Homeतिलिस्मी कहानियाँ49 – राक्षस से मुकाबला | Rakshas se Mukabla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

49 – राक्षस से मुकाबला | Rakshas se Mukabla | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि तालाब की रानी किस तरीके से अपनी खोई हुई अंगूठी करण और करमजीत से ढूंढ़वा लेती है। और तालाब में अंगूठी ढूंढते समय करमजीत का हाथ भी कट जाता है। करण सुबह होने से पहले ही उस अंगूठी को ढूंढ लेता है, और इसी वजह से रानी को करण के सारे मित्रों को वापस जीवित करना पड़ता है।
अंत में सब कुछ सही हो जाता है।

बुलबुल- “करन, कर्मजीत, तुम दोनों ठीक तो हो ना,??,

टॉबी (रोते हुए)- “पता नहीं यह सब क्या हो रहा है और न जाने अभी आगे हमें क्या-क्या सहना होगा!”

करन (टॉबी को गले लगा कर)- “हम दोनों बिल्कुल ठीक हैं ,तुम चिंता मत करो और रो मत…!”

करमजीत- “हम सब साथ हैं और जब तक हम साथ हैं, तब तक हमें कोई भी बुरी शक्ति हरा नहीं सकती!”

चिड़िया- “हाँ करन,हम सब साथ है, और तुम सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !! पता नहीं मैं तुम्हारा यह कर्ज कभी उतर पाऊंगी भी कि नहीं!!”

कर्मजीत- “देखिए राजकुमारी जी, हम आप के दर्द को समझ सकते हैं इसीलिए हम आप के साथ हैं !”

करण- “और आप ने इतने सालों तक इतनी प्रतीक्षा करी और इतनी कुर्बानी दी.. बस समझ लीजिए कि हम सब उसी का फल है!”

बुलबुल- “हाँ राजकुमारी जी, आप बार-बार धन्यवाद कह कर हमे शर्मिंदा ना करें.. हम सब अपनी इच्छा से आये हैं..!”

इन सब की ऐसी बातें सुन कर चिड़िया रोने लगती है और सब के पास जा कर उन्हें गले से लगा लेती है।

इस के बाद थोड़ा आगे चलने पर उन्हें एक झरना मिल जाता है और उस झरने से वो सभी पानी पी लेते है।

शुगर- “वधिराज जी… अब हमें कहां जाना है?”

वधिराज- “अब हमें नित्यलोक जाना है… तुम सब मेरे पीछे-पीछे आओ!”

और सभी लोग आगे बढ़ते रहते हैं। तभी काफी आगे जाने पर सभी लोग देखते हैं कि आगे कोई रास्ता नहीं है । सिर्फ एक बड़ी सी खाई है और खाई पार कर के ही आगे जमीन है।

लव- “अरे रास्ता तो खत्म हो गया, बस खाई ही रह गयी!”

कुश- “हां, यहां तो ना कोई पुल है, ना कुछ और है, आखिर हम सब उस तरफ कैसे जाएंगे,?”

वधिराज- “तुम सभी लोग मेरे पीठ पर बैठ जाओ! मैं ले जाऊंगा!!”

तो वधिराज सभी को अपनी पीठ पर बिठा कर वहां से उड़ कर खाई से पार जाने लगता है। वो उड़ तो जाता है, लेकिन वो आगे जा नही पाता।

वधिराज- “अरे यह क्या, !!”

बुलबुल- “क्या हुआ वधिराज, तुम ऐसे बीच मे क्यों रुक गए!”

वधिराज- “मैं रुका नही हूँ, ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने मुझे रोक रखा है, पता नही क्यों मैं आगे नही जा पा रहा!”

करमजीत- “लगता है यहां किसी शक्ति का प्रभाव है, जो हमें आगे बढ़ने से रोक रही है!”

करण- “हां करमजीत, सही कहते हो!!”

असल मे वहां पर किसी दिव्य शक्ति का प्रभाव था, जो कि दिखाई नहीं दे रही थी… वो शक्ति उसे वहां से उड़ कर दूसरी तरफ जाने नहीं दे रही थी…तो वधिराज बहुत प्रयास करता है परंतु फिर भी नहीं जा पाता।

लव- “अरे वो देखो, सामने किसी मनुष्य का विशाल हाथ दिखाई दे रहा है!!”

