62 – जादुई आँखें | Jadui Aankhein | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि सभी दोस्त एक बूढी अम्मा के घर में रुके हुए थे और इसी दौरान एक नकाबपोश आदमी कर्मजीत पर हमला करता है। वहीं कोई बहरूपिया बूढी अम्मा का रूप ले कर उन सभी मित्रों पर हमला करता है। सब कुछ ठीक होता नजर आता है कि अचानक एक आदमी करन के ऊपर तीर चला देता है।
तीर बड़ी तेजी से कर्ण की तरफ आ रहा था.. लेकिन वह बूढी औरत तीर को दूर से ही देख लेती है
बूढ़ी औरत (घबरा कर)- “हे भगवान, कर्ण बेटा…!”
इतना कहने के साथ ही वह करण के सामने आ जाती है जिस के कारण वह तीर सीधे उस बूढी औरत के सीने पर लग जाता है।
बुलबुल- “लव कुश-“नही…!!”
टॉबी शुगर- “दादी माँ…!!”
कर्ण- “ये क्या किया आप ने दादी माँ!!”
चिड़िया- “हे ईश्वर!! कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर यह अचानक से क्या हो गया। तीर कहां से आया
करन- “दादी माँ??… यय ये???… आप ने ऐसा क्यों किया???”
बूढ़ी (तकलीफ में)- “ब. ब. बेटा.. तेरी जान बचाने के लिए ..
वधिराज- “अम्मा को सम्भालो पहले…!”
करमजीत- “जल्दी से इन्हें अंदर ले कर चलो!!”
तो वधिराज उन्हें उठा कर अंदर ले जाता है, वह दर्द से तड़प रही थी।
चिड़िया- “जल्दी से इन का उपचार करना होगा!!”
बुलबुल- “हम इन्हें देखते हैं कर्ण, लेकिन आप सब मे से कुछ लोगों को सुरक्षा के लिए बाहर भी जाना चाहिए!!”
टॉबी- “हॉं शायद.. हमलावर अभी भी आसपास ही हो!!
लव- “हम इन की देखभाल करते हैं, करन, तुम करमजीत और वधिराज के साथ बाहर देखो!!”
कुश- “हां, लव सही कह रहा है!”
करमजीत- “चलो कर्ण, वधिराज…!!”
तो वधिराज, करण और करमजीत बाहर उस आदमी को देखने के लिए जाते हैं लेकिन उन्हें कहीं कोई भी नहीं दिखाई दे रहा था
करण- “हवा भी बंद हो हो गयी है.. लगता है यह सारा प्रभाव उस आदमी के कारण पड़ रहा है!”
कर्मजीत- “बस समझ नहीं आ रहा कि आखिर वह कौन है?… मुझे तो लगता है कि मुझे बेहोश उसी आदमी नें हीं किया था!”
वधिराज- “हाँ करमजीत, लगता है फिलहाल सब कुछ सही ही है!!”
करन- “हाँ… लगता तो है… अच्छा जल्दी से अंदर चलो,, अम्मा की हालत बहुत खराब है!”
वधिराज- ”हाँ.. चलो…!”
तीनो अंदर जाते हैं तो देखते हैं कि अम्मा अब अपनी जीवन की अंतिम सासे गिन रही है।
कुश- “अम्मा.. आप ने हमारे मित्र को बचाने के लिए अपनी जान दाव पर लगा दी!”
बुलबुल- ”हाँ अम्मा, आप बहुत साहसी हैं…!”
अम्मा- ”कोई बात नहीं बेटा,, वैसे भी मेरी जिंदगी कितनी ही बची थी.. मेरी जिंदगी किसी के काम आ रही है, बस यही मेरे लिए बहुत है…!”
लव- “अम्मा ऐसा ना बोलिए.. इस पृथ्वी पर हर मनुष्य का जीवन बहुत ही अनमोल होता है , आप सच मे महान हैं!”
चिड़िया (रोते हुए)- “हमे छोड़ कर मत जाइए!!”
शुगर (रोते हुए)- “हाँ दादी माँ!!
वधिराज- “हाँ अम्मा..”
