Homeतिलिस्मी कहानियाँ55 – आदिवासियों का हमला | Aadivasiyo ka Hamla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

55 – आदिवासियों का हमला | Aadivasiyo ka Hamla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि सभी मित्र एक ऐसे राज्य में चले गए थे, जहां पर सूखा पड़ा हुआ था.. और उस का ऐसा हाल आलोक नाम के एक क्रूर राजा की वजह से हुआ था। वही करण और उस के मित्र उस राज्य की समस्या का समाधान करने का प्रयास करते हैं। अंत मे, वो एक चुड़ैल को पिंजरे में बन्द कर के मुक्त करवा देते हैं, इस के बाद उन पर आक्रमण हो जाता है।

आक्रमण से हर जगह हलचल मच जाती है।

सैनिक- “राज्य पर आलोक ने आक्रमण कर दिया है। सभी सावधान हो जाओ

करमजीत- “चलो साथियों!!

सैनिकों के साथ करण और उस के साथी बहादुरी से आलोक की सेना से लड़ते हैं, और सब को हरा देते हैं।

बुलबुल- “आखिर हम जीत ही गए!”

लव- “हां, आधे तो डर कर ही भाग गए हा हा हा!!!

कुश- “बहुत अच्छा युद्ध लड़ा सब ने!

पुरु- “हां, आप सब बहुत बहादुर हैं!

अब महल में हर जगह शांति हो गयी थी।

पंडित- “शायद ये चुड़ैल… राजा आलोक की मृत पत्नी थी…मै इन दोनों को जानता हूँ..!”

राजा पुरु- “हाँ, पण्डित जी सही कह रहे हैं।…ये उस की पत्नी ही तबि!”

पंडित- “परंतु पहले उस की पत्नी और राजा आलोक ऐसे नहीं थे..वे लोग पाठ पूजा कर किया करते थे.. लगता है शक्ति और शासन के लालच में दोनों नें गलत काम करना शुरू कर दिया!”

करण- “अच्छा, हम इन के इतिहास में बारे में नही जानते, बस ये जानते हैं कि राजा आलोक सही नही थे….!”

चिड़िया- “तभी तो उन सब का अंजाम भी इतना बुरा हुआ !!”

राजा पुरु- “तुम सब ने बहुत बहादुरी और बहुत चतुराई दिखाई जिस के कारण आज हमारा राज्य.. राजा आलोक के चंगुल से छूट गया है!”

इस के बाद, महल के कुछ दास बाहर जाते है और जंगल से बहुत सारे फल फूल ले कर वापस महल में आते हैं।

दास 1- “देखो..अब तो हम लोग बिना किसी रोक टोक के आराम से अपना कार्य कर रहे हैं!”

दास 2- “हां…यह सब कमाल तो उन बच्चों का है जो हमारे राज्य में मेहमान बन कर आए हैं! उन की वजह से ही हम अब अच्छे से खा पाएंगे”

और इस तरह सूखा पड़ा ये राज्य हरा भरा हो जाता है और सब लोग फिर से हंसने खेलने लग जाते है।

थोड़ी देर बाद वधिराज राजा पुरु से उस जादूगर के बारे में बात करता है

वधिराज- “तो क्या आप किसी ऐसी जादूगर के बारे में जानते हैं महाराज? ”

राजा- “मैं ज्यादा कुछ तो उस जादूगर के बारे में तो नहीं जानता .. परंतु मैंने एक बार गुरुजी रामदास के मुख से उस के बारे में सुना था…वे मेरे पुराने गुरु थे.. परंतु मुझे यह नहीं पता कि अब वह कहां है…!”

करन- “तो आप को उस जादूगर के बारे में जो कुछ भी पता है महाराज.. कृपया कर के हमें बताइए !”

राजा- “हाँ… मैंने सुना है कि उस जादूगर ने एक बार अलबेली नगर में आक्रमण किया था और उस ने वहां के लोगों को बहुत परेशान किया था…शायद वहां के लोग ही तुम्हें कुछ बता सकते हैं..!”