कुश- “ये तो हमारी ओर ही आ रहा है!”

बुलबुल- “ओह नही, फिर से नई मुसीबत!!”

करन- “वधिराज जी, जल्दी से पीछे चलिए, नहीं तो यह हमें नीचे गिरा देगा..!”

चिड़िया- “हाँ, मुझे यहां किसी अदृश्य मनुष्य के अस्तित्व का आभास हो रहा है..लगता है कोई है यहां पर ,जो हम पर नजर रख रहा है!”

कुश- “हे बजरंगबली!! रक्षा करना…!”

और तभी अचानक से बादल में तेज गर्जना होने लग जाती है और पूरी धरती भी हिलने लग जाती है।

टॉबी- “अरे…अरे मुझे तो बहुत डर लग रहा है, कहीं हम पर बिजली ना गिर जाए!”

वधिराज- “सभी लोग एक दूसरे को अच्छे से पकड़ लो, मैं पीछे जा रहा हूं! मैं पीछे जाता हूँ”

और वधिराज मुड़ कर वापस उसी जगह पर आ जाता है।
सब कुछ शांत हो जाता है।
सभी मित्र काफी चिंतित थे और यहां वहां देख रहे थे।

बुलबुल- “अब तो कोई उपाय भी नजर नही आ रहा, अब क्या करें!”

करण- “कुछ देर के लिए हम यहीं पर बैठ जाते हैं और सोचते हैं कि आखिर आगे क्या किया जाए।”

करमजीत- “हां.. ठीक है !

वो सब लोग हताश हो कर बैठे ही होते हैं कि तभी वहां पर अचानक से एक बहुत बड़ा आदमी आ जाता है। जिस के शरीर पर बड़े बड़े काले दाग थे।

आदमी (शॉकाल)- “हा हा हा… मेरा नाम है शॉकाल..उतार देता हूं मैं सब की खाल! हा हा हा”

करन- “आप कौन है????”

आदमी- “यह मेरा इलाका है, मेरी इच्छा के विरुद्ध यहां से कोई भी आगे नहीं जा सकता! किसी ने कोशिश की तो मारा जाएगा”

वधिराज- “तो आप यहां के रक्षक हैं.. आप चाहते हैं कि हम यहां से आगे ना बढ़ पाए, लेकिन क्यों?”

शॉकाल- “बिल्कुल सही पहचाना, वैसे मालूम पड़ता है कि तुम भी एक राक्षस ही हो ,बिल्कुल मेरी तरह!”

वधिराज- “परंतु मैं आप की तरह अन्याय नहीं करता… मैं सभी से मित्रता करने की चाह रखता हूं!”

शॉकाल- “हा हा हा! राक्षस हो कर भी तुम बातें तो काफ़ी अच्छी कर लेते हो… मेरे मित्र!”

वधिराज- “सिर्फ बातें ही नहीं… मैं कार्य भी अच्छे ही करता हूं!”

करमजीत- “हम यहां किसी नेक कार्य के लिए आये हैं और हमारा आगे जाना बहुत जरूरी है, कृपया कर के हमें जाने दीजिए!”

शाकाल- “हा हा हा! तुम मुझ से कुछ मत कहो, तुम सब को देखते ही मैं सब जान गया हूँ!!

और तभी शाकाल अपनी आंखें ऊपर की ओर करता है और धीरे धीरे कुछ मंत्र पढ़ता है, जिस के बाद वहां खाई के ऊपर एक पुल बन जाता है।

बुलबुल- “अरे वाह, देखो तो, वहां पुल बन गया है!”

शॉकाल- “मुझे तुम सब बहुत अच्छे मनुष्य मालूम पड़ते हो…इसलिए मैं तुम सब की कोई परीक्षा नहीं लूंगा और तुम सब को आगे जाने दूंगा!”

वधिराज- “परंतु हम यह कैसे मान ले कि आप सच कह रहे हैं!”

