54 – राक्षस या तेंदुआ | Rakshas ya Tendua | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि सभी मित्रों को मल्ल और उस के भाई की सहायता मिली थी, जिस के कारण वे लोग राजकुमारी से बच कर निकल जाते है। वहीं रविंद्र नें राजकुमारी को भी मार दिया है।
वे लोग आगे बढ़ते हैं तो वहां पर एक राक्षस सब की जान लेने का प्रयत्न करता है, तभी रानू आ कर उन की सहायता करती है
बुलबुल- “लगता है ये लोहे के सामान इस राक्षस को पीड़ा दे रहे हैं!
रानू- “हां मैं और लोहा उत्पन्न करती हूँ, तभी इस का नाश होगा!”
तो रानू अपनी शक्ति से लोहे के बड़े तख्ते उत्पन्न करती है, और वो राक्षस के पेट मे खिंचे चले जाते हैं और वहीं उस की मौत हो जाती है।
लव कुश- “वाह!!! बच गए हम!”
रानू – “लगता है सब कुछ ठीक हो गया है..!”
वधिराज- “हाँ रानू.. तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया!”
रानू- “कोई बात नहीं , अपने मित्रों की जान बचाना ही तो एक अच्छे मित्र का कर्तव्य होता है…!”
कर्मजीत- “हाँ रानू जी..!”
करन- “तो चलो.. अब यहां से चलते हैं..!”
वधिराज- “हाँ, वैसे भी बहुत देरी हो गयी है !”
रानू- “ठीक है , अलविदा साथियों, जब भी आवश्यकता हो, मुझे याद कर लेना!”
चिड़िया- “ठीक है रानू!!
और रानू भी अलविदा कह कर वहां से गायब हो जाती है।
चिड़िया- “ना जाने ईश्वर हमारी कितनी परीक्षा लेंगे.. !”
वधिराज- “अच्छा वक्त भी आएगा राजकुमारी जी!!
चिड़िया- “हां, परन्तु मैं यह नहीं बोल सकती कि मुझ पर भगवान की कृपा नही है क्योंकि मुझे तुम जैसे महान मित्रों की सहायता भी तो मिल रही है!”
कर्मजीत- “हम जल्द ही आप का श्राप खत्म करवा देंगे, आप चिंता मत करिए..!”
करन- “हाँ राजकुमारी चंदा…!”
सभी आगे चलते जाते हैं और कुछ देर बाद टॉबी को भूख लग जाती है
टॉबी- “करण, काफी देर हो चुकी है, कुछ खाने को दे दो..!”
लव कुश- “हमें भी भूख लगी है!”
चिड़िया- “अरे हां हम अपनी परेशानी में इन की भूख भी भूल जाते है…!”
शुगर- “अरे ऐसी बात नहीं है राजकुमारी जी..!”
बुलबुल- “अरे … यहां तो आसपास कोई फल फूल नही है, कैसे पेड़ हैं ये..!”
कुश- “ओह…अब क्या खाएं???”
लव- “कोई बात नहीं थोड़ा आगे चलते हैं, क्या पता हमें खाने को कुछ ना कुछ मिल ही जाए..!”
टॉबी- “हाँ…लव.. तुम सही कहते हो.. चलो..!”
शुगर- “हाँ…चलो!”
चिडिया- “अरे.. टॉबी को भूख लग रही है और यहां पर तो कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा..!”
कर्मजीत- “हाँ यहां पेड़ पौधे तो बहुत है परंतु उस में एक भी फल नहीं लगा है, आश्चर्य की बात है!”
तभी करण को झाड़ियां के पीछे से किसी के आने की आवाज सुनाई देती है।
करण- “श~~~~ शांत… करमजीत.. लगता है कोई आ रहा है, सभी लोग सावधान हो जाओ!”
और तभी वहां पर चार आदमी उन के सामने आ जाते हैं.. जिन का चेहरा चीते जैसा और शरीर इंसान जैसा है।
कर्मजीत अपनी तलवार उन में से एक आदमी के सिर पर रख देता है।
करमजीत- “तुम सब कौन हो?”
आदमी 1- ” हम लोग.. हम लोग भी खाने की तलाश में यहां वहां भटक रहे हैं..!”
आदमी 2- “हाँ.. हम ने सुना था कि आप के मित्र को भूख लगी है.. तो हम ने सोचा कि जो कुछ भी खाने को मिला है उन्हें दे दिया जाए !!