वधिराज- “अच्छा…तो कृपया हमें वहां का रास्ता बताएं महाराज ..!”

राजा- “वहां का रास्ता..तो यहां पर कोई भी नहीं जानता होगा.. परंतु गुरु जी की बातों से मैं बता सकता हूं कि यहां से उत्तर दिशा में जा के कई नगर पड़ते है…वहाँ किसी से पूछ लेना..!”

चिडया- “ठीक है महाराज ! आप का बहुत-बहुत शुक्रिया..!”

वधिराज- “ठीक है महाराज.. तो अब हम सब को यहां से प्रस्थान करना होगा..!”

राजा- “कुछ दिन यहां ठहर जाओ, हमे सेवा का मौका तो दो!”

कर्मजीत- “नहीं महाराज.. हम सब को अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को समाप्त करना है.. हम सब को अब जाना ही होगा!”

राजा- “ठीक है..! ईश्वर तुम्हे सफलता दे”

और सब वहां से चले जाते हैं।

शाम के वक्त, सभी लोग आराम करने के लिए एक जगह पर ठहरते हैं कि तभी अचानक से उस जंगल में आग लग जाती है।

टॉबी (नाक सिकोड़ते हुए)- “कुछ जल रहा है

करमजीत- “देखो धुंआ हो गया है हर जगह, जंगल मे आग लगी है!”

शुगर- “अरे अचानक से यह क्या हो रहा है? आग किस ने लगा दी”

कर्ण- “बचो सब.. आग यहां तक आ गयी है।

उन के चारों तरफ आग बहुत ज्यादा लग चुकी थी.. वही करमजीत और बाकी मित्र भी वहां से निकलने के लिए रास्ता खोज रहे थे

लव- “ओह नही, अब क्या करें!”

कुश- “हर जगह आग फैल गयी है, जल जाएंगे हम!!

करमजीत- “कोई रास्ता भी नजर नही आ रहा!

तभी वधिराज को एक छोटी सी जगह मिल जाती है, जहाँ तक आग नहीं पहुंची थी

वधिराज- “रास्ता मिल गया है… सभी लोग यहां से आओ…!”

सभी लोग वहां से निकलने लगते हैं। लेकिन करमजीत वहीं पीछे हो कर रुक जाता है

करण (तेज आवाज़ मे)- “करमजीत.. तुम भी आ जाओ.. धीरे-धीरे आग की लपटे बढ़ रही है..!”

कर्मजीत- “हाँ आ रहा हूँ बस…!”

चिड़िया- “ये करमजीत को क्या हो गया है, आ जाओ!

और कुछ देर बाद करमजीत वहां आता है।

चिड़िया- “क्या हुआ करमजीत?… तुम ठीक तो हो ना करमजीत?”

कर्मजीत- “हाँ.. तुम सब चिंता मत करो.. भला मुझे कुछ हो सकता है क्या हा हा हा?”

बुलबुल- “हाँ ये तो है.. तुम तो हो ही बलशाली!”

टॉबी- “हाँ… मेरे तो सभी दोस्त बलशाली ही हैं!”

वधिराज- “चलो सभी आगे बढ़ते हैं!”

और तभी करण को पीछे से किसी चीज की आवाज आती है और वह आवाज एक तीर की होती है। करण फुर्ती से उस तीर को पकड़ लेता है

बुलबुल- “हे भगवान यह कौन था??.. अगर किसी को लग जाता तो?!”

वधिराज- “हाँ… लगता है कोई है यहां पर, जो हम पर हमला कर रहा है!”

चिड़िया- “अब क्या करें?”

वधिराज- “आगे चलो जल्दी..!”

