73 – आदमखोर पौधा | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि किस तरीके से सरदार ने सितारा को अपने वश में कर लिया था। जिस से वहां पर बहुत तबाही मच गई थी। वहीं सरदार अपने बड़े-बड़े लड़ाकुओं से कर्ण का युद्ध भी करवाता भी है। वहीं अंत मे सितारा ने सही जादू कर के सभी की जान भी बचा ली थी।
तो सितारा ने सेना के सभी आदमियों को बच्चे मे परिवर्तित कर दिया था और इसी के साथ उस की मां भी उसे मिल गयी है।
लेकिन सभी मित्र आश्चर्य में है कि आखिर उस की मां यहां तक कैसे पहुंच गयीं थीं।
सितारा (गले लगा कर)- “माँ…आप ठीक तो है ना.. ! मैं बहुत डर गया था!”
मां- “हां सितारा, देख मैं बिल्कुल ठीक हूँ!”
लव- “देखा सितारा, हम ने कहा था न तुम्हारी मां को कुछ नही होगा!”
सितारा- “हां मां! पर आप कहां थीं और आप यहां तक अकेली कैसे आ गयीं?”
माँ- “बेटा, ना जाने कैसे कोठरी का पहरेदार अचानक से बच्चे में बदल गया , तो मैंने जैसे तैसे कर के काल कोठरी की चाबी उठा ली थी.. और बस ताला खोल कर रास्ता ढूंढते- ढूंढते यहां तक पहुंच गई !”
सितारा- “अच्छा माँ..हा हा हा!”
लव- “ये तो सितारा के जादू से हुआ था, इसी का कमाल है सब!
मां- “लेकिन बेटा… इतना कठिन कार्य तुम ने कैसे किया??”
करमजीत- “ये तो हम भी जानना चाहते हैं कि सितारा ने सब कैसे किया!”
लव- “सितारा,बताओ ना, यह सब कैसे हो पाया?”
सितारा- “हाँ.. दरअसल..मै करण से दिमाग़ के सहारे वार्तालाप कर सकता हूं…तो इसी दौरान करण ने मुझे बताया कि मैं सरदार के वश में था…वहीं करण ने ही बाद में मुझे यह उपाय बताया कि मै उस के वश में होने का नाटक करूं और मौका देख कर जादू कर दूँ!”
लव (हैरानी से)- “क्या!!! सच मे कर्ण??”
कर्ण- “हां लव, दरअसल मुझे यह ताकत सितारा ने ही दी है.. और सितारा उस समय ऐसा व्यवहार कर रहा था जैसे कि वह अभी भी सरदार के वश में हो।”
करमजीत- “अच्छा, खैर सब कुछ ठीक हो चुका है.. तो हम सभी अपनी दुनिया में वापस चले जाते हैं।
इस के बाद सभी वापिस अपनी दुनिया मे अपने साथियों के पास आ जाते हैं, और सितारा की माँ को देख कर सब बहुत खुश थे।
पिता- “तुम आ गयी ??…धन्यवाद बच्चों!”
बुलबुल- “वाह तुम सभी ने तो कमाल कर दिया!”
माँ- “हाँ……हमें इन सब बच्चों पर गर्व है..ये बहुत बहादुर और समझदार हैं!”
सितारा- “मां आज तो आप के हाथ का बना ही कुछ खाएंगे हम!”
लव कुश- “हम भी!!”
मां- “हा हा हा, हां जरूर बच्चों, अभी बनाती हूँ!”
इस के बाद सभी खूब बातचीत करते हैं और कुछ ही देर में भोजन का आनंद लेते हैं।
उसी रात
सितारा- “करण, लव और करमजीत.. तुम सब को मेरी वजह से बहुत सारी परेशानियां उठानी पड़ी.. मुझे माफ कर देना!”
लव- “कैसी बात कर रहे हो सितारा.. मित्रता के लिए तो हम सब मर मिटने को भी तैयार है..और तुम्हारी सहायता करना हमारे लिए गर्व की बात है!”
कर्मजीत- “हाँ सितारा, तुम अपना ध्यान इन सब बातों पर मत लगाओ, जादू पर लगाओ बस!”
