Homeतिलिस्मी कहानियाँ56 – जादुई चिड़िया | Jadui Chidiya | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

56 – जादुई चिड़िया | Jadui Chidiya | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि कर्मजीत का बहरूपिया उन सभी बीच में उपस्थित था और किसी को कुछ भी पता नहीं था। और इसी कारण कबीले वाले करण को मारने वाले भी थे लेकिन तभी सही वक्त पर असली करमजीत वहां पर आ जाता है और सब कुछ ठीक हो जाता है।

करन- “लेकिन करमजीत यह समझ में नहीं आया कि वह बहरूपिया कौन था? ”

वधिराज- “मुझे लगता है कि वह राजकुमारी स्वरा का ही कोई साथी होगा..बदला लेने आया होगा!”

चिडया- “हाँ तुम ने बिलकुल सही कहा वधिराज!”

कर्मजीत- “हम्म…जब जंगल में आग लग गई थी तो मैं आग को बुझाने का प्रयास कर रहा था, बस इसी बीच कोई पीछे से आया और मुझे बेहोश कर दिया था..!”

करन- “ओह.. वह तो अच्छा हुआ कि तुम सही सलामत हो करमजीत..!”

कर्मजीत- “हाँ भाई, मैं तो बच निकला!”

वधिराज- “हम्म.. अब हमें अलबेली नगर जाना है… राजा पुरु ने कहा था कि हमें उत्तर दिशा में जाना होगा..!”

चिडया- “हाँ…चलते रहो…!”

और तभी आगे चलते चलते उन्हें एक छोटी सी बच्ची दिखाई देती है।

वधिराज- “अरे देखो तो ये छोटी बच्ची इस बंजर इलाके में भला क्या कर रही है?”

बुलबुल- “हां…चलो चल कर उस से पूछते हैं , कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं है वह!”

टॉबी- “लेकिन अगर उस बच्ची में कुछ गड़बड़ हुई तो..!”

शुगर- “नही..लेकिन उस ने तिलक लगा रखा है..देखो तो..”

करन- “हाँ…तुम सही कह रही हो.. ये तो कोई मासूम सी बच्ची जान पड़ती है!”

तो सब उस के पास जाते है, ।

कर्ण- “क्या हुआ बेटा??.. तुम यहां अकेले क्या कर रही हो?”

बच्ची- “वो मै यहां अपनी बकरी ढूंढने आई थी….पता नहीं मेरी बकरी कहां चली गई!”

वधिराज- “अच्छा..कोई बात नही..हम तुम्हारी बकरी ढूंढने में मदद करेंगे..!”.

बच्ची- “अच्छा!! यह तो बहुत अच्छी बात है.. आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया!”

और सभी आसपास बकरी ढूंढने लग जाते है।

तभी एक बूढ़ी दादी वहाँ आ जाती है।

बूढ़ी दादी- “अरे बेटा तुम यहां पर क्या कर रही हो?”

बच्ची- “कुछ नही दादी माँ.. मै तो बस अपनी मीनू बकरी को ढूंढ रही थी..!”

बूढ़ी दादी- “अच्छा…!!.. लेकिन वो अभी तो यहीं थी ना? तुम ने ध्यान नही रखा मीनू का ”

बच्ची- “हाँ , पता नही कैसे वो कहीं भाग गयी दादी माँ..!”

चिड़िया- “चिंता मत करो आप, यही कहीं होगी.. बस कुछ ही जगह देखनी बाकी है, हम सब वहां पर भी देख लेते हैं, क्या पता बकरी वहां पर ही हो!”

वहीं टॉबी और शुगर एक साथ दूसरी जगह पर बकरी को ढूंढ रहे थे। तभी उन्हें एक बकरी भागती हुई दिखती है।

टॉबी- “अरे देखो ! बकरी मिल गई है. ये रही.!”

शुगर- “लेकिन यह तो भाग रही है , पकड़ में ही नहीं आ रही..!”

वधिराज- “हाँ मैं आ रहा हूँ… मैं पकड़ता हूं उसे..!”

