58 – जादुई किताब | Jaadui Kitaab | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि महारानी दिग्पाला की सच्चाई सब के सामने आ गई है और सभी को पता चल गया है कि राजकुमारी पौर्णिमा का ये हाल इन दो मां बेटी की वजह से ही हुआ है। वही सभी मित्रों की चतुराई और बहादुरी के कारण राजकुमारी पौर्णिमा का श्राप भी टूट गया है।
पौर्णिमा का श्राप टूटते ही वो असली रूप मे आ जाती है। जबकि राजकुमारी दिया अब कुरूप हो गयी थी।
दिया (रोते हुए)- “नही….ये नही हो सकता!”
पौर्णिमा- “हे भगवान!! यह सब कैसे हुआ और , मैं ठीक कैसे हो गई? ”
करन- “राजकुमारी जी, हम नहीं चाहते थे कि आप के दिल को चोट पहुंचे इसीलिए हम ने इन दोनों की सच्चाई आप को पहले नही बताई। ”
करमजीत- “हाँ अगर हम पहले कुछ बताते तो शायद आप हमें ही गलत समझती और हमारा यकीन भी ना करतीं!”
पौर्णिमा- “अच्छा , पर बात क्या है… और तुम सभी को बहुत-बहुत शुक्रिया , आज मैं बहुत खुश हूं..!”
बुलबुल- “यह सब आप की बहन ने ही आप के साथ किया था!”
वधिराज- ” हाँ! आप की खुशी देख कर हमें बहुत प्रसन्नता हुई राजकुमारी पौर्णिमा!”
पौर्णिमा (दिया से)- “मुझे यकीन नहीं होता…. सत्ता के लालच में आप ने अपनी बड़ी बहन का विश्वास तोड़ा.. खैर.. मैंनें भी गलत इंसान से उम्मीद रख ली थी.. माफ करना…!”
इस के बाद पौर्णिमा अपने सिंहासन पर बैठ जाती है और सारी सेना उस को झुक कर प्रणाम करती है।
दिया (गुस्से से)- “मेरा है वो सिंहासन!!”
पौर्णिमा- “राजकुमारी दिया को कैद कर लिया जाये…!”
दिया- “नही.. ऐसा मत करो.. कृपया कर के… मुझ पर तरस खाओ , मैं तुम्हारी बहन हूँ!”
पौर्णिमा- “अच्छा…मै आप पर तरस खाऊं??.. आप ने तो मुझ पर बिल्कुल भी तरस नहीं खाया था, जब मेरी वैसी हालत कर दी गई थी.. यहां तक कि इन सब के कारण मैंनें राजा कविश से शादी के लिए भी मना कर दिया और उस वक़्त मैंने सिर्फ तुम्हारे बारे में ही सोचा.. और सब कुछ छोड़ कर जंगल में भी चली गई थी!”
तभी पीछे से कुश और लव दिया की माँ दिग्पाला को ले कर आ जाते है।
दिग्पाला (पौर्णिमा से)- “माफ कर दे बेटी.. तू जो भी सजा देना चाहती है मुझे दे दे, लेकिन मेरी बेटी को छोड़ दे !”
पौर्णिमा- “मैंने आप को पूरा सम्मान दिया! यहां तक कि आप ने जो कुछ भी कहा , मैंने वही सब किया.. परंतु इतना बड़ा विश्वासघात करने के बावजूद भी आप यह सब कैसे कह सकती हैं?.. सेनापति जी.. ले जाइये इन दोनों को..”
और कुछ सैनिक उन दोनों को बंदी बना कर वहां से ले जाते हैं , यह देख कर पौर्णिमा को दुख हो रहा था।
बुलबुल- “आप उदास ना होगी राजकुमारी जी, सब कुछ ठीक हो गया है अब!”
पौर्णिमा- “…मैं जंगल में इन दोनों की वजह से ही गई थी.. इन्होने नें ही यह बात मेरे दिमाग में डाली कि यह करना सही होगा..!”
चिडिया- “अच्छा… ये बात है… लेकिन अब आप के जीवन मे बदलाव आ गया है!”
