Homeतिलिस्मी कहानियाँ42 – जादूगर की परीक्षा | Jadugar ki Pariksha | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

42 – जादूगर की परीक्षा | Jadugar ki Pariksha | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि चमगादड़ राजा बहुत शातिर था, और उस ने अपना वादा तोड़ दिया था और करन की सहायता करने के बाद भी उस ने उस की मां को नहीं जाने दिया था। इस के साथ ही आप ने यह भी देखा कि मगरराज की राजकुमारी भानुकला भी करण की सहायता करने के लिए तैयार हो जाती हैं और अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है।

करन- “मंत्री,,, अब जल्दी से जितने लोग भी यहां पर कैद हैं, उन सभी को आजाद कर दो!”

मंत्री- “ठ.. ठ……ठीक है महराज,, आप जैसा कहें!”

तो इस के बाद मंत्री कमरे के अंदर जाता है और वहां पर एक मंत्र पढ़ता है जिस के बाद करण के बाकी मित्र और उस की मां वापस ठीक हो जाते हैं।

मंत्री- “सब को आजाद कर दिया, कोई और आज्ञा??”

करमजीत- “नही, बस जाओ तुम!”

बुलबुल- “हा हा हा, अब देखो कैसे जी हुजूरी कर रहा है!”

कुश- “ही ही ही…हां, अब आई इसे अक्ल!”

लव- “ये सब हमारे साथियों का कमाल है!”

करण की माँ- “बेटा!!”

करण- “मां!!”

करन की मां अपने बेटे को देख कर बहुत खुश होती है और रोते हुए गले से लगा लेती है।

करण की माँ- “बेटा तुझे कैसे पता लगा कि मैं मुसीबत में हूँ!!”

वधिराज- “जब मां मुसीबत में हो तो प्रकृति अपने आप ही औलाद को आभास करवा देती है!”

करण- “हां मां, मुझे बहुत बुरा सपना आया था, और तभी मैं घर पहुंच गया!”

करण की मां- “और तू इतने दिनों बाद अपनी मां से मिलने आ रहा है!! हां?? ये आभास न होता तो तू ना आता, है ना!!”

करन (रोते हुए)- “ऐसी बात नहीं है मां!! मैं आप से बहुत पहले ही मिलना चाहता था परंतु परिस्थितियां ही ऐसी थी, मां मुझे क्षमा करना!”

सुनहरी चिड़िया- “हाँ,,, माता जी,, ये सब मेरी वजह से हो रहा है कि आप के बेटे को इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है,,

वधिराज- “और इस में करण की कोई गलती नहीं है, वह तो आप को हमेशा याद करता था!”

मां (रोते हुए)- “कोई बात नहीं बेटा,, मेरा बेटा तो किसी की सहायता कर रहा है जो कि मेरे लिए गर्व की बात है,,!!…परंतु क्या करूं.. माँ हूं ना… तो कभी कभी ऐसी बातें मुंह से निकल जाती है!”

करन- “मत रोओ माँ,, मैं आप को रोते हुए बिल्कुल नहीं देख सकता,,,!”

माँ- “हाँ बेटा,,, नहीं रोऊँगी,,, अरे टॉबी यहाँ आओ माँ के पास,,,,!”

टॉबी- “हाँ माँ आता हूँ!”

भानुकला- “माता जी,, आप का पुत्र कोई साधारण बालक नहीं बल्कि बहुत ही बुद्धिमान और बहुत ही वीर बालक है,, जिस का कोई जोड़ नहीं!”

तो भानुकला करण की बहुत तारीफ करती है और उसे सारी बात बताती है.. जिसे सुन कर करण की मां तो बहुत प्रसन्न हो जाती है।

माँ (करन की नजर उतारते हुए)- “जुग जुग जियो मेरे लाल..,!”

बुलबुल- “मां हम भी तो हैं! अब थोड़ी थोड़ी शक्ति हमारे अंदर भी आ गयी है.. ही ही ही..”

लव कुश- “हां और हम भी तो हैं!!”

करमजीत- “हाँ हमें भी आप के आशीर्वाद की जरूरत है!”

करण की माँ- “हाँ हां सब के पास आ रही हूं!”