कर्मजीत- “हाँ मै भी आता हूँ….!”

लेकिन बकरी बार-बार यहां वहां भाग रही थी , कोई उसे पकड़ नहीं पा रहा था.. और सभी का ध्यान बकरी पर चला जाता है।

दादी माँ- “अरे मीनू आ जा ना.. क्यों सब को परेशान कर रही है!!”

बच्ची- ‘मीनू!! रुक जा!!

और तभी वहाँ आसमान में उड़ते हुए ढेर सारे कौए आए जाते है…।

दादी- “अरे, ये आसमान में क्या है??? बेटी… जल्दी से यहां आ जा, न जाने क्या हो रहा है!”

बच्ची- “हाँ दादी माँ आती हूँ..!”

वहीं सभी लोग बकरी को पकड़ लेते है।

करन- “मै बकरी को संभालता हूं, तुम जा कर दादी मां और उस बच्ची को देखो…!”

करमजीत- “फिर से नई मुसीबत आ गयी है!”

तभी वहां कौवो की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है…वे कौए सभी को अपनी चोंच से मारने लगते हैं।

चिडया- “बचाओ…कोई!”

वधिराज- “आ रहा हूँ राजकुमारी जी..!”

बुलबुल- “मेरे पास आएंगे तो जिंदा नही रहेंगे!!

बुलबुल उन को पत्थर बना रही थी और करमजीत के साथ लव कुश तलवार से वार कर के उन कौओं को मारने लग जाते हैं।

टॉबी- “मुझे तो बहुत डर लग रहा है!”

बुलबुल- “डरो मत टॉबी, तुम मेरी पीठ पर आ जाओ! और आंखें बंद कर लो!”

शुगर- “मुझे भी डर लग रहा है!

करमजीत- “तुम मेरी पीठ पर आ जाओ शुगर

कुश- “आखिर ये कहां से आ रहे हैं? ”

बच्ची- “लगता है कोई राक्षस यहां आ रहा है…!”

और तभी उस में से एक बड़ा नीली आंखों कौवा सब से आगे आ जाता है, उस का नाम कल्पी था।

करण- “अरे ये तो उसी जादूगर द्वारा भेजे गए होंगे, देखो इन की आंखें…!

चिडया- “हाँ.. वो ही बार-बार हमारे रास्ते में इतनी सारी बाधाएं उत्पन्न कर रहा है!”

वधिराज- “इन कौओं की आँखों मे मत देखना…नहीं तो तुम लोग मोहित हो जाओगे!”

कर्मजीत- “हाँ…ठीक है वधिराज जी!”

कर्ण- “लव कुश!! तुम बच्ची और दादी माँ की रक्षा करो, उन के पास जाओ!!

तो कुश और लव उन की रक्षा के लिए उन के पास चले जाते हैं।

लेकिन इसी बीच कौवे कुश और लव की आंख मे धूल डाल देते है

लव कुश- “आह्ह्हह्ह्ह्ह….!”

दादी- “अरे… बच्चों…हे भगवान!”

और तभी कौवो के राजा कल्पी के आदेश से बाकी कौए उस बच्ची को उठा कर वापिस चले जाते है।

करन- “नहीई….. छोड़ दो उसे!”

दादी- “नही…छोड़ दो मेरी बच्ची को… जाने दो..!”

जहाँ एक और करण के सभी मित्र परेशान थे वहीं दूसरी ओर बच्ची बड़ी शांत दिख रही थी।

वधिराज- “अरे देखो तो ,बच्ची बड़ी शांत है और बिल्कुल परेशान भी नहीं दिख रही..!”

चिड़िया- “हां यही तो मैं भी सोच रही हूं!!

करमजीत- “लेकिन हमें उसे बचाना होगा!!”

चिडया- “चलो जल्दी चलो इन का पीछा करो..!

बुलबुल- “आप चिंता मत करिए दादी मां… हम आप की बच्ची को वापस ले कर आएंगे लेकिन आप अपना ध्यान रखिएगा!”

दादी- “ठीक है बेटा. ध्यान रखना.!”

