गुल्लू की याद आ रही थी? इसलिए आप दुखी हो गए”
सुनीता- “हाँ…वो… गुल्लू की इक पुरानी कपड़े की गेंद थी जो कि तेजिंदर जी नें हीं अपने हत्थ नाल बनाई थी,.. और अज दूसरे कमरे में ओस कपड़े की गेंद को देख के टॉबी वही बातें बोल रहा सी, जो कि गुल्लू अपनी इस गेंद को देख कर बोला करता था!”
तजिन्दर- “हाँ बच्चों.. बस यही चीज देख कर हम दोनों ईक दम ही चौंक गए पुतर जी …!”
सुनीता- “हाँ..टॉबी को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि साडा गुल्लू वापस आ गया हो…!”
बुलबुल- “अच्छा…. चिंता मत करिए सुनीता जी.. बस समझ लीजिए कि वाकई में वह वापस आ गया है क्योंकि टॉबी भी आप को उतना ही प्यार करता है जितना गुल्लू करता था!”
तभी वहां टॉबी और शुगर भी आ जाते हैं!
टॉबी (उस के पैर चाट कर)- “हां सुनीता जी, मैं आप से बहुत प्यार करता हूं…!”
शुगर- “हाँ और मै भी!”
तजिन्दर(टॉबी को अपनी गोदी में उठा लेता है और उसे प्यार करता है)- “हा हा हा.. वह तो पता है पुत्तर… तू तो मेरा जिगरा है जिगरा!”
सुनीता- “हाँ जी…नजर ना लगे तुम दोनों को..कददू काट के…हा हा हा!”
सितारा- “हाँ… चलो टॉबी बधाई हो… तुम्हें तो एक और नई माँ मिल गई…अब तो तुम पर प्यार की वर्षा होगी वर्षा..!”
टॉबी- “हां सितारा….सच में…मैं काफी भाग्यशाली हूं और इस के लिए मैं भगवान का शुक्रिया अदा भी करता हूं!”
लव- “हाँ…वो तो है…!”
टॉबी (सुनीता से)- “अच्छा माता जी.. मुझे शाम को भी वही वाले पराठे खाने हैं जो आप ने अभी खिलाये थे..!”
तेजिंदर- “हाँ हाँ क्यों नही पुत्तर…!”
बुलबुल- “टॉबी के तो भाग्य ही खुल गए… जब चाहो आंटी जी के हाथ मे बने गरम-गरम पराठे मिलेंगे इसे तो..!”
सुनीता- “हा हा हा…. हाँ हाँ ये तो है…मेरा सोणा पुत्त!”
आखिर टॉबी गुल्लू की तरह बात क्यों कर रहा था, इस का राज तो हमें आगे ही पता चलेगा।
अगले दिन
तेजिंदर- “चलो बच्चो.. तुम सारेंया को एहजी जगह ले जाता हूं , जहां तुम खूब मौज मस्ती करोगे!”
टॉबी- “वाह…चलो जी, बहुत ही मजा आने वाला है!”
शुगर- “लेकिन हम लोग कहां जा रहे हैं?”
तेजिंदर- “एक बहुत ही सोहणी जगह है..वहां का मौसम काफी मस्त रहन्दा है… नदियां है.. और झरने वी है!”
सुनीता- “हाँ.. तजिंदर जी तो वहां पर घुड़सवारी करने जाते रहते हैं! कद्दू काट के”
टॉबी- “अच्छा… मुझे भी घोड़े के ऊपर बैठना है!”
तेजिंदर- “हां हां चलो चलो.. खूब मौज मस्ती करना वहाँ…!”
सुनीता- “हाँ.. और मैं तां नाल गरम-गरम पराठे भी बनाए हैं, ले चलांगे और वहां पर खावांगे!”
कर्मजीत- “हाँ…तो देरी किस बात की, चलो!”
करन- “तो चलिए फिर!”
इस के बाद तजिंदर सिंह अपनें कुछ घोडों को ले कर और बच्चों को ले कर वहां पर पहुंच जाता हैं…सभी बच्चे वहां पहुंच कर काफी खुश होते हैं क्योंकि वह जगह सच में काफी सुंदर थी।
बुलबुल- “वाह… क्या नजारा है ना लव!”
लव- “हां बुलबुल वास्तव में.. चलो आज खूब मौज मस्ती करेंगे यहां!”
कुश- “हाँ… बहुत दिन हो गए कुछ मौज मस्ती नहीं की है!”
कर्मजीत- “हाँ चलो.. चलो.. उस नदी में नहाते हैं.. करण!”
और करमजीत, लव, कुश और करण नदी में कूद जाते हैं…।
और सभी लोग एक दूसरे पर पानी फेंक कर खूब मौज मस्ती करते हैं।
थोड़ी देर बाद वे लोग नदी से बाहर आते हैं और घुड़सवारी करते हैं।
सुनीता टॉबी.. किन्ना प्यारा लग रहा है!
बुलबुल- “हॉं बिल्कुल!”
