57 – बिल्ली रानी का हमला | Billi Rani ka Hamla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि सभी बच्चों को अपने रास्ते मे एक छोटी बच्ची मिली थी लेकिन उस बच्ची को कौवे के राजा और उस के सैनिक वहां से उठा कर ले गए थे। लेकिन जब सभी मित्र उस बच्ची को बचाने के लिए कौवे राजा के राज्य मे गए थे तो सभी मित्र फंसे रह जाते हैं क्योंकि बच्ची नें राजा कल्पी वध अकेले ही कर दिया था। और कुलकु को मौत की कगार पर ले आई थी।
कुलकु के हारते ही , कर्ण और उस के साथियों का रास्ता अपने आप ही साफ हो जाता है, और सारी शाखाएं भी अपने आप हट जाती है
करमजीत- “ये क्या, ये मुसीबत तो अपने आप ही खत्म हो गयी!!
कर्ण- “नही, कुछ तो कारण होगा, चलो जल्दी से आगे बढ़ते हैं!”
बुलबुल- “हां जल्दी, अब तो रास्ता साफ है!!
सभी आगे बढ़ते हैं और देखते है कि उस बच्ची ने अब कुलकु राजा का भी वध कर दिया था।
सभी उसे देख कर हैरान रह जाते हैं।
चिड़िया- “ये कोई साधारण बच्ची नही है!!
कर्ण- “आप का बहुत बहुत धन्यवाद, आप की वजह से हमारी जान बच गयी!!
तभी वहां कौआ सेना आ जाती है
कौवे की सेना का कौवा 1- “लगता है यह कोई जादूइ बच्ची है…लेकिन हम अपने राजा का बदला ले कर रहेंगे!!
कौवा2- “सब पर हमला करो..!”
कौवा 3 ( चिल्ला कर)- “हाँ.. हमलाअअअअअअअ..!”
बच्ची (मुस्कुरा कर)- ” अच्छा, हा हा हा तो आ जाओ फिर!”
और कौआ सेना भी बच्ची को मारने के लिए आगे बढ़ते है लेकिन वो सभी को एक साथ घायल कर देती है।
वधिराज (कौओं की गर्दन पकड़ते हुए)- “आज तो इन कौओं का खात्मा कर के रहेंगे!! बहुत परेशान किया है इन सब ने!!
बुलबुल (सब को पत्थर बनाते हुए)- “हां बिल्कुल सही कहते हैं!
लव (चाकू मारते हुए)- “आज तो जीत हमारी ही है!!”
तो इस तरह करण और उस के सभी साथी भी कौआ सेना को संभाल रहे थे।
और सभी लोग मिल कर कौवो का सामना बड़ी आसानी से कर लेते हैं।
वही उस बच्ची नें तो बड़े आराम से उन का वध कर दिया था ।
करन- “आप तो बड़ी बलवान और वीर है? परन्तु आप तो छोटी बच्ची हैं ”
बच्ची- “हाँ.. मैं ही नहीं , बल्कि मेरा पूरा परिवार बहुत ही बलवान और वीर है. बस उन्ही से मैंने ये सीखा है.!”
वधिराज- “अच्छा.. यह तो बहुत ही अच्छी बात है..!”
बच्ची- “हाँ.. सभी सब को बुराई का सामना डट कर करना चाहिए और खुद पर विश्वास रखना चाहिए..!”
चिड़िया- “बिल्कुल…तुम ने तो बहुत ही अच्छी बात कही..!”
और उस के बाद सभी लोग उस राज्य से बाहर चले जाते हैं।
वधिराज- “आओ.. यहां से चलो अब…!”
बुलबुल- “अभी हम दादी माँ के पास जाना होगा, वो इस बच्ची का इंतजार कर रही होंगी!”
चिड़िया- “हां बुलबुल, वहीं जा रहे हैं हम!”
तो कुछ ही देर में, सभी उस बूढ़ी दादी माँ के पास पहुंच जाते हैं
दादी- “ओह भगवान का लाख लाख शुक्र है, जो तुम सब विजयी हो कर वापिस आये !!”
बच्ची- “हां दादी माँ, विजयी तो होना ही था, सब इतने बहादुर जो हैं!!
बच्ची – “अच्छा मेरा जाने का समय आ गया है..!”
दादी- “कहां जा रही हो बेटा? ”
वो बच्ची कुछ नहीं बोलती और बस सभी को देख कर मुस्कुराती है।
बच्ची- “आयुष्मान भव:!”