आदमी 3- “क्यूंकि आप लोग यहां पर नये है तो आप हमारे अतिथि हैं…!”
करन- “आप सब कितने अच्छे हैं.. स्वयं संकट मे है और हम लोगों की भूख की चिंता है आप को…!”
आदमी 4- “कोई बात नहीं मित्र , हम सब का स्वभाव ही ऐसा है..!”
वधिराज- “उत्तम.. अति उत्तम!”
और वो आदमी अपनें झोले में से कुछ फल निकाल कर उन को देता है
आदमी 1- “लीजिए आप फल लीजिये…हमारे पास ज्यादा तो नहीं है परंतु हम सब मिल बांट कर थोड़ा-थोड़ा खा सकते हैं..!”
आदमी 2- “जल्दी खा लो, कहीं ये भी ना खत्म हो जाये!”
कर्ण- “मैं समझा नही, ये कैसे ख़त्म होंगे!!
तभी वहाँ पर तेज आवाज के साथ एक राक्षस आ जाता है और अपना मुंह खोलता हैं। इस के बाद वहां कोने कोने में जितने भी फूल और छोटे पौधे लगे थे , वो खुद ही उस के मुंह में खिंचा चला जाता है…।
बुलबुल- “अच्छा तो यह वजह है कि यहां पर किसी भी पेड़ पर फल नहीं है।”.
आदमी 1- “हाँ इसी का तो डर था..!”
बुलबुल- “दुष्ट राक्षस, चला जा यहां से. तेरी वजह से सब भूख से तड़प रहे हैं.!”
राक्षस- “तू है कौन???”
बुलबुल- “तेरा काल हूँ मे!”
राक्षस- “हा हा हा, तू छोटी सी चींटी जैसी , मेरा काल बनेगी हा हा हा!
बुलबुल- “अभी बताती हूँ, मुझे पास आने दे!”
राक्षस- “हां हां आ जा!”
आदमी 2- “नही मत जाओ!”
राक्षस को बुलबुल की शक्ति के बारे में नही पता था और वह उसे पास आने देता है और बुलबुल राक्षस की ऊँगली पकड़ लेती है, जिस से वह राक्षस एक पत्थर में बदल जाता है।
आदमी 3- “नही…ये सही नही हुआ… इस राक्षस का राजा हम से बदला जरूर लेगा…!”
चिडिया- “कौन राजा??”
आदमी 4- “आप सभी लोग जल्दी से हमारे साथ चलिए, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा.. हमें हमारे राजा को सब बताना होगा!”
और सभी लोग उन के राज्य में चले जाते हैं.. उन के राजा पुरु को सारी बात बताई जाती है।
उन का राज्य बिल्कुल भी हरा भरा नही था, ना पानी था, ना पेड़ पौधे..
कर्ण- “महाराज की जय हो!”
राजा पुरु- “आप सब का स्वागत है।
कर्ण उस राजा पुरु को अपने और अपने साथियों के बारे में सब बताता है।
और कर्ण उस राज्य की हालत देख कर हैरान था।
करण- “महाराज! सब से पहले तो मैं यह पूछना चाहता हूं कि ये राज्य इतना सूखा हुआ क्यों है?”
राजा पुरु- “अच्छा.. जिस राक्षस का विनाश आप की मित्र ने किया है.. वह कोई साधारण राक्षस नहीं बल्कि राजा आलोक का आदमी है… वह उस जगह की रक्षा करता है ताकि हम सब वहां जा कर कोई भी फल ना तोड़ सके।”
कुश- “लेकिन ऐसा क्यों??”
राजा पुरु- “क्योंकि आलोक चाहता है कि मैं हार मान लूं और अपने राज्य को उस के राज्य में मिला लूं… इसलिए वह इतनी क्रूरता दिखा रहा है…उस के राक्षस हमारी प्रजा को बहुत परेशान करते हैं ,उसी के कारण ये हाल हुआ है राज्य का..!”
लव- “इतना अभिमान भी सही नहीं…!”
राजा- “हाँ…लेकन वो उस राक्षस को मारने का बदला लेने जरूर आएगा.. पता नहीं कब!! परंतु जरूर आएगा!”
करण- “चिंता मत करिए राजा पुरु…हम आप की सहायता करेंगे…!”