वधिराज- “चलो , सभी लोग सावधान रहना..!”

वहीं दूसरी और कल्पी अपनी विजय पर खुश हो रहा था

कल्पी- “हा हा हा…अब हम इस बच्ची की मदद से उन लोगों का वध कर देंगे..!”

बच्ची- “अच्छा…लेकिन तुम ऐसा नहीं कर पाओगे? ”

राजा कल्पी- “क्यों?? मैं भला क्यों नहीं कर पाऊंगा?”

बच्ची- “क्योंकि तुम एक बुरे इंसान हो और बुरे इंसान का अंत बुरा ही होता है!”

राजा- “अच्छा तो देखते है…फिर कौन किस का अंत करता है!”

वही उन का पीछा करते हुए कर्ण और सभी साथी भी कौवो के राज्य में पहुंच जाते हैं। वही कौए का राजा उस बच्ची को ले कर अंदर जा चुका है..जहाँ सिंहासन पर उन का महाराजा कुलकु विराजमान है

लव- “कितना गंदा है ये महल, एकदम काला!!”

कुश- “कौए भी तो काले होते हैं!”

बुलबुल- “ये मजाक का समय नही है, सभी ध्यान से अंदर जाएंगे क्योंकि क्या पता वहां कोई जाल बिछा रखा हो!”

टॉबी- “हाँ बुलबुल…बस सब सही से हो जाए..!”

शुगर- “हाँ… चलो भगवान का नाम ले कर अंदर चलते हैं !”

सब अंदर जाते है… देखते हैं कि अंदर बहुत अंधेरा है और हर जगह पेड़ की शाखाये और जाले लगे हुए है।

करन और करमजीत अपनी तलवार का इस्तेमाल क रके सारे शाखाओ को काटते हुए चल रहा है।

कर्ण- “काफी अंधेरा है , सभी लोग बच कर चलना, क्या पता जमीन के नीचे भी कुछ हो…!”

करमजीत- “हां ये शाखाएं हमे जकड़ न ले कहीं, तलवार हाथ मे ही रखना सब!

और सभी लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं।

और देखते ही देखते वह जगह हिलने लगती है…

वधिराज- “ये क्या हो रहा है?? जमीन हिल रही है”

लव- “लगता है भूकंप आ रहा है!

बुलबुल- “नही, ये कुछ और ही है!”

और अचानक से वहाँ की जमीन फट जाती है और उस जमीन के अंदर टॉबी गिरने वाला होता है कि तभी वो किनारा पकड़ लेता है

टॉबी- “आ,,,, आ! बचाओ

चिडया- “अरे…. टॉबी.. …!”

वधिराज- “चिंता मत करो, मैं संभालता हूँ!”

वधिराज उसे पकड़ लेता है और बाहर निकाल लेता है।

टॉबी- “करण मुझे डर लग रहा है! हर बार मेरे साथ ही ऐसा होता है”

कर्ण- “डरो मत, मेरी गोद मे आ जाओ!!”मैं तुम्हें कुछ भी नहीं होने दूंगा कभी भी..!”

करण उसे गोदी में उठा लेता है, औऱ फिर से सब आगे बढ़ने लगते हैं।

कर्मजीत- “इन ..शाखाओं को काटते चलो…!”

बुलबुल- “हाँ काट रहे हैं!!”

तभी एक और मुसीबत आन पड़ती है।

करन के कदम रुक जाते हैं और उस के दोनों हाथ पेड़ की शाखाओं से कस जाते है.. और वो बंध जाता है।

कर्ण- “नही , सभी लोग ध्यान से… ये शाखाएं धीरे धीरे आगे आ रही है!”

लव- “ओह नही!! बचो

कुश- “इसी का तो डर था!”

और देखते ही देखते वो सभी भी उन शाखाओं में बंध जाते है।

वधिराज- “मैं कुछ नही कर पा रहा हूँ और न जाने क्यों मुझे 2 दिन से कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है

करमजीत- “ये जगह ही ऐसी है वधिराज जी, चिंता मत कीजिये!”

