Homeतिलिस्मी कहानियाँ74 – जादुई मुर्गी | Jadui Murgi | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

74 – जादुई मुर्गी | Jadui Murgi | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा कि करण और बाकी लोग उस सरदार को हरा कर अपनी दुनिया में वापस लौट चुके थे। लेकिन वहीं सितारा के गांव में एक और मुसीबत भी आन पड़ी थी। कुछ भयानक फूल गांव वासियों को खा रहे थे। इस के साथ ही आप ने देखा कि सभी मित्रों के सूझबूझ से यह मुसीबत भी टल गई थी। लेकिन क्या सच में मुसीबत टल गई थी??

सभी फूल सूख चुके थे इसीलिए सभी गांव वासी अब खुशी के मारे झूम रहे थे।

गाँव की औरत- “सितारा के मित्रों ने वह कर दिखाया है जो कोई ना कर सका!”

सितारा की माँ- “हाँ.. यह तुम बिल्कुल सही कह रही हो, हमें गर्व हैं सब बच्चों पर!”

मुखिया- “हां बहुत बहादुर है बच्चे…!!”

सितारा के पिता- “हाँ.. अब तो मुझे भी यकीन हो गया कि यह बच्चे सच में कमाल के हैं.. लेकिन गगन का क्या करें.. वह तो एक शैतान में बदल चुका है !”

सितारा- “हाँ…पिता जी…मुखिया जी.. कृपया आप गांव की सुरक्षा और भी बढ़ा दीजिए!”

मुखिया- “हाँ..मै जादुई सिपाहियों की संख्या दोगुनी कर देता हूं!”

करण- “हां मुखिया जी, जल्दी से यह कार्य कीजिये!”

कुछ ही देर में, अचानक से टॉबी के पेट से भूख के मारे अजीब अजीब आवाजें आने लगती है। और सभी टॉबी को घूरने लगते हैं।

टॉबी- “उ~~~ माफ करना, लगता है मेरे पेट को कुछ चाहिए!”

करण- “हहा हाहा हा.. मुझे मालूम है तुम्हें भूख लगी है ना?.. चलो अब कुछ अच्छा सा भोजन करते हैं!”

लव- “भूख तो हमें भी लगी है!!

कुश- “हाँ.. चलो करण..!”

सितारा की मां- “चलो घर, सभी के लिए खाना बनाती हूँ!!”

और इस के बाद सभी लोग घर जाते हैं और भोजन करते हैं।

कुछ ही देर में, सितारा की मां सब के पास आती है।

मां- “सीतारा तुम्हें याद है ना कल गाँव मे मेला लगेगा…!”

शुगर- “वाह्ह…मेला…??? “

लव- “खूब मजा आएगा फिर तो…!!”

माँ- “हाँ.. प्रत्येक वर्ष इस मौसम में हमारे गांव में मेला लगता है!”

सितारा- “हाँ.. यह तो मेरे दिमाग से ही निकल गया था मां.. !!”

बुलबुल- “फिर तो हम भी जाना चाहते हैं मेले में!!”

कर्ण- “हां , हम जा तो सकते हैं ना??”

सितारा- “बिल्कुल कर्ण, तुम सब को वहां मेले में बहुत मजा आने वाला है…!”

माँ- “हाँ… सभी लोग विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां दिखाते हैं और अपने हाथों से बनाई हुई वस्तुओं को बेचते हैं!”

करमजीत- “रहने दो, क्या करेंगे मेले में जा कर, कुछ खास नही होगा!!”

सितारा- “ऐसा नही है करमजीत, मैं तो कहता हूं कि तुम सभी लोगों को वहां मेले मे जरूर जाना चाहिए!”

कर्मजीत- “ठीक है फिर, चलेंगे!”

बुलबुल- “हाँ.. इसी बहाने बचपन की कुछ यादें भी ताजा हो जाएगी!”

करन- “हाँ बुलबुल…!”

खैर सभी सो जाते हैं और अगले दिन मेला लग जाता है। लेकिन अभी तक कोई उठा नही था, तभी सितारा की माँ सब को उठाने जाती है

मां- “बच्चों, उठ जाओ, मेला लग गया है!!”