करन- “हा हा हा, हाँ कही फिर से करमजीत की चोटी लंबी मत कर देना हा हा हा!”
बुलबुल- “हाँ लगता है करमजीत सितारा से डरा डरा सा रहने लगा है!”
टॉबी- “हा हा हा.. लेकिन.. मेरी मानो तो तुम लंबी चोटी में भी काफी अच्छे लगते थे करमजीत!”
कर्मजीत- “अच्छा??..उड़ा लो उड़ा लो.. जितना मजाक उड़ाना है उड़ा लो टॉबी…!”
शुगर- “अरे टॉबी, तुम भी ना.. ऐसे बार-बार किसी का मजाक नहीं उड़ाते!”
कर्मजीत- “हाँ…और क्या… शुगर तुम ही इसे समझाओ अब…मैं तो इसे समझा समझा कर थक गया हूं!
बुलबुल- ”हाँ.. टॉबी तो सिर्फ तुम्हारी ही बात सुनता है शुगर…भई अब तो हम सब पराये हो गए हैं हा हा हा!”
लव- “हाँ..शुगर के अलावा टॉबी को कोई नजर नही आता!”
टॉबी- “बस भी करो बुलबुल…तुम भी ना..माना कि मै शुगर की सारी बात सुनता हूं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं औरों की बातें नहीं सुनता!”
करण- “हम्म…टॉबी.. बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे!”
टॉबी- “करण…तुम भी लग गए उन के साथ, ऐसा नही है…!”
बुलबुल- “कोई बात नही टॉबी…हम तुम्हारी भावनाओं को अच्छे से समझते हैं.. सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है…क्यों शुगर !! मैंने सही कहा ना? हा हा”
शर्म के मारे शुगर के गाल लाल हो जाते हैं।
शुगर- “हम्म्म…ह्म्म्म!”
टॉबी- “वाह शुगर… शर्माती हुई कितनी सुंदर लगती है ना.. देखो उस के गाल एकदम लाल हो गए हैं!”
तभी शुगर अपने पंजे से टॉबी के सिर पर हल्के से मारती है।
शुगर- “ओह हो बुद्धू, यह सब बातें सब के सामने नहीं बोलते,..!”
करण- “हा हा हा. तुम दोनों एकदम कमाल के हो!”
और बाकी सभी लोग भी जोर-जोर से हंसने लगते हैं। खैर रात में सभी आराम से सो जाते हैं।
सुबह के वक्त, सितारा के पिता के पास एक नेवला आता है, जो उन के गांव का ही रहने वाला है।
नेवला- “गुरू जी… न जाने हमारे गांव को किस की नजर लग गई है , फिर से एक और मुसीबत आन पड़ी है!”
सितारा के पिता- “अब क्या हुआ???“
नेवला- “ यहाँ तो क्या बताऊँ, आप चलिए, मुखिया जी ने आप को बुलाया है..!”
पिता- “अरे लेकिन हुआ क्या है ,कम से कम यह तो बता दो!”
माँ- “हाँ..बताओ तो!”
नेवला- “वो.. गांव के खेत में अचानक रात को ही विचित्र से फूल खिल गए हैं जिन का आकार काफी विशाल है.. गांव के पांच लोगों ने दावा किया है कि उस विचित्र फूल ने गांव के एक वासी को निगल लिया है.. उस समय बहुत रात हो रही थी!”
सितारा- “क्या????.गांव वासी को फूल ने निगल लिया, ये कैसा फूल है..!”
नेवला- “ये मुझे नही मालूम सितारा, तुम भी जल्दी चलो हमारे साथ!”
कर्ण- “हम सब भी चलते हैं
पर सभी लोग उस गांव के खेत के पास पहुंच जाते हैं। वहां कुछ गाँव वासी और मुखिया पहले से ही मौजूद थे।
मुखिया- “देखिए ना.. हमारे गांव में यह सब क्या हो रहा है , समझ में ही नहीं आ रहा? “
लव- “करण.. हम उस सरदार के चक्कर में गगन को तो भूल ही गए… लगता है यह काम उसी का होगा या फिर उस ने किसी शत्रु की सहायता की होगी!”