कर्मजीत- “हाँ.. आप की प्रजा बहुत अच्छी है, अपने दुख को भुला कर दूसरो के दुख को प्रधानता देती है.. और ऐसे लोगों की सहायता करना तो पुण्य का कार्य है !”
और थोड़ी देर बाद सभी मित्र बैठ कर इस बात पर चर्चा करते हैं और योजना बनाते हैं।
करन- “वधिराज..और कर्मजीत!! आप राजा के आदमी के साथ फल एकत्रित करने के लिए जाना..!”
वधिराज- “ठीक है करण.. तुम सब यहां पर राज्य की रक्षा करना..!”
और कुछ घंटे बाद वधिराज और करमजीत कुछ आदमियों के साथ वहां से चले जाते हैं।
और तभी अचानक से तेज आवाज आती है और महल के दरवाजे से 2 बड़े बड़े राक्षस अंदर आ जाते है।
चिड़िया (चिल्ला कर)- “करनननननन..!”
बुलबुल- “ये महल में कैसे आ गए!”
कुश- “लगता है खाने की चोरी करने आये हैं!”
आसपास महल के लोगों में दहशत फैल जाती है, तभी वो 2 राक्षस महल मे रखे हुए फल फूल वहां से उठा लेते हैं।
करन- “तुम को जरा सी भी लज्जा नहीं आती??.. इन लोगों की हालत देखो.. तरस खाओ, इन सभी पर…!”
राक्षस 1- “हा हा हा… तेरी बकवास यहां पर कोई भी सुनने वाला नहीं है…!”
राक्षस 2- “और वैसे भी हम यहां पर वही कर रहे हैं जो हमारे राजा का आदेश है..!”
राक्षस 1- “और आदेश यह है कि इन सभी को कंगाल बना दिया जाए और एक-एक दाने के लिए तड़पा दिया जाए…हा हा हा”
चिड़िया- “ये सही नही है…कुछ तो…दया करो..!”
बुलबुल- “नहीं राजकुमारी जी, ये ऐसे नहीं मानने वाले..!”
बुलबुल उन के पास जाती है, लेकिन वो राक्षस उस पर फल फेंकने लगते हैं।
तभी बुलबुल अपनी तलवार से फल काटते हुए उन पर हमला करना शुरू कर देती है
बुलबुल- “छोडूंगी नहीं तुम दोनों को…!”
करण- “सम्भल कर बुलबुल!!”
करन (अपनी तलवार से दूसरे राक्षस से लड़ने लग जाता है)- “चले जाओ यहां से…!”
चिड़िया (प्रजा से)- “आप सब चिंता मत करो, सब ठीक होगा..!”
और तभी बुलबुल एक राक्षस का कान काट देती है।
राक्षस- “अह्ह्ह्ह…. तू जिन्दा नहीं बचेगी….!”
बुलबुल- “पहले तु खुद को और अपने मित्र को बचा!”
मौका मिलते ही बुलबुल उस राक्षस का हाथ पकड़ लेती है और वह पत्थर का बन जाता है।
लव- “वाह बुलबुल!”
कुश- “शाबाश!!
वहीं करण लड़ते हुए दूसरे राक्षस को कुएं के करीब ले जाता है और उस को कुएं में फेंक देता है
चिड़िया- “अभी तो ना जाने और कितने राक्षस आएँगे!!”
आदमी 1- “हां इन की मौत का पता लगते ही इन का राजा भड़क जाएगा!!”
आदमी 2- “हां हमें तैयार रहना होगा!”
तभी करमजीत और वधिराज भी कुछ फल ले कर वहां रखते हैं। लेकिन तभी ज़ोर की आंधी आ जाती है और सारे फल उड़ जाते है।
आदमी 1- ” हमें पता था ऐसा ही होगा… राजा आलोक हम सभी को जीने नहीं देगा..!”
वधिराज- “लगता है कोई शक्ति है.. जो यहां महल मे है..!”
कर्मजीत- “हम्म्म…पता लगाना होगा..!”
करण- “महाराज आप पूरी प्रजा में घोषणा करवा दीजिये कि महल में कोई है, जो हमारा बुरा चाह रहा है!”
राजा पुरु- “ठीक है! जाओ सैनिकों, प्रजा को यहां एकत्रित कर लो!°
तभी कर्ण उस राजा के कान में कोई बात कहता है
राजा- “सैनिकों, भंडार गृह में जितने भी फल है, सब ले आओ, आज प्रजा में से कोई भूखा नही रहना चाहिए!”