शॉकाल- “ठीक है ठीक है तो तुम सब मेरी ही परीक्षा ले रहे हो… उत्तम…. अति उत्तम!”

तभी एक लोमड़ी बायीं और से आ रही थी.. तो शॉकाल उस की तरफ इशारा करता है।

शाकाल- “देखो वह लोमड़ी इस तरफ आ रही है और वह इसी पुल से चल कर आगे जाएगी, चूंकि वह भी एक जीव है बिल्कुल तुम्हारी ही तरह … तो इस का तात्पर्य है कि तुम सब भी इस पुल को आराम से पार कर सकते हो!”

वधिराज- “ठीक है!”

तो सभी की नजर लोमड़ी पर रहती है और वह लोमड़ी आराम से उसे पुल को पार कर जाती है।

करमजीत- “ठीक है, तो अब हम भी यहां से चलते हैं..

कर्ण- “परंतु इस पुल पर सब से पहले मैं चढ़ कर जाऊंगा, उस के बाद ही आप सब आना !”

बुलबुल- “ठीक है!”

और करण आगे की तरफ बढ़ता है लेकिन जैसे ही वह उस पुल पर पैर रखता है, वैसे ही उसे ज़ोर के झटके लगते हैं, जिस से वह पीछे गिर जाता है।

बुलबुल- “नही~~~~करण……!!!!”

करन- “मै ठीक हूँ, बस थोड़ी ही चोट लगी है..तुम सब चिंता मत करो!”

चिड़िया- “शॉकाल जी, आप ने हमारे साथ ऐसा छल क्यों किया?”

शॉकाल- “तुम सब को क्या लगता है कि मैं तुम सब को ऐसे ही ये पुल पार करने दूंगा?”

कर्मजीत- “तो बताइए..आखिर हमें उस पार जाने के लिए क्या करना होगा?”

शॉकाल- “मैं तुम से कुछ पहेलियां पूछूंगा , बस तुम्हें उन पहेलियों का उत्तर एक ही बार में सही देना है! अगर पहली बार मे सही उत्तर दे पाए, तभी आगे जा पाओगे”

लव- “ठीक है , हम सब तैयार हैं!”

शॉकाल- “शुरू होनें पर मैं लम्बी होती हूँ….औऱ जब मैं खत्म होने वाली होती हूँ तो छोटी होती जाती हूँ,…?? बताओ वह क्या है…”

सभी मित्र आपस में बातचीत करते हैं और इस प्रश्न का सही उत्तर ढूंढने का प्रयास करते हैं

चिड़िया- “बहुत सोच समझ कर हमें इस का उत्तर ढूंढना है, क्योंकि एक ही मौका दिया जाएगा!”

बुलबुल- “हां राजकुमारी जी, सोच रहे हैं सब!”

शाकाल- “हा हा हा हा !! सोचो सोचो अच्छे से सोचो, वरना मारे जाओगे!”

टॉबी- “हां!!! मोमबत्ती!”

शॉकाल- “वाह वाह !, उत्तम~~~~ अति उत्तम.. तुम ने तो बिल्कुल सही उत्तर दिया.. मेरे प्यारे छोटे मित्र!”

कुश- “कृपया अब दूसरी पहेली पूछिए!”

शॉकाल- “एक एक क्षण बढती हूँ, बस बढ़ती ही जाती हूं…..कभी भी नहीं घटती हूँ..?.. बताओ कौन हूं मैं?”

वधिराज (सोचते हुए)- “इस का उत्तर क्या होगा, यह मुझे तो बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा!”

फिर सभी लोग इस पहेली का उत्तर ढूंढने का प्रयास करते हैं परंतु उन सभी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस का सटीक उत्तर क्या हो सकता है।

करमजीत- “क्या हो सकता है उत्तर, कुछ समझ में नही आ रहा!”

बुलबुल- “हां मुझे भी!”

चिड़िया- “हे ईश्वर!!, क्या करें अब!”