और तभी सुनीता को टॉबी के चेहरे में गुल्लू का चेहरा दिखाई देता है। वह चौंक जाती है
सुनीता- “हैँ!!! ये क्या था???”
बुलबुल- “क्या हुआ!”
सुनीता- “ना जी, कुछ नई!”
तभी सितारा को थोड़ी दूर एक छोटा सा खरगोश का बच्चा दिखाई देता है।
सितारा उस की तरफ जाता है
सितारा- “वाह…कितना प्यारा खरगोश है.. चलो इसे पकड़ता हूं!”
और सितारा उड़ते हुए उस के पीछे- लग जाता है…लेकिन खरगोश भाग कर काफी आगे निकल जाता है।
सितारा- “अरे प्यारे खरगोश कहां जा रहे हो, रुक भी जाओ!”
लेकिन खरगोश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था , तभी सितारा अपना जादू करता है और खरगोश को एक पिंजरे में बंद कर लेता है।
सितारा- “तुम से कहा था ना कि रुक जाओ… मुझे माफ करना , मैंनें तुम्हें पिंजरे में बंद किया…चलो अभी बाहर निकालता हूँ!”
तभी सितारा उसे पिंजरे से निकाल कर उसे अपनी गोदी में रख लेता है।
लेकिन तभी पीछे से एक साधु आ जाता है और वह बिना सोचे समझे सितारा को एक श्राप देता है।
साधु- “दुष्ट प्राणी!! तू… अपनी याददाश्त खो देगा…!”
साधु नें सितारा को यह श्राप इसलिए दिया था ताकि वह कोई जादू ना कर सके और वह भूल जाए कि वह एक जादूइ प्राणी है।
तभी तजिंदर सिंह, करण, बुलबुल और करमजीत सितारा को ढूंढते हुए वहां पहुंच जाते हैं।
कर्ण- “देखो वहां कोई साधु जा रहा है!”
करमजीत- “हॉं उस ने एक खरगोश उठा रखा है!!”
लव- “पर ये सितारा ऐसे क्यों मायूस हो कर बैठा है!!”
बुलबुल- “यहां पर क्या हुआ है? सितारा, बोलो..!!”
तभी सितारा बेहोश हो जाता है, सब घबरा जाते हैं।
टॉबी- “देखो तो… सितारा को क्या हुआ है .. लगता है ये बेहोश हो गया है!”
कर्मजीत- “हाँ… मै देखता हूं!”
कर्ण- “चलो हमे घर जाना चाहिए!!”
और करमजीत सितारा को अपने घोड़े पर बैठा लेता है.. और इस के बाद सभी लोग वापस घर चले जाते हैं।
करन- “सितारा को आखिर क्या हो गया?”
कुश- “वहीं तो.. इसे होश आ जाए तो हम इस से पूछते हैं!”
कर्मजीत- “हम्म… बस कुछ बड़ी गड़बड़ी न हुई हो!”
करन- “हाँ..उम्मीद तो है !”
बुलबुल- “डरो मत.. सितारा बिल्कुल सही होगा..!”
टॉबी- “सितारा…उठो मेरे मित्र…!”
शुगर- “हाँ सितारा…उठ जाओ न..!”
सब सितारा पर नजर गड़ाए बैठे थे और कुछ ही देर में आखिर सितारा उठ ही जाता है।
सितारा उठते ही जोर जोर से हंसने लगता है।
सितारा- “हा हा हा, हा हा हा!”
कुश- “अरे इसे क्या हुआ? “
कर्मजीत- “अरे सितारा तुम इतना क्यों हंस रहे हो आखिर क्या बात है? “
सुनीता- “हाँ पुत्तर…की होया?? हमें वी दस दे”
सितारा टॉबी की तरफ इशारा करता है।
सितारा- “हा हा हा हा.….वो, हा हा…!”
करन- “क्या???”
सितारा- “मुझे वो चाहिए!”
बुलबुल- “क्या??…!”
और सितारा टॉबी की ओर फिर से इशारा करता है।
टॉबी- “क्या !! मै???”
सितारा- “हाँ…ये मुझे खेलना है इस से !”
दरअसल सितारा टॉबी कों कोई प्यारा सा खिलौना समझ रहा था इसीलिए वह बार-बार उस की तरफ इशारा कर रहा था।
टॉबी सितारा के करीब जाता है तो सितारा उसे कस कर पकड़ लेता है और उस के गाल को जोर से नोचने लगता है।
सितारा- “अह्ह्ह…. कितना प्यारा है…. अह्ह्ह…!”
लव कुश- “हे भगवान!!”
टॉबी- “छोड़ दो सितारा मुझे , क्या कर रहे हो….!!”
सुनीता- “अरे…पुत्तर…टॉबी को छोड़ दे…उसे दर्द होगा…!”
बुलबुल- “हाँ…सितारा.. क्या हुआ है तुम्हे???”
आखिर सितारा ऐसा क्यों कर रहा था?? और टॉबी का गुल्लू से आखिर क्या नाता है?..यह जानेंगे हम अगले एपिसोड में…तो बने रहिएगा करण और उस के मित्रों के इस मजेदार सफर में..