दादी- “अरे बेटा ..रुको!!”
टॉबी- “ये अचानक कहाँ जा रही है!!
और वो अचानक से गायब हो जाती है और तभी पीछे से उसी के जैसी दूसरी बच्ची आती है।
दादी- “बेटा??? तू यहां??? तो फिर वो”
बच्ची- “दादी माँ, मै बकरी को ढूंढते ढूंढते घर का रास्ता भूल गई थी, इसलिए देरी हो गयी मुझे आने में…!”
तभी टॉबी और शुगर आगे भागते हैं और एक दूसरे को हैरानी से देखते हैं
शुगर- “वाह!! ये कैसे सम्भव हुआ!!
टॉबी- “सभी आओ!! देखो यहां लाल रंग के पैरों के निशान बन गए हैं..!”
चिड़िया- “हे मां!!, वो स्वयं दुर्गा माँ ही थी!!
कर्ण- “हां!! तभी इतनी बड़ी मुसीबत से निकल गए थे हम!!
बुलबुल- “कितने सौभाग्य वाले हैं हम सब!!”
दादी- “जय माता दी!!
सब एक साथ- “जय माता दी..!!”
कर्मजीत- “प्रेम से बोलो.. जय माता रानी!”
उन की रक्षा के लिए स्वयम दुर्गा माता ही बच्ची का रूप ले कर आई थी।
इस के बाद सभी साथी वहाँ से निकल पड़ते हैं।
उन्हें एक स्त्री दिखती है, जिस नें अपना चेहरा पूरा ढक रखा है।
वो स्त्री नदी पार करने की कोशिश कर रही थी..
करन- “अरे.. कहीं वह स्त्री नदी में गिर ना जाए!”
करमजीत- “हां लग तो ऐसे ही रहा है!!”
बुलबुल- “अरे अरे देखो तो गिरने वाली ही है वो!!”
और देखते ही देखते वह स्त्री नदी में गिरने वाली होती है कि तभी करमजीत चुटकी बजा कर जादू से उस जगह पर तुरंत पहुंच कर उसे बचा लेता है।
स्त्री (पौर्णिमा)- ” बहुत-बहुत शुक्रिया.. लेकिन तुम सब यहां पर क्या कर रहे हो बच्चों? ”
कुश- “हम.. बस यहां से निकल रहे थे.. हमें यहीं से आगे जाना है इसीलिए!”
पौर्णिमा- “अच्छा अच्छा..!”
और पौर्णिमा के मुँह मे बांधे हुए वो कपड़े खुल जाते है जिस से उसका असली चेहरा दिख जाता है। उस का चेहरा काफी भयानक था।
चिड़िया- “ये क्या !!”
लव- “माफ करना.. परंतु हम आप से यह पूछना चाहेंगे कि आप के साथ यह सब कैसे हुआ?”
पौंर्णिमा (रोते हुए)- “सब से भयानक घड़ी थी वो मेरे जीवन की, उसी वजह से मेरा यह हाल हो गया!”
बुलबुल- “आप रोइये मत, बताइये हमें!”.
वधिराज- “चिंता मत करिए, हम सब आप की सहायता करेंगे परंतु एक बार हमें अपने कष्ट बताइए!”
पौर्णिमा पहले कुछ नहीं बताती क्यूंकि उसे लगता है कि शायद यह लोग उस की सहायता नहीं कर पाएंगे।
पौर्णिमा- “नही नही, मुझे इस सम्बंध ने कोई बात नही करनी!!”
चिड़िया- “लेकिन हम आप की समस्या का निदान कर सकते है!”
पौर्णिमा- “परन्तु वो कैसे, आप तो सिर्फ बच्चे हैं!!”
और तभी चिड़िया उसे सारी बात बता कर कहती है कि कर्ण और उस के साथी बहुत ताकतवर है, और उन के पास शक्तियाँ भी है
और तब जा कर पौर्णिमा मान जाती है।
पौर्णिमा- “तो सुनो आप सब.. दरअसल मै एक राजकुमारी हूं… मेरा विवाह राजा कविश से होने वाला था लेकिन इसी बीच मेरी ऐसी हालत हो गई.. और राजा कविश को बताया गया कि मै मर चुकी हूँ…वहीं अब मेरी छोटी सौतेली बहन दिया का विवाह कविश से होने वाला है.. और 4 महीने बाद उसे रानी भी बना दिया जाएगा!”