और तभी लव इस पहेली का उत्तर समझ लेता है।

लव- “मुझे तो लगता है इस पहेली का उत्तर उम्र होगा , क्योंकि हमारी उम्र बढ़ती जाती है और कभी घटती नहीं है, उम्र सदा बढ़ती ही जाती है!”

करन- “हां लव , तुम बिल्कुल सही कह रहे हो, तुम्हारा उत्तर बिल्कुल सही है!”

शाकाल उन की बातें सुन कर चौंक जाता है। और शाकाल को देख कर वधिराज भी समझ जाता है कि लव का उत्तर सही था।

वधिराज- “शाकाल! इस पहेली का उत्तर है उम्र!”

शॉकाल- “वाह!! बिल्कुल सही कहा.. इस पहेली का उत्तर उम्र ही है..बधाई हो तुम सभी विजयी हुए!”

लव- “तो कृपया कर के अब हमें यहां से जाने दें महाराज!”

शॉकाल- “हाँ जाओ… जाओ.. परंतु याद रहे कि तुम केवल इस पुल से ही दूसरी तरफ जा सकते हो!”

और पहले कर्ण-  करमजीत और वधिराज उस पुल की सहायता से खाई पार करने की सोचते हैं। लेकिन उस पर चढ़ते ही वो पुल तो जोर-जोर से हिलने लग जाता है, मानो जैसे कोई तूफान चल रहा हो।

टॉबी- “हम इस पुल पर से कैसे जा सकते हैं! ये तो बहुत ज्यादा हिल रहा है”

शुगर- “हाँ,ऐसे तो हम सब खाई में नीचे गिर जाएंगे!”

शॉकाल- “हा हा हा हा ऐसे ही आसानी से नहीं जाने दूंगा!”

चिड़िया- “अब क्या किया जाए?”

बुलबुल- “वधिराज आप ही कुछ सोचिए, क्योंकि ये भी एक राक्षस हैं और आप भी, आखिर इसे क्या चाहिए!”

तो वधिराज इस के बारे में सोचने लग जाता है, तभी उसे कुछ याद आता है।

वधिराज- “हो सकता है इस राक्षस को लड्डू पसंद हो…क्योंकि ये इस इलाके का रक्षक है और मैंने इन रक्षक राक्षसों के बारे में यह बात सुनी है!”

तभी वधिराज एक योजना बनाते हैं और सभी योजना के अनुसार कार्य करते हैं।

चिड़िया अपनी आंखें बंद कर लेती है और कुछ मंत्र पढ़ कर माता रानी से प्रार्थना करती है।

और वहाँ बहुत सारे लड्डू प्रकट हो जाते हैं।

चिड़िया- “लीजिए शाकाल जी.. यह लड्डू आप के लिए ही है.. इसे हमारी ओर से भेंट समझिए!”

शॉकाल- “वाह्ह!! वाह!! उत्तम अति उत्तम!!.. बहुत-बहुत शुक्रिया! लड्डू तो मुझे बहुत ही पसंद है”

और शाकाल अपने हाथ भर कर एक साथ लड्डू खाने लगता है।

और तभी बुलबुल शाकाल की एक ऊँगली को छू लेती है ,जिस से शाकाल पत्थर का बन जाता है
और पुल भी पत्थर बन जाता है…और इस प्रकार वो लोग बड़े आराम से उसे पुल के ऊपर खड़े हो जाते हैं

लव- “अरे वाह!! अब तो ये पुल बिल्कुल भी नही हिल रहा”

टॉबी- “वाह! बुलबुल तुम ने तो कमाल ही कर दिया.. वैसे मानना पड़ेगा कि हमारे सारे मित्र एक से बढ़ कर एक हैं!”

सुनहरी चिड़िया- “हां बिल्कुल सही कहा तुम ने टॉबी!”

शुगर- “चलो सब पुल को पार करते हैं!”

तो सभी खुशी खुशी उस पुल पर चलते जाते हैं।

खैर एक मुसीबत तो पार हो गयी थी, लेकिन मुसीबत अभी खत्म नहीं हुई थी।
देखते रहिये अगले एपिसोड में कर्ण और उस के साथियों के सामने कौन सी नई चुनौती आने वाली है।

 

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