सैनिक- “जी महाराज !!”
तो वहां फलों का ढेर लगा दिया जाता है
औऱ थोड़ी देर में, महल में बहुत सारे लोग आ जाते हैं।
राजा- “ये सारे फल हम ने भंडार गृह में रखे थे, आप लोग एक एक कर के आइये, और एक फल उठा लीजिये!”
तो सभी लोग एक एक कर के फल उठा लेते हैं और खाने लगते हैं
राजा- “मेरे प्यारे नागरिकों, हमारे यहां कोई ऐसा है , जो हम पर नजर रख रहा है और हमारे ऐसे हालात हो रहे हैं…!”
यह सुन कर प्रजा हैरान रह जाती है। और सब मे कानाफूसी होने लगती है।
प्रजा से आवाजें
आवाज 1- “अब क्या होगा महाराज,
आवाज 2- “हम कैसे सुरक्षित रहेंगे,
आवाज 3- “कुछ कीजिये महाराज,
आवाज 4- “आखिर कौन है,
आवाज 5- “कोई उपाय बताइये महाराज!!”
राजा- “शान्त.. आप सब चिंता मत करिए, उस का पता चल चुका है.. ये जो फल आप सभी नें खाये है..उन्हें एक जादुई जल से धुलवा दिया गया था.. तो क्योंकि इस फल को सभी ने खाया है इसलिए उस व्यक्ति ने भी अवश्य ही खाया होगा.. और अगली सुबह उस का असली चेहरा सब के सामने आ जाएगा..!”
एक सैनिक A- “लेकिन महाराज, उस का तो तोड़ है, जो भंडार गृह में जल रखा है, वो उस के प्रभाव को तोड़ देगा!!
राजा (गुस्से से)- “मूर्ख सैनिक, चुप रहो, इसे बंदी बना लिया जाए!”
सैनिक! A- “नही नही, माफ कर दीजिए!!”
लेकिन राजा के दूसरे सैनिक उस को बंदी बना कर ले जाते हैं
राजा- “माफ करना , उस सैनिक की बात पर ध्यान मत देना, वो झूठ बोल रहा था!!
तो रात में कोई चुपके से भंडार गृह में जाता है, और वहां रखा हुआ जल पी लेता है।
अगले दिन, फिर से सारी प्रजा को बुलाया जाता है।
करमजीत व वधिराज दरवाजे पर खड़े हो कर आने वाले लोगो को ध्यान से देख रहे थे।
करमजीत- “ध्यान से देखना वधिराज, वो बच कर न निकल जाए!”
वधिराज- “हां मैं देख रहा हूँ, जिस की भी गर्दन पर निशान होगा, उस को पकड़ लेंगे!!
तभी उन को एक औरत की गर्दन पर नीला निशान दिख जाता है, करमजीत दूर से कर्ण को इशारा करता है।
कर्ण उस औरत के पास जाता है।
कर्ण- “सुनिए बहन, क्या आप ने फल ले लिए थे!!”
औरत- “हां, लेकिन मेरे घर मे बच्चे हैं, मुझे उन के लिए फल चाहिए!!”
कर्ण- “अच्छा, आइये मेरे साथ भंडार गृह में, मैं आप को फल देता हूँ!”
तो कर्ण उस औरत को भंडार गृह में ले जाता है, वहां एक बड़ा पिंजरा रखा था।
कर्ण- “आप को जितने भी फल चाहिए, आप ले लीजिए!
औरत- “धन्यवाद!!
वो औरत फल लेने लगती है और तभी पीछे से करमजीत आता है, और उस के पैरों में रस्सी बांध देता है और उसे पिंजरे में बन्द कर देता है।
वो औरत एक चुड़ैल मे बदल जाती है।
चुड़ैल- “जाने दो…मुझे जाने दो…!”
करमजीत- “अब तेरा खेल खत्म हुआ!
तभी वहां पुरु राजा एक पंडित के साथ आते है और पूजा पाठ करते है..
कर्ण के सभी साथी भी वहां आ जाते हैं
पण्डित के तंत्र-मंत्र करने के बाद चुड़ैल को मुक्ति मिल जाती है।
अचानक राज्य में राजा आलोक अपनी सेना के साथ आक्रमण कर देता है।
तो अगले एपिसोड के हम देखेंगे कि करण औऱ उस के साथी राजा आलोक का सामना कैसे करते हैं।