चिड़िया- “हम सभी जाल मे फ़स गए है… अब हम सब इन से कैसे बचेंगे?”

वधिराज- “हाँ और उस बच्ची को भी तो बचाना है..!”

बुलबुल- “हाँ.. वधिराज जी…अब क्या होगा??”

वहीं दूसरी और कौवे का बड़ा राजा कुलकु एक कांच के गोले में यह सब देख कर बहुत खुश हो रहा है

कुलकु- “वाह भई वाह!…आज तेरी वजह से हम ने इन सभी को चकमा दे दिया.. बहुत समझदार हैं बेटा तू

राजा कौवा (कल्पी)- “हाँ पिता जी.. अब आप को पता चल गया ना कि मेरी योजना भी कितनी उत्तम होती है!”

कुलकु- “हाँ…बिल्कुल… अति उत्तम ..अति उत्तम!”

वहीं इन दोनों की वार्तालाप सुन कर वो बच्ची मुस्कुरा रही थी।

कुलकु- “तेरे प्राण संकट में है और तू यहां पर मुस्कुरा रही है? ”

बच्ची- “हा हा हा, मैं डरती नही हूँ!

कल्पी- “इस को लग रहा है कि ये बच्चे इस को बचा लेंगे.. तो चलिये पिता जी…क्यों ना इन बच्चों के संकट को और भी बढ़ाया जाए!”

कुलकु- “हां बेटा तू सही कहता है! हा हा हा

कल्पी (मंत्र पढकर)- “या भट्ट!! जल्दी से उस जगह पर जमीन से कांच निकलने लगे!”

और वही दूसरी ओर करण ओर बाकी लोग भयभीत हो जाते हैं क्योंकि जमीन से अचानक से कांच के टुकड़े निकलने लगे थे।

टॉबी- “ये क्या!! करण अब हम सब मर जाएंगे? है ना”

शुगर- “नही.. टॉबी.. ऐसा मत कहो, सब ठीक हो जाएगा..!”

बुलबुल- “ओह नही, देखो तो इन टुकड़ों को! ये तो”

चिड़िया- “हां वये कांच के टुकडे धीरे-धीरे कर के बढ़ रहे है और हमारे पैरों को छूने ही वाले है

कुश- “अब क्या करें!”

करमजीत- “जितना हो सके पैर ऊपर कर लो!!”

करण और बाकी लोग काफी चिंतित हो गए थे क्योंकि उन्हें कोई उपाय नजर नही आ रहा था।

करन- “हे माता रानी.. हमारी रक्षा करो..!”

चिड़िया- “हे भगवान!! बचाओ

और तभी वो बच्ची यह सब देख नहीं पाती और ववो बहुत गुस्सा होती है और अचानक उड़ कर कुलकू के सिर पर बैठ जाती है और उसे अपने हाथों से मारने लगती है।

बच्ची- “दुष्ट, तूने ये अच्छा नही किया!”

कुलकु- “आ, छोड़ मुझे, छोड़!”

कुलकु दुर्गा को हटाने का प्रयास करता है लेकिन वो काफी ताकतवर थी।

कुलकु- “अरे तुम सब देख क्या रहे हो.. मुझे बचाओ!”

कल्पी- “तेरा ये दुस्साहस!”

कल्पी अपने पिता जी को बचाने आता है तो वो बच्ची उसे उठा कर दूर फेंक देती है जिस से कल्पी किसी नुकीली चीज के ऊपर गिर जाता है और उस की मौत हो जाती है।

कुलकु- “नही!! तुझे मैं जिंदा नहीं छोडूंगा यह तूने अच्छा नहीं किया..!”

बच्ची- “ये इसी लायक था!”

और कुलकु उस पर वार करता है लेकिन बच्ची बार-बार बच जाती है..और वो गुस्से मे कुलकु के सीने पर अपना एक पैर रखती है तो कुलकु को सांसे थम जाती है।

तो एपिसोड में हम देखेंगे कि आखिर कौन थी वह बच्ची जो इतनी छोटी सी हो कर भी इतनी बहादुर थी।

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