वधिराज- “तो आप राजकुमारी हो कर यहां इस जंगल में क्या कर रही है?? ”
पौर्णिमा- “हाँ.. मै अब अपना पूरा जीवन यहीं पर बिताऊंगी..मैं खुद को दंड दे रही हूँ ! मुझे श्राप जो मिला है”
चिड़िया यह सुन कर बहुत भावुक होती है क्योंकि उस की कहानी बिल्कुल पौर्णिमा जैसी ही थी।
चिड़िया- “नही.. राजकुमारी पौर्णिमा.. ऐसा मत कहिए , आप एक बहुत अच्छी रानी साबित हो सकती हैं.. आप को यहां नहीं बल्कि महलों में होना चाहिए.. सभी लोग आप का इंतजार कर रहें होंगे…!”
बुलबुल- “हाँ…हम आप के श्राप को तोड़ने का प्रयास करेंगे…!”
टॉबी- “हाँ राजकुमारी…!”
शुगर- “चलिये राजकुमारी आप के महल में चलते है!”
पौर्णिमा- “चलिए, मैं मार्ग दिखाती हूँ!”
और पौर्णिमा के पीछे पीछे सभी लोग महल पहुंचते हैं।
पूरी प्रजा को लगता है कि राजकुमारी पौर्णिमा मर चुकी है और उसे वहां देख कर सब चौंक जाते हैं
राजकुमारी दिया- “दीदी आप?? ”
पौर्णिमा- “हाँ.. बहन.. मैं सोच रही थी कि मै अब यहीं पर रहूं.! ”
पौर्णिमा की सौतेली माँ दिग्पाला- “हाँ.. आओ आओ… तुम्हारा ही तो महल है बेटा. तुम क्यों चली गई थी, .हमे तो लगा था कि!”
पौंर्णिमा- “हां सब को लगा कि मेरी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन ऐसा नही है!!
तो पौंर्णिमा .. कर्ण और उस के साथियों को अपना मित्र बता कर महल में रखती है
उसी रात, दिया अपनी माँ के साथ बैठी थी।
दिग्पाला- “वह नीली चिड़िया कितनी सुनहरी है ना.. क्यों ना हम इसे कैद कर ले , क्या कहती हो इस बारे में..!”
दिया- “हाँ मा.. तुम कह रही हो तो सही ही होगी.. क्योंकि तुम्हारी बात मानने के बाद ही तो मै आज यहां हूँ हा हा हा!”
वहीं सुनहरी चिड़िया को रात में सपना आया था कि कोई स्त्री उसे मारने आई है , उस के बाएं हाथ में तिल है।
डर कर चिड़िया की नींद खुल जाती है और वो सब को सपने के बारे में बताती है।
बुलबुल- “ये सपना तो बिल्कुल अच्छा नही है!”
करण- “आखिर कौन हो सकता वो??”
कुश- “कहीं ऐसा तो नही कि ये वही इंसान हो.. जिस ने राजकुमारी पौर्णिमा के साथ यह सब किया है!”
लव- “हां हो सकता है…!”
करन- “राज्य के लालच मे आजकल कोई भी कुछ भी कर सकता है!”
वधिराज- “लेकिन शायद राजकुमारी पौर्णिमा इन बातों पर यकीन नहीं करेंगी… पहले हम योजना बनाते हैं और योजना के पूर्ण हो जाने के बाद उन्हें सारी सच्चाई बता देंगे!”
चिड़िया- “हां परंतु यह भी देखना होगा कि क्या वाकई में पौंर्णिमा की सौतेली मां और बहन ने ही यह किया है?? ”
वधिराज- “आप बिल्कुल सही कह रही हैं राजकुमारी जी.. ”
करमजीत- “हो सकता है कि अब राजकुमारी चंदा पर भी उन की नजर हो, तो वो इन्हे लेने जरूर आएंगे!”
चिड़िया- “तो इस का मतलब वो कभी भी मुझे लेने आ सकते हैं!”
और उस के बाद सभी मित्र बैठ कर कोई योजना बनाते हैं।
थोड़ी देर बाद उन्हें एक उपाय सूझता है!
कुश- “क्यों ना राजकुमारी चंदा बेहोश होने का नाटक करें और उन के साथ जा कर उन की सारी बातें सुन ले…!”
कर्मजीत- “हाँ कुश,,, तुम सही कहते हो और बाकी का हम सब संभालेगे!”