ये सुनते ही सब उछल कर उठ जाते हैं। शुगर और टॉबी नाचने लगते हैं।

शुगर टॉबी- “yeaahhh, yeaahh…

बुलबुल- “वाह आज तो मेले में जाएंगे!”

लव- “खूब मजे करेंगे…!’

माँ- “हां जल्दी से उठो, जाओ और सितारा, अपने सभी मित्र को मेला घुमा कर लाओ…!”

सितारा- “हाँ माँ…!”

बुलबुल- “हां हां चलो चलो, मैं तो रात से ही बड़ी बेताब हो रही हूं मेले में जाने के लिए!”

टॉबी- “हाँ… मैं तो वहाँ खूब ढेर सारे पकवान खाऊंगा!”

शुगर- “ओफ हो, टॉबी, ढ़ेर सारे पकवान खाने के चक्कर में कहीं तुम अपना पेट मत खराब कर देना!”

सितारा- “हा हा हा… वहीं तो..!”

कुश- “हाँ…अब चलते है मेला..!”

और सभी लोग मेले में जाते हैं.. जब वे लोग मेले में पहुंचते हैं तो देखते हैं कि वहां पर बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है…चारों तरफ रंग बिरंगे गुब्बारे, रंग बिरंगी मिठाइयां, और बच्चों के लिए खिलौने थे!

टॉबी- “वाह… यहां तो बहुत मजा आने वाला है!”

शुगर- “हाँ…टॉबी.. अरे देखो.. वहां पर झूले भी लगे हुए हैं, चलो झूला झूलते हैं!”

लव- “हाँ… चलो चलो…!”

और सभी लोग झूले के पास जाते हैं।

करण- “चलो पहले शुगर और टॉबी, दोनों झूले में बैठ जाओ…!”

लव- “फिर मेरी बारी…!”

बुलबुल- “एक एक कर के बैठो…!!”

और इस के बाद बाकी सब झूले में बैठ जाते हैं और झूला चलने के बाद सभी बच्चों को बहुत मजा आता है और सभी लोग मौज-मस्ती में चिल्लाते हैं।

टॉबी- “भौ भौ…अह अह…क्या बात है.. वीईईईई…उ…उ….उ.!”

शुगर- “हा हा हा…टॉबी… यह तुम कैसी-कैसी आवाज निकाल रहे हो टॉबी??”

बुलबुल- “टॉबी तो पागल हो गया है लगता है

टॉबी- “हा हा हा… मुझे बहुत खुशी हो रही है ना शुगर बस इसीलिए!!”

शुगर- “पागल कहीं के….!”

टॉबी शुगर की तरफ देखा है और प्यार से मुस्कुराता है।

टॉबी- “शुगर तुम हंसते हुए कितनी प्यारी लगती हो!”

शुगर- “तुम तो हमेशा यही कहते रहते हो..!”

टॉबी- “हाँ.. क्या करू…तुम हो ही इतनी प्यारी..!”

शुगर- “बुद्धू…!”

टॉबी- “हा हा हा हा….!”

और थोड़ी देर बाद सभी लोग झूले से उतर जाते हैं।.. झूले से उतरने के बाद वो आधा मेला घूम लेते हैं और खूब मौज मस्ती भी करते हैं।

करण- “वास्तव में सितारा यह मेला तो काफी अच्छा है!”

कर्मजीत- “हां और यहां पर ऐसी-ऐसी चीज देखने को मिल रही है जो हम ने पहले कभी नहीं देखी थी!”

बुलबुल- “हाँ कर्मजीत….देखो तो उड़ने वाले घोड़े, उड़ने वाले कीट, कितने खूबसूरत हैं..!!!”

लव- “वाकई मे, ये तो अद्भुत नजारा है!”

सितारा- “चलो अच्छा है..कम से कम तुम सब को पसंद तो आया!”

कुश- “कैसी बातें कर रहे हो, सितारा !! पसंद क्या.. हमें तो बहुत ही ज्यादा पसंद आया!!”