करण- “राजकुमारी चंदा… क्या अम्मा जी को बचाया जा सकता है, कोई उपाय है क्या? “
चिड़िया- “करण.. मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम.. हम लोग तो रास्ते के बीच में अटके हुए हैं, ना कहीं जा सकते हैं , ना कुछ कर सकते है…!”
बुलबुल- “हे भगवान! रक्षा कीजिये… अम्मा की”
और इसी बीच अम्मा अपना दम तोड़ देती है… यह देख कर सभी लोग बहुत रोने लगते हैं।
टॉबी- “यकीन नहीं होता एक बूढी औरत ने हमारे लिए अपने प्राणों तक की परवाह नही की!”
शुगर- “हाँ…टॉबी…कितनी अच्छी थीं ये!”
कुश- “अम्मा…आप के इस बलिदान के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.. !!”
वधिराज- “इन का हम जितना भी शुक्रिया अदा करें उतना ही कम है अम्मा!
कर्ण- “ईश्वर इन की आत्मा को शान्ति दे, ये सब मेरे लिए किया इन्होंने..”
और तभी आसमान से ओले बरसने लगते हैं औऱ ओलावृष्टि की तेज आवाज सुन कर सभी बाहर देखते हैं।
लव- “…देखो यह क्या हो रहा है , आसमान से बड़े-बड़े ओले गिर रहे हैं!”
करन- “सभी लोग ध्यान से…बच कर रहो!”
वधिराज- “तैयार रहो सब!!”
तो सभी लोग चौकन्ने हो जाते हैं और अपनी तलवार निकाल कर आने वाली मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
बुलबुल- “जिस नें भी अम्मा के साथ ये किया है , उस दुष्ट का हम बुरा हल कर देंगे!”
वधिराज- “हाँ बुलबुल… बुरे से भी बुरा हाल करेंगे!”
चिड़िया- “हाँ मित्रों,,, लेकिन बाहर बहुत ज्यादा ओले बरस रहे हैं.. जब तक ये ओले बरसना बंद ना हो जाए , तब तक हमें अंदर ही रहना होगा!”
वधिराज- “हां राजकुमारी चंदा, बिल्कुल सही कह रही हैं!”
और सभी साथी बूढी अम्मा के घर के अंदर ही बैठ कर ओलावृष्टि रुकने का इंतजार कर रहे होते हैं।
इंतजार करते करते रात हो जाती है लेकिन ओले बरसना नहीं रुक रहे थे।
कुश- “करण अब क्या करें, ये ओले तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं और आधी रात भी हो चुकी है!”
लव- “हाँ भाई.. अब तो मुझे भी बहुत डर लग रहा है , न जाने क्या होगा!”
बुलबुल- “हम तो इसी घर मे फंस कर रह गए हैं!”
कर्मजीत- “चिंता मत करो, जो होगा अच्छा ही होगा..!”
करण- ”तुम सब अंदर रहो, मैं बाहर देख कर आता हूं कि सब ठीक तो है? “
और तभी करण अपनी जादुई अंगूठी का प्रयोग कर के अपने चारों ओर कवच बना लेता है और तब बाहर निकलता है।
करन- “आखिर ये कौन कर रहा है? मुझे हर तरफ सटीक नजर से देखना होगा”
तो करण अपनी निगाहें यहां वहां घूमाता है तो उसे कुछ नहीं दिखता और जब वह आसमान की तरफ देखता है तो उसे दो नीले नेत्र दिखाई देते है, जिसे देख कर वह डर जाता है।
कर्ण- “आखिर यह क्या चीज है? कुछ नेत्रों जैसा मालूम पड़ता है”
और तभी वो आँखे लाल रंग में परिवर्तित हो जाती है और उस में से और भी बड़े-बड़े ओले गिरने लगते हैं।
करण- “कौन हो तुम और आखिर क्या चाहते हो हम से?”
आदमी की आवाज- “वह नीली चिड़िया मेरे हवाले कर दो और यहां से तुरंत निकल जाओ.. अभी मौका दे रहा हूं जान बचाने का.. अन्यथा बाद में तुम सभी को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है!”