वधिराज- “हम्म्म…मैंने राजा कविश तक भी पैगाम पहुंचा दिया है!”
तभी वहां पर राजा कविश आ जाते है.. उन्हें सारी सच्चाई अब पता चल चुकी है।
कविश- “मुझे माफ़ कर दो पौर्णिमा!”
पौर्णिमा- “नही नही ऐसा मत कहिए आप , अब सब ठीक हो गया है!”
कर्मजीत- “राजकुमारी जी.. हम सभी आप के विवाह के लिए आप दोनों शुभकामनाएं देते हैं… आप दोनों सदा खुश रहिएगा !”
वधिराज- “हाँ अब हमें यहां से जाना होगा..!”
राजा- “ठीक है.. आप सभी अपना ध्यान रखना!”
करन- “जी महाराज!”
और सभी लोग वहां से चले जाते हैं। और कुछ देर बाद नई जगह पर पहुंच जाते हैं। वहां आसपास कुछ लोग रह रहे थे।
कुश- “वधिराज जी…लगता है हम उस जगह पहुंच गए हैं , जहां राजा पुरु ने हमें आने के लिए कहा था!”
वधिराज- “हाँ शायद…मुझे भी लग रहा है! इस नगर का नाम है- भोलानगर।
चिड़िया- ” लगता है यही वह जगह है, यहां से हमें कुछ ना कुछ अलबेली नगर के बारे में पता चली जाएगा !”
वधिराज- “हाँ…चलो…आगे!”
और एक कुटिया के पास जा कर वधिराज किसी आदमी से पूछताछ करता है।
वधिराज- “क्या आप किसी अलबेली नगर के बारे में जानते हैं?”
आदमी- “नही…तो.. हम नही जानते!”
बुलबुल- “अच्छा…तो क्या यहां कोई ऐसा है जो अलबेली नगर के बारे में बता सकता है?”
आदमी- “हम्म.. पता नहीं…बेटा..!”
कुश- “अच्छा…कोई बात नही!”
लव- “चलो किसी और से पूछ लेते हैं!”
और सभी मित्र बहुत से लोगों से अलबेली नगर के बारे में पूछते हैं लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था।
तभी वहाँ एक बूढा आदमी सिकंदर आता है।
सिकन्दर- “क्या हुआ? बड़े परेशान मालूम पड़ते है आप सब?..”
वधिराज- “हाँ हम अलबेली नगर का पता पूछ रहे हैं, लेकिन यहां कोई भी उस के बारे में नही जानता
सिकन्दर- “बस इतनी सी बात!!
कुश- “क्या आप को पता है कुछ??”
सिकन्दर- “हाँ.. मुझे रास्ता मालूम है.. परंतु रास्ता बताने से पहले मेरी एक शर्त है!”
चिडिया- “कैसी शर्त!”
चिड़िया को बोलते हुए देख कर वह आदमी हैरान रह जाता है।
सिकंदर- “आप को हमारे गाँव के सरदार की सहायता करनी होगी.. तभी मैं आप की सहायता करूँगा !”
कर्ण- “हम्म.. ठीक है.. चलो. बताओ क्या करना है.!”
सिकन्दर- “मैं आप सभी को गांव के सरदार युगायु के पास ले कर जाता हूँ, चलो मेरे साथ!”
तो सभी उस के पीछे जाते हैं और सिकंदर युगायु को सारी बात बताता है।
युगायु (सभी बच्चो से)- “तो सुनो.. हमारे गांव का भविष्य एक चमत्कारी पुस्तक में लिखा गया है.. लेकिन उस पुस्तक को एक बाज नें यहां से चुरा लिया है.!!”
करमजीत- “लेकिन क्यों!”
युगायु- “क्योंकि उसे पता था कि वह ऐसा करेगा तो हम सभी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.. बस आप सभी को वह पुस्तक उस से वापस लानी होगी!”
सिकंदर- “हाँ और अगर ऐसा ना किया गया तो हम सब गांव वालो का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और इस कार्य के लिए केवल 7 दिन ही बचे है!”
कर्मजीत- “ठीक है…परंतु आप अपना वादा मत भूलिएगा..!”