करन- “हाँ राजकुमारी…थोड़ा खतरा है परंतु सावधानी के साथ यह कार्य किया जाए तो सब कुछ सही से हो सकता है!”
वधिराज- “हम्म्म…!”
तो उसी रात दिग्पाला देखती है कि सुनहरी चिड़िया बगीचे में अकेली है
दिगपाला (खुद से)- “हम्म्म… अभी यह चिड़िया अकेली है ,यही सही मौका है, इसे पकड़ लेती हूं!”
और चुपके से जा कर पीछे से चिड़िया को अपने हाथ से पकड़ लेती है
दिगपाला- ” अब तो चिड़िया रानी तुम मेरी हो और तुम मेरी सारी बात मानोगी…वरना मैं तुम्हारी गर्दन मरोड कर तुम्हें मार डालूंगी!!”
चिड़िया- “नहीं नहीं ऐसा मत करो..!”
दिग्पाला- “तो चुपचाप रहना अब
और वह चिड़िया को ले कर राजकुमारी दिया के पास जाती है
दिया- “वाह मां.. तुम ने तो कमाल ही कर दिया.. हा हा हा!”
दिगपाला- “हां करना ही था, हा हा हा!!
वहीं सब को पता लग गया था कि चिड़िया गायब हो चुकी है
वधिराज- “उन्होंने राजकुमारी चंदा को पकड़ लिया है..!”
बुलबुल- “हम्म..अब राजकुमारी हमें संकेत देगी तो आगे का कार्य किया जाएगा!”
और तभी आधी रात मे राजकुमारी चिड़िया का शरीर चमकने लगता है और सभी साथियों को पता चल जाता है की राजकुमारी चिड़िया को कहां पर छुपाया है।
करण और कर्मजीत चुपके से वहां पर जाते हैं।
चिड़िया- “इन दोनों नें ही पौर्णिमा के साथ यह सब किया है.. मैंने इन दोनों की बातें सुन ली है..!”
कर्मजीत- “तो उन के श्राप को तोड़ने का क्या उपाय है?”
चिड़िया- “यही तो दुःख की बात है…उन्होने उस विषय पर कोई चर्चा नहीं करी है.. लेकिन मुझे एक अच्छा उपाय सूझा है…आप लोग उस की मां का अपहरण कर के उन को मारने का नाटक करो…और जैसे तैसे करके राजकुमारी दिया से सारे सच्चाई उगलवालो..!”
करन- “ठीक है राजकुमारी जी!”
और दोनों मित्र राजकुमारी चिड़िया को छोड़ कर वहां से वापिस अपनी जगह पर आ जाते हैं।
कुछ देर बाद सुबह हो जाती है तो बुलबुल दिग्पाला के कमरे मे जाती है
बुलबुल- “महारानी.. जल्दी चलिए…वो राजकुमारी…दिया… वो …!”
दिग्पाला- “अरे जल्दी बोलो क्या बात है? ”
बुलबुल- “बस आप जल्दी चलिए..!”
और बुलबुल उसे महल के किसी कोने में ले जाती है।
दिग्पाला- “क्या हुआ??…”
और तभी वधिराज अपना भयानक चेहरा उसे दिखा कर डरा देता है…और दिग्पाला को बेहोश कर देता है।
वही इसके थोड़ी देर बाद सभी राजकुमारी दिया के पास जाते हैं
करमजीत- “राजकुमारी…दिया..एक बुरी खबर है.!”.
दिया- “क्या हुआ??..”
करन- “वो महारानी दिग्पाला को किसी असुर नें पकड़ लिया है… वह कह रहे हैं कि यदि आप पुराने रूप में ना आई तो उन्हें मार देंगे!”
दिया- “क्या मतलब है तुम्हारा!! यह कैसी बातें कर रहे हो?”
बुलबुल- “नहीं राजकुमारी जी, हम सब बिल्कुल ठीक कह रहे हैं..एक असुर आया और महारानी का अपहरण कर के उन्हें कहीं ले गया!”
पौर्णिमा- “क्या???… ”
करन- “हाँ समय कम है…जल्दी वो जैसा जैसा कह रहे है , वो कर दीजिये राजकुमारी दिया…!”
और तभी राजकुमारी दिया अपने गले में पहने हुए लॉकेट को हटा देती है जिस से उस का चेहरा बदल जाता है।
पौंर्णिमा यह देख कर हैरान हो जाती है।