करण- “नही.. हरगिज नही.. हम उन का श्राप तुड़वाने के लिए आए हैं और उन का श्राप तुड़वा कर ही दम लेंगे.. तुम नहीं जानते कि उन्होंने कितने कष्ट सहे है!”
आवाज़- ”चुप कर जा.. तू जानता नहीं कि मैं क्या कर सकता हूं.. खौफ खा मुझ से…!”
करण- “तुम कुछ भी कर लो, परंतु हम हार नहीं मानेंगे…! कभी नही”
आवाज- “अच्छा.. तो यह बात है.. तो ठीक है एक बार और सोच ले….तुझे फिर से मौका दे रहा हूं क्योंकि तू अभी बालक है इसलिए..!”
करण- “नही… हम नीली चिड़िया को किसी भी हाल में तुम्हारे हवाले नहीं करेंगे!”
और तभी बादलों में जोर-जोर से गर्जना होने लगती है और काफी बड़े ओले बरसने लगते हैं
और तभी करण का कवच हट जाता है।
कर्ण- “अरे नही…!!”
वह तेजी से भागता है, लेकीन कुछ बड़े ओले गिरने से कर्ण घायल हो जाता हैं , आखिरकार वह जल्दी से घर के अंदर पहुंच ही। जाता है।
लव कुश- “ये क्या हुआ! तुम्हे!”
टॉबी- “कर्ण तुम्हें इतनी चोट कैसे लगी? “
कर्ण- “मैं ठीक हूँ!!”
चिड़िया- “लेकिन हुआ क्या!!
कर्ण सारी बात उन्हें बताता है, सब चिंतित हो गए थे।
शुगर- “हे भगवान अब क्या होगा? “
करमजीत- “ये घर भी इतनी तेज ओलावृष्टि झेल नही पायेगा, मुझे लगता हैं यहाँ भी हम ज्यादा देर तक सुरक्षित नहीं है!”
वधिराज- “हां मैं भी यही सोच रहा हूँ!”
टॉबी- “अगर घर की छत गिर गई तो क्या करेंगे हम!!”
बुलबुल- “गलत मत सोचो, सब ठीक हो जाएगा! हम कुछ सोचते हैं
वधिराज- “हाँ…बस मैं भी कुछ उपाय सोच रहा हूं!”
कर्मजीत- ”हम्म्म…और कर भी क्या सकते हैं!”
और थोड़ी देर बाद करमजीत को एक उपाय सूझता है।
कर्मजीत- ”देखो मित्रों,,, वो आसमान में जो नेत्र है ना… उस में से ही ओले निकल रहे हैं ना?”
करण- “हाँ. बिल्कुल.!”
बुलबुल- ”हाँ..! लेकिन उस का क्या”
कर्मजीत- “तो यदि उन नेत्रों को ढक दिया जाए तो हम लोग आसानी से यहां से निकाल सकते हैं!”
कुश- “हाँ.. परंतु यह कार्य तो काफी कठिन होगा करमजीत?? कैसे सम्भव हो पाएगा”
लव- “हाँ.. इस में तो किसी की जान भी जा सकती है!”
वधिराज- “हाँ कर्मजीत, खतरा तो बहुत है..!”
कर्मजीत- ”हाँ लेकिन मेरे पास अच्छा उपाय है.. सुनो,,, मै अपनी अग्नि शक्ति का इस्तेमाल कर के चारों ओर धुआं धुआं कर दूंगा.. इस के बाद वे भयंकर नेत्र कुछ भी नहीं देख पाएंगे और हम मौका पा कर यहां से तुरंत निकल जाएंगे!”
करमजीत- “हाँ कर्मजीत.. अच्छा उपाय बताया है! चलो फिर उस पर कार्य करते हैं.
और सभी लोग करमजीत की योजना के अनुसार कार्य करने लगते हैं।
वही कर्मजीत अपनी शक्ति का प्रयोग करता है और अपनें शरीर पर चारों ओर आग ही आग उत्पन्न कर लेता है..
लव- “इतनी सी आग से धुंआ कैसे निकलेगा!”
कुश- “मेरे बुद्धू भाई, बाहर पेड़ भी तो हैं, उस मे आग लगाने से निकलेगा धुंआ!!”
लव- “ओह अच्छा!!”