करण- “हाँ क्यूंकि गगन सरदार का आदमी तो नहीं था ,वह बस गांव के शत्रुओं का साथी बन जाता है?”
सितारा- “हां करण…..तुम ने बिलकुल सही कहा!”
करण- “परंतु पहले हमें इस समस्या से निपटना होगा…वरना ना जाने यह कितने लोगों को ही निगल जाएगा!”
बुलबुल- “देखो..तो यह फूल कितने भयानक लग रहे हैं, कितने बड़े भी हैं….!!..!”
कुश- “हाँ बुलबुल…गाँव वाले सही ही कह रहें होंगे…यहां मुझे भी अजीब सा महसूस हो रहा है!”
मुखिया- “हाँ.. हमें कुछ करना होगा..!”
पिता- “कोई उपाय तो सोचना ही होगा… वह भी जल्द से जल्द! ये फूल नही है, दानव है”
मुखिया- “कुछ उपाय सूझ नहीं रहा है…लेकिन हम एक काम कर सकते हैं..? “
माँ- “क्या? बताइये मुखिया जी “
मुखिया- “जी… हम यह कर सकते हैं कि यहां पर रात भर रुकें और इन फूलों पर नजर रखें.. और जैसे ही फूल किसी को खाने की कोशिश करेगा वैसे ही हम इस को रोकेंगे!”
पिता- “हम…लेकिन.. यहां पर तो बहुत सारे फूल हैं..क्या पता किस में से कौन सा फूल दानव का रूप ले ले..!”
माँ- “हाँ… इस की पहचान कैसे हो पाएगी?.. यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है!“
गाँव का आदमी- “गुरू जी.. मैंने तो बस यही देखा था कि उस भयंकर फूल ने बहुत बड़ा मुंह फैलाया जिस के अंदर वो आदमी समा गया था!”
सितारा- “हे भगवान…!”
करमजीत- “आप सब डरिए मत…हम सब साथ है ना..इस मुसीबत से भी निकल जाएंगे!”
करण- “हाँ..बिल्कुल, सही कहा करमजीत..!”
कर्मजीत- “हाँ… लेकिन हम सभी को रात भर सावधान रहना होगा क्योंकि कभी भी कुछ भी हो सकता है.. और गांव वालों के अनुसार तो वह फूल रात में ही आक्रमण करता है!”
सितारा- “हाँ.. देखते हैं ,आखिर कौन है जो गांव वासियों को खा रहा है!”
तो गांव के करीब 15 आदमी, करण के सारे मित्र, सितारा के माता-पिता और मुखिया भी आधी रात तक जागते है।
रात काफी हो चुकी थी और सभी लोग टकटकी लगाए हुए उन फूलों की तरफ ही देख रहे थे!
बुलबुल- “करण… तुम्हें कुछ दिखाई दिया क्या?”
करण- “नहीं…अभी तक तो कुछ नही !”
बुलबुल- “आधी रात हो चली है और मौसम भी काफी भयानक सा लग रहा है..!”
करण- “तुम डरो मत… ये हम सब को डराने की पूरी कोशिश हो रही है!”
सितारा- “हां करण…!”
और थोड़ी देर बाद एक आदमी की जोर से चीखने की आवाज आती है।
सभी मित्र वहां पर दौड़ कर पहुंचते हैं और देखते हैं कि उन में से एक फूल ने उस आदमी के आधे शरीर को निगल लिया है और उस के सिर्फ पैर ही दिख रहे हैं।
लव (डर कर)- “ययय ये, हे भगवान???….
कर्ण- “कर्मजीत खींचो उसे, मेरी मदद करो…!”
कुश- “हाँ हाँ.. करण , मैं भी करता हूँ..!”
और सभी साथी मिल कर उस आदमी को उस फूल के मुंह से निकालने की कोशिश कर रहे है। करमजीत फूल को काटने की भी कोशिश करता है, पर कुछ नही होता।
बुलबुल- “हे भगवान!!.
लव- “जोर लगाओ!!”
शुगर- “काट दो इन फूलों को.!”