कर्मजीत- “हाँ… इस में तो कोई कहने वाली बात ही नहीं है!”

सितारा खुशी से यहां वहां आसमान में उड़ने लगता है और अपना सिर झुका कर एक सुनहरा घेरा बना लेता है।

सितारा- “शुक्रिया शुक्रिया!”

और तभी वहां सितारा का एक मित्र आता है।

सितारा का मित्र- “सितारा…देखो, बून्नू चाचू नें इस बार फिर से एक नया खेल रचा है..!”

सितारा- “अच्छा इस बार कौन सा खेल रचा है उन्होंने? “

सितारा का मित्र- “अरे एक मुर्गी है.. बन्नू चाचा वह मुर्गी कहीं और से लेकर आए हैं…उस मुर्गी को पकड़ना नामुमकिन है और चाचा ने कहा है कि जो भी उस मुर्गी को पकड़ लेगा वह उन्हें एक जादुई कड़ा देंगे..जो रात के अंधेरे में भी चमकता होगा!”

सितारा- “हम्म.. अच्छा, फिर तो हमें देखना चाहिए, क्यों दोस्तों क्या कहते हो..!”

कर्ण- “हां बिल्कुल, हम सब चलते हैं”

मित्र- “हाँ…तो चलो और उस मुर्गी को पकड़ने की कोशिश करो.. !”

और सभी साथी बन्नू चाचा की दुकान पर जाते हैं। वहां एक तरफ मैदान में मुर्गी घूम रही थी।

चाचा- “आओ सितारा बेटा.. तुम्हारा ही इंतजार था मुझे!”

सितारा- “अच्छा चाचा..!”

चाचा- “हाँ…जाओ और मुर्गी कों पकड़ कर दिखाओ…लेकिन याद रहे कि तुम इस मुर्गी पर कोई जादू नहीं कर सकते!”

सितारा (सिर हिलाता हुआ)- “जी चाचा जी…अभी जाता हुँ..!”

और वो मुर्गी को पकड़ने के लिए मैदान मे चला जाता है।

और थोड़े ही देर में मुर्गी और सितारा में पकड़म पकड़ाई शुरू हो जाती है… मुर्गी काफी तेजी से दौड़ती है इसीलिए सितारा उसे पकड़ नहीं पा रहा है।

सितारा- “चिंता मत करो मित्रों, मैं इसे पकड़ कर ही रहूंगा!”

करण- “हाँ.. लगे रहो भाई. हा हा हा.!”

बुलबुल- “हाँ.. तुम यह कर सकते हो सितारा!”

सितारा- “चालाक मुर्गी, तुझे तो मैं पकड़ कर ही ही रहूंगा!”

लव- “लगता है सितारा थक गया है, ये मुर्गी तो काफी तेज है!”

करमजीत- “हां पकड़ में ही नही आ रही

सितारा काफी देर तक मुर्गी के पीछे भागता है लेकिन बहुत मेहनत करने के बाद भी मुर्गी सितारा के हाथ में नहीं आ रही थी।

कर्ण- “सितारा रहने दो, तुम बहुत थक गए हो!”

सितारा (करण के पास आ कर)- “लगता है कोई चाल चलनी पड़ेगी करण….बुन्नू चाचा ने कहा है कि मैं मुर्गी पर जादू नहीं कर सकता…

कर्ण- “हां !!”

सितारा- “लेकिन यह तो नहीं कहा ना कि मैं खुद पर जादू नहीं कर सकता…मै खुद को मुर्गी के दाने में बदल लेता हूं.. जब वो मुझे खाने आएगी तो मैं मौका पा कर उसे पकड़ लूंगा!!

करण- “हाँ.. अब जाओ…सितारा!”

तो सितारा खुद को मुर्गियों के दानों में बदल देता है.. वही जब मुर्गी की नजर उन दानों पर पड़ती है तो वह उसे खाने आती है..और तभी सितारा अचानक से फिर से अपने रूप में आ जाता है और उसे पकड़ने लगता है लेकिन मुर्गी फिर से भाग जाती है।

बुलबुल- “उफ्फ्फ.. तुम ने थोड़ी जल्दी कर दी सितारा… जरा धैर्य रखना था!”