तो करमजीत पेड़ों में और झाड़ियां में आग लगा देता है.. जिस के कारण थोड़ी देर में वहां धुआं उत्पन्न होनें लगता है।
आवाज- ”यह क्या हो रहा है?.. आखिर कौन कर रहा है यह?”
बुलबुल- “हा हा हा, देखो तो उस राक्षस को गुस्सा आ रहा है!!
आवाज- “कौन है, कौन है!!
वो दोनों नेत्र यहां वहां घूमने लग जाते है।
वही धीरे-धीरे आग और भी बढ़ती जाती है… और धुंए के कारण वो नेत्र आसपास की वस्तुओं को सही से नहीं देख पा रही थी जिस के कारण वह अदृश्य राक्षस क्रोधित हो जाता है।
आवाज- “तुम सब चाहे जो भी कर लो… मुझ से बच कर कहीं भी नहीं जा पाओगे..मूर्खो…!”
कर्ण- “अब सही मौका है, हमे यहां से निकल जाना चाहिए!!”
वधिराज- “हाँ, जल्दी चलो यहां से..!!”
और धुआँ अब बहुत ज्यादा हो जाता है…तभी मौका पाकर सभी मित्र बूढी औरत के घर से निकल कर भाग जाते हैं।
तभी उन नेत्रों से बारिश होने लगती है जिस के कारण आग बुझ जाती है लेकिन तब तक सब वहां से जा चुके थे।
वही वो नेत्र उन को ढूंढते हुए आगे बढ़ते हैं।
वही सभी मित्र बड़े से पेड़ की डालियों पर चढ़ कर छुपे हुए थे।
वधिराज- “सभी लोग शांत रहना , बिलकुल भी आवाज मत करना!”
कर्ण- “वो नेत्र हमारा पीछा करते हुए यहां तक आ गए हैं, सब शांत रहो!”
कुश- “अब क्या होगा??”
लव- “shhhhhhhhh!!! चुप”
आवाज- “तुम सब को क्या लगता है कि मैं तुम लोगों को पकड़ नहीं पाऊंगा? हाँ..! हा हा हा!””
और तभी उन नेत्रों में से बहुत जोर की हवाएं निकलने लग जाती हैं जिस के कारण सभी मित्रों का संतुलन बिगड़ जाता है।
टॉबी- “आ…आ.. मैं गिर जाऊंगा!!
बुलबुल- “अरे टॉबी मुझे कस के पकड़ो, कहीं हम सब गिर ना जाए!”
कर्ण- “सब जम कर रहो, गिरना मत कोई भी!!”
लव- “हवा बहुत तेज है!!”
कुश- “हां, संतुलन बिगड़ रहा है!”
करमजीत- “हिम्मत बनाये रखो सब!!”
आवाज- “कहा था ना उस चिड़िया को मेरे हवाले कर दो, अब मरो सब!!”
और तभी उन नेत्रों में से बहुत सारे तीर निकलने लगते हैं.. अचानक एक तीर करमजीत के हाथ मे लग जाता है।
इतने में करन नें जल्दी से अंगूठी से जादुई कवच बना दिया था।
चिड़िया- “नही….करमजीत…!!”
बुलबुल- “हे भगवान, ये तो रुकने का नाम ही नही ले रहा..!!”
करमजीत- “बहुत दर्द हो रहा है!!”
कर्ण- “चिंता मत करो करमजीत , तुम ठीक हो जाओगे!”
और तभी सभी मित्रों को इतनी परेशानियों में देखते हुए चिड़िया दुखी हो जाती है।
चिड़िया (उन नेत्रों से)- “रुको,, इन सब को जाने दो , मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं , कृपया कर के रुक जाओ!”
कर्ण- “नहीं राजकुमारी जी…हरगिज नहीं
बुलबुल- “..राजकुमारी चंदा . यह आप क्या कह रही हैं?”
चिड़िया- “हाँ.. मुझे इस के साथ जाने दो.. अन्यथा तुम सब मारे जाओगे!”
तो हम अगले एपिसोड में जानेंगे कि क्या राजकुमारी चंदा उस राक्षस के साथ चली जायेगी?