76 – जंगली बिल्ली | Jungli Billi | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था
कि मणि सियार करण और बाकी लोगो से लड़ाई करने लगा था। वहीं टॉबी को कुछ अहसास होता है, फिर बुलबुल के लाल रंग डालने पर वहां एक परछाई बन गई थी जो कि किसी दूसरे प्राणी की थी। तो आखिर वह कौन था और वहां पर किस मकसद से आया था।
चलिए आगे जानते हैं-
तो सभी मित्र उस परछाई के पीछे-पीछे गए थे, लेकिन वह परछाई कहीं गायब हो गई थी.. वहीं दूसरी ओर मणि को कुछ याद ही नहीं था कि आखिर उस के साथ इन पलों में क्या-क्या हो गया।
मणि- “पता नही…ये क्या था…मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है!”
सियारिन पत्नी- “तुम चिंता मत करो, घर चलो और आराम करो!”
वहीं दूसरी ओर सभी साथी भागते हुए परछाई को ढूंढ रहे हैं।
सितारा- “अब ढूंढने से कोई फायदा नहीं है..हमें वापस जाना होगा! वो नही मिलेगी”
कुश- “हाँ… काफी देर से ढूंढ रहे हैं हम.. लेकिन उस का तो कहीं नामोनिशान ही नहीं है!”
कर्मजीत- “हां मिलेगा भी कैसे!! क्योंकि वह परछाई दृश्य ही नहीं है , उसे ढूंढना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही है, समझो!”
करन- “लेकिन जैसे भी कर के हमें उसे जल्दी से ढूंढना होगा , नहीं तो वह कोई और भी नुकसान पहुंचा सकती है!”
टॉबी- “आज मणि सियार भी उसी परछाई के प्रभाव में आ कर कर्ण पर हमला कर रहा था..!”
बुलबुल- “हाँ…लेकिन उसे कैसे ढूंढे, कहाँ ढूंढें.?? “
करण- “बस यही तो मुझे समझ में नहीं आ रहा बुलबुल…! हम रोजाना उस परछाई को ढूंढेंगे और इस परेशानी का हल निकालने का पूरा प्रयास करेंगे
टॉबी- “तो हम वापिस कब जायेगे कर्ण!”
करमजीत- “हॉं अगर हम यहां से चले गए तो यहाँ के वासी परेशानी में पड़ सकते हैं।
बुलबुल- “इन की सुरक्षा के लिए हमे यहां रहना ही होगा
परछाई को ढूंढते हुए कुछ दिन बीत जाते हैं और उन्हें वो परछाई कहीं नहीं मिलती।
3 दिन बाद, सितारा के माता पिता उन के पास आते हैं।
सितारा के पिता- “बेटा, करण.. तुम सब को हमारी इस जादूइ दुनिया में कई दिन रुकना पड़ा उस के लिए हमें खेद है..!”
कर्ण- “नही ऐसे मत कहिए!”
सितारा की माँ- “तुम सभी ने हमारे लिए जो किया , वह किसी चमत्कार से कम नहीं.. हमें पता है कि तुम्हें अपनी दुनिया में वापस जाना है.. इसलिए तुम सब अब यहां से जा सकते हो..
सितारा- “हाँ और इस मे मैं तुम्हारी मदद करूँगा!”
करण- “परंतु यह सब आप अकेले कैसे करेंगे? “
पिता- “तुम चिंता मत करो करण.. जिस तरह से पहले मिल कर संभालते थे.. उसी तरह से इस बार भी संभाल लेंगे!”
टॉबी- “अच्छा…!”
करण- “लेकिन..!”
माँ- “नहीं बेटा कुछ नहीं.. यह सब चीज हम पर छोड़ दो.. और तुम सब अब जाओ… समय काफी हो चुका है!”
और ना चाहते हुए भी करण को उन की बात माननी पड़ती है।
खैर सभी मित्र अपनी दुनिया में जाने के लिए मान गए थे।
बुलबुल- “माता जी, हमें आप सब की बहुत याद आएगी, आप का यह गाँव सच में अत्यंत सुंदर और लुभावना है!”