और थोड़ी आगे होते ही वो सभी लोग एक बड़े से जाल में एक साथ फंस जाते हैं। और पेड़ से लटक जाते हैं

वधिराज- “मुझे लगता है यहाँ कबीले के लोग रहते हैं, वो लोग ही इस तरह के जाल बिछा कर रखते हैं।

करन- “हां वधिराज, पर है कहाँ वो लोग! हम सब को जाने देंगे भी या नही..!”

लव- “करण, मैं तो अभी सब को इस जाल से बाहर निकाल दूँगा!”

और लव एक चाकू से उस जाल को काट कर सभी को बाहर निकाल देता है।

लव- “शुक्र है बच गए!”

कुश- “वरना लटके रहते दिन भर

वधिराज- “हम यहां से भगाना होगा..!”

और अचानक वो सभी कबीले के आदमियों से चारों तरफ से घिर जाते हैं।

सभी घबरा जाते हैं.. क्योंकि वहां कबीले वाले बहुत सारे थे।

फिर कर्ण और उस के सभी साथी बंधक बना लिए जाते हैं।

शुगर- “इन्होंने तो हम सब को बांध दिया , अब क्या करें, ये तो बहुत सारे हैं!

टॉबी- “इसलिए तो कुछ कर नही पा रहे, कहीं जान ही न ले ले हमारी!”

बुलबुल- “आखिर हमे यहां बांध कर ये लोग कर क्या रहे हैं!

चिड़िया- “ये कबीले वाले कुछ जादू टोना कर रहे हैं , देखो वो बीच में आग जला कर उस के चारों ओर परिक्रमा कर रहे हैं।

तभी वहीं दो कबीला वासी आ कर चिड़िया, टॉबी और शुगर को ले जाते हैं और पिंजरे में कैद कर देते है।..

लेकिन करमजीत चुप रहता है

टॉबी- “छोड़ो हमें!”

बुलबुल- “छोड़ दो उन को!!

कर्ण- “इन को हमारी भाषा नही समझ आयेगी!

तभी एक कबीला वासी कर्ण को दूर से छोटा सा तीर मारता है और करण को बेहोश कर दिया जाता है। और बाकी सब को आग के चारों तरफ बांध दिया जाता है

कुश- “ना जाने ये क्या कर रहे हैं, कर्ण को क्यों बेहोश कर दिया!”

वधिराज- “इन की भाषा तो कुछ समझ में ही नहीं आ रही..!”

बुलबुल- “वही तो, अगर हम इन से बात भी करना चाहे तो कैसे करें!”

टॉबी- “हम लोग मारे तो नहीं जाएंगे ना राजकुमारी जी? ”

शुगर- “नही टॉबी…. अपने साथियों पर यकीन करो..!”

चिड़िया- “हाँ.. टॉबी अपनी मन की शक्ति को बढ़ाओ.. ..हौसला रखो!”

और ऐसे ही कुछ घंटे बीत जाते हैं।.. सभी कबीले वाले सारे मित्रों को ऐसे ही बाहर छोड़ कर अपनें मिट्टी के बने हुए घर में चले जाते हैं।

तभी वहाँ दूसरे कबीले के 5 आदमी चुपके से आ जाते है।

लव (डर कर)- “य य य यये कौन है?”

कुश- “ओह नही…

दूसरी कबीले के आदमी कुश को उठा कर वहां से ले जाने वाले होते हैं कि तभी पुराने कबीले वाले आदमी उठ जाते हैं और दोनों समूहों में लड़ाई होने लगती है।

वहाँ मार काट हो रही है।

लव- “करमजीत कुछ करो…कर्मजीत…!”..

बुलबुल- “आज करमजीत अजीब व्यवहार क्यों कर रहा है!”

सब उसे बोलते हैं, लेकिन कर्मजीत कुछ करता ही नही.. ये देख कर सभी मित्र हैरान रह जाते हैं।

चिड़िया- “आखिर करमजीत को क्या हो गया है? ”

वधिराज- “वही तो मैं भी सोच रहा हूँ…!”