सिकंदर- “हम्म्म्म…नही भूलेंगे.! तो क्या आप तैयार हैं जाने के लिए”
कर्ण- “हाँ, बताओ कहाँ जाना है!!
तो सिकन्दर उन्हें रास्ता बताता है और सभी मित्र सिकंदर द्वारा बताए गए रास्ते पर जाते हैं।
करन- “ये देखो गांव के सरदार ने जैसा कहा था ,ये वही है, यह उसी बाज का घर है!”
वधिराज- “हम्म.. ध्यान से, सभी लोग ऊपर चढो..!”
और सभी मित्र झुक झुक कर उस छोटे से घर के अंदर प्रवेश करते हैं।
चिड़िया- “यहां तो कोई भी नही है…!”
वधिराज- “हाँ, लगता है बाज ने ये घर छोड़ दिया है..!”
और तभी अचानक से वो छोटा सा घर अचानक से एक काली गुफा में बदल जाती है।
टॉबी (डर कर)- “नही , फिर से!!”
शुगर- “डरो मत टॉबी!!”
लव कुश- “डर लग रहा है!!”
बुलबुल- “ये क्या हो गया, गुफा कैसे बन गयी ???”
टॉबी- “हाँ.. कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी ना!”
शुगर- “टॉबी ..तुम बस करण के साथ रहना….!”
करमजीत- “ये गुफा काफी गहरी है, चलो सब अंदर , आगे बढ़ते जाओ!!”
सभी आगे बढ़ते जाते हैं!!
वधिराज (बाज से)- “कहां हो तुम.. बाहर आओ!!”
करमजीत- “सामने आओ ,कायर!”
कुश- “ये बाज कोई मायावी बाज लगता है!”
लव- “हाँ…भाई, ये जगह भी तो मायावी है…!”
और बहुत आगे बढ़ने पर उन्हें एक अलमारी दिखती है , जो अपने आप खुल जाती है…
चिड़िया- “अरे देखो , इस के अंदर किताब रखी है… परंतु ध्यान से यह कोई जाल भी हो सकता है!”
वधिराज- “हम्म…थोड़ा रुकते हैं ..क्या पता वह बाज यहां पर आ जाए!”
और सभी मित्र बहुत देर तक इंतजार करते हैं लेकिन वहां पर कोई बाज नहीं आता।
तब करण चुटकी बजा कर उस किताब को जादू से अपने हाथ में लाने का प्रयास करता है लेकिन जादू काम नहीं करता।
कर्मजीत- “मैं जा कर उसे अपने हाथों से उठा कर लाता हूं..!”
बुलबुल- “नही करमजीत, इतनी आसानी से किताब हाथ नहीं आ सकती, जरूर कोई समस्या होगी उस मे!”
चिड़िया- “हाँ करमजीत, मत जाओ!!”
करमजीत को सभी मना करते हैं।
लेकिन वो नही मानता और अलमारी के पास जा कर किताब उठाने के लिए किताब को बस हाथ ही लगाता है कि उसे ज़ोर की बिजली का झटका लग जाता है।
कर्ण- “करमजीत, कहा था न तुम से! !!”
बुलबुल- “तुम ठीक तो हो ना!!”
करमजीत- “हाँ!! चिंता मत करो!”
तभी वहाँ बाज आ जाता है , उस की पीठ पर उस का छोटा बच्चा भी बैठा हुआ था।
बाज- “अच्छा…. तो तुम सब युगायु के चमचे हो??”
करमजीत- “और तुम कायर हो!!”
और बाज गुस्से में अपनें पंखों को फैला कर जोर से उड़ कर आता है और उन सभी पर हमला करता है।
और सभी लोग उस से बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
करन- “आखिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, गांव वालों के साथ ये अन्याय क्यों करना चाहते हो? ”
बाज- “लगता है उस ने तुम्हें सच्चाई नहीं बताइ है.. युगायु नें मेरे बच्चे को मार दिया था और इसी गम में मेरी पत्नी नें भी अपनी जान दे दी थी.. और किसी गाँव वाले ने कुछ नही किया… वह गाँव वालों पर जान छिड़कता है.. इसलिए मैं उस के साथ गांव वालों को भी दुखी देखना चाहता हूं..!”