शुगर- “हां और यहां के वासी भी बहुत ही अच्छे हैं!”
सितारा- “मेरे गांव की इतनी तारीफ करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!”
माँ- “और हमारी तरफ से भी बहुत-बहुत शुक्रिया बच्चो.. चलो अब सभी लोग यहां आ कर खड़े हो जाओ!!”
तो सभी बच्चे उनकी बताई हुई जगह पर खड़े हो जाते हैं.. और तभी सितारा के माता और पिता अपनी आंखें बंद कर के कुछ मंत्र पढ़ते हैं और अपने हाथों को गोल घुमाते हैं..!”
मां- “ख्याल रखना बच्चों!”
पिता- “हमारा आशीर्वाद आप सब के साथ है…!”
और देखते ही देखते सभी बच्चों के चारों ओर जादुई नीला घेरा बन जाता है जो कि देखने में काफी सुंदर लग रहा था.. और कुछ ही देर में वे लोग अपनी दुनिया में वापस पहुंच जाते हैं। लेकिन वह जगह अनजान थी।
सितारा- “अब यहां से कहां चलना है?”
कर्मजीत- “रास्ता तो हमें पता नहीं है.. अब तुम ही हमारी सहायता करो सितारा!”
करन- “हाँ…सितारा! हम इस जगह से अनजान हैं ”
सितारा- “ठीक है.. मै तुम सब को अपने जादू से तुम्हारे घर पहुंचने का प्रयास करता हूं..!”
कुश- “हाँ.. आशा करता हूं कि जादू सही होगा!”
सितारा- “हा हा हा… हाँ… मैं भी वही सोच रहा हूं!”
कुश- “ठीक है तो जादू करो अब!”
सितारा- “सितारा है मेरा नाम जादू करना है मेरा काम…!”
और चुटकी बजाने के बाद सभी लोग एक अलग जगह पहुंच जाते हैं।
सितारा- “क्या यही तुम्हारा गांव है? “
बुलबुल- “अरे नहीं नहीं, यह तो हमारा गांव है ही नहीं!”
करमजीत- “न जाने कहाँ ले आया सितारा।”
सितारा- “क्या यह तुम्हारा गांव नहीं है?”
कुश- “हाँ.. तो जल्दी से अपना जादू दोबारा करो सितारा!”
सितारा (जल्दबाजी में)- “ठीक है! ठीक है, कर रहा हूँ….. सितारा है मेरा नाम, जादू करना है मेरा काम ” (चुटकी बजाता है)
और वह फिर से जादू करता है, जिस के बाद सभी लोग एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाते हैं, जहां पर बहुत ठंड है और चारों तरफ बर्फीले पहाड़ है।
टॉबी- “उफ़… यहां पर तो बहुत ठंड हो रही है सितारा… कहीं हम लोग यहां जम न जाएं!”
सितारा- “समझ में नहीं आ रहा, मेरा जादू सही क्यों नहीं हो रहा..!!”
कुश- “तो ये पहली बार थोड़ी ना हो रहा है…!”
सितारा- “ठहरो!!! .. मैं फिर से जादू करता हूं!”
और सितारा फिर से जादू करता है, इस के बाद सभी लोग एक गाँव मे पहुंच जाते है।
कुश- “दोस्तों!!..यह गांव तो कुछ देखा हुआ सा लग रहा है? “
लव- “हां देखा हुआ ही है!!”
टॉबी- “हां मैं भी याद करने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर यह कौन सा गांव है?!”
लव- “ये गाँव तो वही गांव है , जहां पर हमारी मुलाकात तजिन्दर सिंह और सुनीता रहते है!”
कर्मजीत- “हां लव.. तुम ने बिलकुल सही कहा, यह तो बिल्कुल वही जगह है!”
करन- “हाँ…चलो उतर जाते हैं.. क्या पता हमें उन से मिलने का मौका मिल जाए…!”
बुलबुल- “हाँ.. उन्होंने हमारी बहुत सहायता की थी.. हमें उन से अवश्य मिलना चाहिए..!”
टॉबी- “हाँ.. चलो..!”