और तभी पहले कबीले के आदमी दूसरे कबीले वाले उन 5 आदमियों को मार देते हैं।

कर्मजीत- “ये सही नही हुआ…!”

वधिराज- “तुम ने उन की मदद क्यों नहीं की करमजीत?”

कर्मजीत- “अगर मैं कुछ करता तो वे लोग मुझे भी मार देते…!”

और उस की ऐसी बात सुन कर सभी मित्र चुप हो जाते हैं।

चिड़िया- “ये लोग बहुत खतरनाक है, कहीं हम सब को भी ना मार दें..!”

बुलबुल- “वधिराज तुम कुछ करो न!

तो वधिराज खुद का आकार बड़ा करने का प्रयास करता है लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाता।

वधिराज- “पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ!”

बुलबुल- “आप चिंता मत करिए.. कुछ ना कुछ तो होगा..! आज मेरा भी जादू काम नही कर रहा”

तभी कबीले वाले करण को कुछ पिला कर होश मे ले आते है।

करण को होश आता है तो वह देखता है कि सभी मित्रों के बगल में काबिले वाले दो आदमी तीर ले कर खड़े हैं।

तभी उन का सरदार आता है और करण को उंगली से एक इशारा करता है।

करण- “यह कहना चाह रहे हैं कि अगर मैंने कुछ भी होशियारी करी तो यह तुम सब को मार देंगे!”

टॉबी- “हाँ ध्यान से करण! हम यहाँ कुछ कर नही सकते”

शुगर- “हाँ करण .!”

और तभी कबीले का सरदार एक छोटी छुरी से करण के हाथ में छोटा सा घाव करता है… उस का खून बहने लगता है तो यह देख कर कबीले वाले हैरान हो जाते हैं।

तभी करमजीत उन के सरदार से उन की भाषा में कुछ कहता है और वो भड़क जाता है।

सरदार (चिल्ला कर अपने आदमियों से)-  “हा…कि की की…. हाप्पी…शी की कु!”

कबीला वासी 1- “हो शा..!”

और तभी दूसरा आदमी एक बड़ा हथियार ले कर आता है और सरदार को देता है।

वधिराज- “करमजीत तुम ने उन की भाषा में उन से क्या कहा?”

करमजीत- “कुछ नही..!”

उन का सरदार उस हथियार से करण का गला काटने ही वाला होता है कि तभी पीछे से कर्मजीत आ जाता है।

करन- “कर्मजीत तुम यहां…तो यहां पर जो है वो कौन है?? ”

कर्मजीत, “वो बहरूपिया है करण…!”

और पहले वाला करमजीत वहां से गायब हो जाता है।

तो कर्मजीत उन के कबीले के चारों ओर आग लगा देता है। और वहां भगदड़ मच जाती है।

तभी वधिराज और बाकी लोग कबीले के आदमियों से युद्ध करने लगते हैं।

करण- “नही.. करमजीत ऐसा मत करो..यहां पर इन के बच्चे भी हैं.. इस में इन की कोई भी गलती नहीं..तुम जल्दी से इस आग को बुझा दो..!”

बुलबुल- “हां …कर्ण सही कह रहा है

और करमजीत आग को बुझा देता है।

चिड़िया- “हा… तुम ने सही किया करमजीत… कम से कम बेचारे मासूम लोगों की तो जान नहीं जाएगी।”.

वधिराज- “हॉं…!”

और वो कबीले वाले करमजीत को घूर-घूर कर देख रहे थे।

चिड़िया- “इन्हे क्या हुआ.?”

बुलबुल- “कहीं फिर से हमला ना कर दे!

और अचानक सभी कबीले वाले करमजीत को झुक कर प्रणाम करते हैं

वधिराज- “लगता है ये तुम्हें देवता समझ रहे हैं करमजीत…!”

कर्मजीत- “हम्म.. अब हम सब यहां से चलते हैं..!”

और सभी मित्र वहाँ से जानें लगते है।

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