करमजीत- “नही कट रहे, मैंने ये भी कर के देख लिया, बहुत मजबूत फूल हैं ये!”
और बहुत कोशिश के बाद आखिर वह आदमी फूल से बाहर निकल आता है लेकिन उस का आधा शरीर तो एक पौधे में बदल चुका था।
मुखिया उस आदमी को उठाता है लेकिन उस के शरीर में कोई हलचल नहीं थी!
मुखिया- “हे ईश्वर!!”
करन- “लगता है देर हो गई है!”
टॉबी- “ये फूल तो जानलेवा है!”
मुखिया- “अब कुछ ही देर में सुबह हो जाएगी, हम सभी को घर जाना चाहिए, और रात होने से पहले उपाय ढूंढना होगा!”
सितारा के पिता- “ठीक है मुखिया जी, चलो सभी घर पर!’
सभी परेशान हो कर अपने अपने घर चले जाते हैं।
वहीं सभी साथी हल सोचने में लगे थे।
बुलबुल- “देखो करण.. जैसा कि फूल को बढ़ने के लिए पानी की आवश्यकता होती है.. क्या हो अगर उस जमीन के पानी को सोख लिया जाये…??”
टॉबी- “हाँ बुलबुल…ये उपाय अच्छा है. पर पानी कैसे सोखेंगे.!”
शुगर- “वही तो, यह काम तो आसान नहीं होगा!”
सितारा- “हाँ शुगर…लेकिन एक बार प्रयास तो करना ही होगा!”
कुश- “हम्म्म..ठीक है!”
कर्ण- “पर यह कार्य हमे दिन में करना होगा, क्योंकि रात के ये फूल जानलेवा हो जाते हैं!’
करमजीत- “हां हम दोपहर में ही जाएंगे!’
सितारा- “मैं करूँगा ये काम पूरा!”
और दोपहर में सितारा अपने जादू से उस खेत मे लगे हुए फूलों के पास जा कर वहां की जमीन का पानी मुँह से खींचने लगता है..।
लेकिन तभी उन फूलों के बड़े-बड़े मुंह से कांटे निकलने लगते हैं।
कर्ण- “ओह नहीं, इन मे से तो कांटे निकल रहे हैं!”
करमजीत- “इन्हें तो अभी हटा देते हैं, चलो सभी इन कांटों को हटाते हैं
तो सभी मित्र अपनी-अपनी तलवारों से उन कांटों को हटा रहे हैं..! तभी बाकी गांव वासी भी वहाँ आ जाते हैं।
करण- “सितारा , तुम अपना ध्यान रखना… हम यहां पर सब संभाल रहे हैं!”
मुखिया- ”वाह!..यह बच्चे तो कमाल के है.. बड़ों से भी ज्यादा बहादुर और कुशल मालूम पड़ते हैं!”
सितारा के पिता- “हाँ मुखिया जी… आप ने बिल्कुल सही कहा!”
करमजीत- “शायद पानी सूख जाने के बाद हम इन फूलों को काट सकते हैं!”
करन- “हां इन फूलो कों काटना होगा…वरना जमीन में फिर से पानी आने से ये बढ़ने लगेंगे!”
कुछ देर बाद, करण कुछ फूलों को काट देता है!!
और तभी एक फूल कर्ण को अपने अंदर खींचनें लगता है।
लव कुश- “नही….~~~~!!
बुलबुल- “करण… सम्भल कर…!”
टॉबी- “करन~~~~!!
शुगर- “बचाओ कर्ण को!”
तभी करमजीत भाग कर उसे पकड़ लेता है…लेकिन वहीं सही वक़्त पर सितारा वहां की जमीन के पानी को खींच चुका होता है जिस से फूल मुरझा जाता हैं।
कर्ण- “बाल बाल बच गया मैं!”
बुलबुल- “सभी फूल मुरझा रहे हैं!”
टॉबी- “लगता है मुसीबत टल गई!”
तो क्या वास्तव में मुसीबत टल चुकी थी या कुछ और भी होने वाला था? जानेंगे हम तिलिस्मी कहानी के अगले एपिसोड में।