और सभी लोग गांव के अंदर जाने लगते हैं लेकिन जब सभी लोग जाते हैं तो देखते हैं कि वहां पर गांव का एक भी आदमी नहीं है।
शुगर- “लगता है सभी गांव वासियों ने एक साथ यह गांव छोड़ दिया है!”
कुश- “हाँ..सभी लोग डर गए होंगे.. हो सकता है कि यहां पर कुछ गलत हुआ हो!”
कर्मजीत- “हाँ कुश, लग तो यही रहा है,!”
टॉबी- “आगे चलते हैं, देखते हैं कि शायद तेजिंदर और उन की पत्नी आगे जाने पर मिल जाएं।
करन- “काफी देर हो गयी है लेकिन वो लोग कहीं नहीं मिल रहे…!!”
बुलबुल- “हाँ.. गांव भी काफी बड़ा है.. क्या पता वे लोग किसी काम से किसी दूसरे गांव में गए हो!!
टॉबी- “तो अब हम क्या करें करण?”
करण- “थोड़ी देर और यहां रुक जाते हैं.. क्या पता वे लोग यहीं कहीं गए हो!”
और सभी लोग धीरे-धीरे थोड़ा और आगे जाते हैं।
अचानक वहाँ पर सभी को शेर के दहाड़ने की आवाज आती है।
शुगर- “अरे यह तो शेर की दहाड़ है.. चलो जल्दी से यहां से चलते हैं…!”
टॉबी- “हां कहीं यह शेर हम सब को खा ना जाएं!”
सितारा- “चलो.. यहां से चलो…!”
और तभी चारों तरफ से चार शेर वहां पर आ कर उन को घेर लेते हैं। सभी चौकन्ने हो जाते हैं
लव (कांपते हुए)- “ओह मां, शेर…
कुश- “सितारा…कुछ करो…बचाओ हमें!”
बुलबुल- “गांव में शेर क्या कर रहे हैं?”
सितारा- “डरो मत, मैं संभालता हूँ सब!”
सितारा- “सितारा है मेरा नाम, जादू करना है मेरा काम…!”
तभी सितारा उन शेरों पर जादू करता है। जिस के कारण उन शेरों के पैर काफी लंबे-और पतले हो जाते हैं लेकिन शेर तब भी उन लोगों की तरफ ही बढ़ रहे होते हैं।
कर्मजीत- “लगता है इन शेरों ने ही यहां पर आतंक मचाया होगा, तभी यहां के गांव वासी भाग गए हैं!”
करन- “हाँ… इन से अब हमें ही निपटना होगा..!”
बुलबुल- “हां करण !!! जरा संभल कर.. टॉबी और शुगर तुम लोग मेरे पीछे रहना!”
टॉबी- “हाँ बुलबुल…!”
कर्ण- “करमजीत!! हमले के लिए तैयार रहो…!”
करमजीत (तलवार निकाल कर)- “तैयार हूं…!”
तभी करण और करमजीत उन शेरों से लड़ने लगते हैं , वहीं सितारा अब फिर से उन पर जादू करता है और उन को बिल्ली बनाने का प्रयास करता है लेकिन जादू उल्टा हो जाता है.. और वो डरावनी बड़ी-बड़ी बिल्लियों में बदल जाते हैं।
लव कुश- “हे भगवान!!”
शुगर- “हे भगवान, यह क्या हो गया.
टॉबी- “सितारा., तुम मरवाओगे क्या हमें !”
करमजीत- “इन से लड़ना तो मुश्किल होता जा रहा है
और तभी पेड़ों की शाखों से लटकता हुआ तेजिंदर सिंह आता है।
तजिंदर- “Oye .. शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ता है…।”
बुलबुल- “ओय जी.. अह्ह्ह… तुसी इहाँ, बिलकुल सही केहा !”
सुनीता- “हहा… तुहाडी पंजाबी एकदम सही तां नहीं है लेकिन फिर भी ठीक है बेटा जी.. कद्दू काट के! ही ही ही”
कुश- “वाह.. अब तो हम सब को डरने की जरूरत नहीं है तेजिंदर सिंह जी जो आ गए हैं..!”
कर्मजीत- “हा हा हा…मजा आ गया इन को देख कर!”