वधिराज- “युगायु को उन के कर्मो की सजा मिलेगी.. लेकिन कृपया आप गांव वालों को माफ कर दो…!”
बाज- “हा हा हा… अब कुछ नहीं हो सकता! अब मैंने जो ठान लिया, सो ठान लिया”
और वहाँ से वो बाज उड़ कर गाँव में चला जाता है,
वहीं वो गुफा ज़ोर ज़ोर से हिलने लग जाती है।
वधिराज- “सभी लोग बचो!!”
लव- “गुफा तो हमेशा ख़तरनाक होती है!”
कर्ण- “जल्दी से सभी बाहर भागो, गुफा गिर रही है!
तभी गुफा टूटनें लग जाती है…और सभी लोग जैसे तैसे गुफा से बाहर आ जाते है…।
दूसरी और बाज गाँव के लोगो को मार रहा है।
गांव में शोर- “आ..
नही..
बचो…आ~~
भागो..
बचाओ..
बाज- “हा हा हा…सभी मरो… अब तुम लोगों को पता चलेगा कि अपनों को खोने का क्या गम होता है!”
सिकन्दर- “मालिक वो बाज गाँव वालों को मार रहा है!!
तभी वो बाज युगायु को मारने आ जाता है।
युगायु- “तूनें मुझे मारने के लिए उन लोगो के मेरे घर भेजा… अब तो तू नहीं बचेगा!”
युगायु- “मैंने कुछ भी नही किया है, मुझे जाने दो!!”
तभी बाज उस पर हमला करता है और गुस्से में एक बड़ा पत्थर फेक देता है, जिस से वो मर जाता है।
तभी रंजन नाम का एक आदमी वहाँ भागता हुआ आता है
रंजन- “नहीईईईईई……ईई.. ऐसा मत करो…!”
सिकन्दर (हैरान हो कर)- “ये क्या
बाज (हैरानी से)- “ये क्या
बाज चौक जाता है क्योंकि रंजन की शक्ल युगायु से मिलती है।
बाज- “तुम कौन हो!!”
आदमी रंजन- “तुम इन गांव वालों को मत मारो.. तुम्हारे बच्चे को मैंने मारा था.. मै युगायु से नफरत करता था.. मैंने सोचा कि ऐसा करने से तुम उसे मार डालोगे..!”
सिकंदर- “दुष्ट प्राणी.. तुझे तो जीवित नहीं रहना चाहिए!”
रंजन- “हाँ.. मुझे नही जीना… मुझे मेरे किये पर बहुत पछतावा हो रहा है!”
सिकन्दर- “तूने यह सब क्यों किया!!
तभी वहाँ सारे मित्र भी यहां आ गए थे , वो रंजन की सारी बात सुन रहे थे,
रंजन- “दरअसल मैं एक मामूली चोर था, मेरी शक्ल युगायु जैसी है, मैं युगायु की जगह लेना चाहता था…इसलिए जब मुझे इस चमत्कारी बाज के बारे में पता चला तो मैंने जानबूझ कर बाज के सामने उस के पहले बच्चे को मार दिया.. ताकि उसे लगे कि ये युगायु ने ही किया है।
बुलबुल- “हे प्रभु…ये तो अनर्थ हो गया.”
बाज- “तूने पाप किया, और अनजाने में मैंने भी कर दिया, तेरी वजह से, अब तुझे तो मरना ही होगा दुष्ट.!”
चिड़िया- “नहीईईई…उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका है…इसे जाने दो…वैसे भी तुम ने इतनें निर्दोषों की जान ले ली है.. कम से कम भगवान से डरो!”
बाज- “हम्म्म्म…ठीक है.!”
और उसे चिड़िया की बात सही लगती है.. वो वहां से चला जाता है और किताब ला कर उन बच्चों को दे देता है।
करण सिकंदर को किताब देता है…।
सिकंदर- “तुम सब का बहुत बहुत धन्यवाद!”
वधिराज- “हम युगायु को नही बचा पाये..क्षमा करना!”
सिकंदर- “कोई बात नही.. इस में तुम सब भी कुछ नहीं कर सकते थे,!”