सितारा- “हाँ बुलबुल…बड़ी चालाक है ये मुर्गी तो.!”

और इस के बाद सितारा फिर से एक नया उपाय सोचता है।

करन- “सितारा तुम काफी थक गए हो.. इसलिए तुम्हें जो भी करना है, जल्द ही करना होगा!”

बन्नू चाचा- “हा हा हा अरे कोई बात नहीं सितारा बेटा ! अगर तुझ से नहीं हो पा रहा है तो तू रहने दे.. तू घर जा और आराम कर!”

सितारा- “नहीं नहीं बन्नू चाचा.. जब मैंनें एक बार कह दिया कि मैं इस मुर्गी को पकड़ूंगा… तो मैं इस को पकड़ कर ही रहूंगा, आप इस बात की चिंता मत करिए!”

बन्नू चाचा- “चल ठीक है बेटा, तेरी जैसी मर्जी,!”

और इस के बाद सितारा उस मुर्गी को एक बार और पकड़ने की कोशिश करता है.. उसे लगा था कि शायद मुर्गी भी थक गई होगी लेकिन ऐसा नहीं था बल्कि मुर्गी की रफ्तार और भी तेज हो गई थी।

लव- “ओह हो, मुझे नही लगता कि सितारा जीत पायेगा!”

कुश- “नहीं भाई… जैसा तू सोच रहा है वैसा बिलकुल भी नहीं है..मुझे पता है कि सितारा यह काम आसानी से कर लेगा!”

बुलबुल- “हम्म्म्म… कुश सही कह रहा है!”

तभी थोड़ी देर बाद सितारा को बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है.. वहीं वह अपने मित्रों की तरफ देखता है कि करण और करमजीत उसे मुस्कुरा कर देख रहे थे।

सितारा (धीरे से)- “मुझे जीतना ही होगा…वाह्ह्ह… एक अच्छा उपाय सूझा है मुझे!”

सितारा- “सितारा है मेरा नाम.. जादू करना है मेरा काम!”

सितारा जैसे ही चुटकी बजाता है, वह खुद एक चूजे में बदल जाता है।

सितारा (चूजे की आवाज निकाल कर)- “माँ.. माँ…..!”

यह आवाज सुन कर मुर्गी रुक जाती है और एकटक इस चूजे को देखती रहती है।

सितारा (चूजा) अपना सिर हिला कर मुर्गी को अपनी तरफ बुलाता है.. अब मुर्गी से रहा नहीं जाता और वह उस चूजे के पास चली जाती है।

मुर्गी- “कुकड़ू कु……कु..!”

चूजा- “मां…!!”

तभी मुर्गी जस चूजे को गले लगा लेती है.. वहीं इस बार सितारा जल्दबाजी नहीं करता है और थोड़ी देर रुकता है..।

चूजा- “माँअअअअअ… माँ…!”

मुर्गी- “कुकडु कुकडु कु..!”

और सही मौका पा कर सितारा अपने असली रूप में आता है और तुरंत ही इस बार मुर्गी को पकड़ ही लेता है।

बुलबुल जोर-जोर से ताली बजाती है।

बुलबुल- “वाह वाह!!… तुम्हारे दिमाग का तो कोई जवाब नहीं सितारा!”

लव कुश- “वाह शाबाश!!”

वहीं बन्नू चाचा भी यह देख कर हैरान रह जाते हैं।

बन्नू- “वाह!!!…बेटा!! मान गए तुम्हें तो… आओ और अपना पुरस्कार ले लो!”

सितारा- “हा हा हा…मै जीत ही गया आखिर!!”

फिर सितारा हवा में यहां वहां खुशी से उछलने लगता है!

लेकिन वहीं सितारा की नजर उस मुर्गी पर जाती है जो कि बहुत दुखी थी। तो आखिर ऐसा क्यों था

जानेंगे हम अगले एपिसोड में.. तो बने रहिएगा तिलिस्मी कहानी के अगले एपिसोड तक।

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