वहीं तजिंदर और सुनीता बड़ी फुर्ती से उन बिल्ली बने शेरों से भिड़ जाते हैं।
करन- “ध्यान से पाजी!!”
तजिन्दर- “ओ जी हाँ.. करण.. तुसी फिकर ना करो जी..!”
सुनीता- “तुसी चढ़ जाओ एस बिल्ली दे उत्ते…!!”
तजिंदर- “हुण वेखो तुस्सी कमाल दी चीज…!”
तभी तजिंदर ऊंची कूद से एक बिल्ली की पीठ पर बैठ जाता हैं.. और उस के सिर पर हाथ रख कर कुछ मंत्र बोलता हैं, इस के बाद वह बिल्ली नियंत्रण में आ जाती है और चुपचाप नीचे बैठ जाती है।
वहीं दूसरी ओर सुनीता बाकी बिल्लियों को एक जाल मे बांध देती है।
बुलबुल- “रुकीये सुनीता जी… मैं भी आती हूं..! कस कर बांध देंगे इन को”
कुश- “हाँ..हम सब भी आते हैं, हा हा हा.!”.
और सभी लोग मिल कर उन बिल्लियों को जाल में फ़सा लेते है।
कर्मजीत- “हा हा हा… आप के आते ही सारा काम आसान हो गया!”
तजिन्दर- “हा हा हा.. ओ तां सच्ची गल हेगी जी, लेकिन तुसी सारेंया दी बहादुरी दा भी कोई जवाब नहीं है बच्चयों…!”
सुनीता- “हाँ.. शाबाश…!!!”
बुलबुल- “शुक्रिया जी शुक्रिया!”
तजिन्दर- “तो चलो, अब जल्दी से हमारे अड्डे पर चलते हैं और.. पेट पूजा करते हैं!”
सुनीता- “हाँ.. मैं तां जी गरम-गरम परांठे बनाने हैं! किसे नूं खाने है तां दस दो”
टॉबी- “वाह!!..पराठे !!! पराठे तो मुझे बहुत पसंद है!”
बुलबुल- “हा हा हा…ऐसी कौन सी चीज है जो तुम्हें पसंद नहीं है?”
टॉबी- “हम्म्म्म.. सच बोलू तो…ऐसी कोई भी चीज नहीं बुलबुल!”
शुगर- “पागल… कहीं के..!”
टॉबी- “हां तो चलिए ना जल्दी, चलते हैं अब आप के घर!”
तजिन्दर- “हां जी चल्लो चल्लो,. मेरे पीछे-पीछे आओ जी!”
और सभी तेजिंदर सिंह के घर में पहुंच जाते हैं।
तजिन्दर- “वैसे तां अस्सी लोग भी हुण एदर से जाने बारे ही सोच रहे हैं क्योंकि जी हुण एदर कोई नहीं रहन्दा है… अस्सी लोग भी फेर अकेले पड़ जांदे हां..!!”
बुलबुल- “हां.. वही मैं भी सोच रही थी कि आप लोग अकेले यहां पर कैसे रहते हैं! सुनसान गांव में”
सुनीता- “हाँ बेटा… चलो जी चलो, हुण मैं सारेंया लयी गरम-गरम पराठे ले कर आती हूं… तुस्सी सब खा लेना कद्दू काट के!”
सितारा- “छी.. छी , मुझे तो कद्दू पसंद ही नहीं!”
बुलबुल- “हा हा हा.. सितारा.. यह तो उन के बोलने का अंदाज है.. इस का मतलब यह नहीं है कि तुम्हें पराठे के साथ कद्दू खाने होंगे..!”
करण- “क्या सितारा तुम भी ना.. हा हा हा ये तो इन का तकियाकलाम है!”
तजिन्दर- “हाँ..जी पुत्तर…जी!”
और तभी सभी लोग बड़े मजे से खाना खाते हैं।
भोजन करने के बाद टॉबी की नजर एक कपड़े की गेंद पर जाती है। उस गेंद को देखने के बाद वह कुछ ऐसा बोलता है जिसे सुन कर तजिन्दर सिंह और सुनीता काफी हैरान रह जाते हैं।