और इस के बाद वो करण के बाकी साथियों को भी प्यार से गले लगाती है और आशीर्वाद देती है

थोड़ी देर बाद सभी लोग भानुकला को प्रणाम कर के वहां से चले जाते हैं।

वधिराज- “चलो सब मेरी पीठ पर सवार हो जाओ!!”

टॉबी- “हां आ रही है सवारियां!!”

सब लोग- “हा हा हा!!”

वधिराज सब को अपनी पीठ पर बैठा कर जाने लगता है और तभी बीच रास्ते मे अचानक से तूफ़ान आने लगता है।

बुलबुल- “ओह हो, बहुत तेज तूफान आ रहा है!”

लव- “कहीं फिर से कोई मुसीबत ना आ जाये!”

कुश- “अब तो हर पल यही लगता है कि कुछ गड़बड़ होने वाली है!”

करण की माँ- “बहुत तेज हैं हवाएं!!”

वधिराज- “हमें नीचे उतरना होगा, नहीं तो चोट लग सकती है!”

माँ- “हां बेटा हम सब को नीचे उतारो!”

और वधिराज सभी को नीचे ले जाता है और सभी लोग उस की पीठ से नीचे उतर जाते हैं।

करमजीत- “कहीं यह तूफान ज्यादा तेज ना हो जाए!!

चिड़िया- “तूफान को देख कर तो लग रहा है जैसे कि तूफान ज्यादा ही होगा भाई!”

कर्मजीत- “तो सभी लोग बचने के लिए उस बड़े से पेड़ के पीछे चलो, जल्दी,, हवाएं तेज हो रही है,!”

सभी लोग पेड़ के पीछे जाते हैं और वहीं पर सब छुप जाते हैं।

और तभी तूफान बहुत तेज हो जाता है।

बुलबुल- “ये तो और तेज हो गया है , देखो आसपास के पेड़ भी उड़ रहे हैं!!”

कर्ण की माँ- “मुझे तो लगता है ये पेड़ भी उखड़ ही जाएगा!”

करण- “चिंता मत करो मां, मैं अभी सुरक्षा कवच बनाता हूँ!!

तभी करन अपनी अंगूठी की शक्ति से सुरक्षा कवच बना लेता है और सभी को बचाने का प्रयास करता है।

चिड़िया- “ये तूफान कैसा है भला, थमने का नाम ही नही ले रहा!!”

कर्ण की माँ- “हाँ देखो करण भी कितना थक गया है!!”

तभी वहाँ तूफानों का एक भंवर सा उठने लग जाता है

बुलबुल- “देखो तूफान कम हो गया है!”

करमजीत- “लेकिन वहां सामने देखो, ये कैसा भंवर उठ रहा है!”

लव- “हो ना हो, ये जरूर कोई मुसीबत है!”

कुश- “हां भाई, मुझे भी लग रहा है!!”

वधिराज- “देखो उस भंवर में कुछ काला काला दिखाई दे रहा है!!”

और उसी भंवर में से एक बड़ा सा कौवा निकलता है और देखते ही देखते वह कौवा एक इंसान में बदल जाता है।

करण की माँ- “अरे ये क्या??”

वह इंसान- “तुम लोग तो बड़े ही ढीठ हो… मैं तुम सब को इतना मारने का प्रयास कर रहा हूं.. परंतु तुम सब तो मरते ही नहीं…और देखो अब मुझे यहां पर आना पड़ा!”

बुलबुल- “अच्छा तो तुझे इतना घमंड है कि तू हम सब को मार पाएगा?… प्रयास कर के तो देख,, कहीं तू ही न मारा जाए!”

इंसान (मजाक उड़ाते हुए)- “एक छोटी सी बच्ची मुझे युद्ध के लिए ललकार रही है??? हा हा हा हा…. यह तो घोर विपदा आन पड़ी है मुझ पर हा हा हा… कोई मुझे बचाओ…कोई… मुझे बचाओ हा हा हा हा !”

लव- “ध्यान से,,, कहीं तुम्हारा यह मजाक तुम पर ही भारी ना पड़ जाए,,,!”

इंसान (चिल्ला कर)- “वह तो मैं देख लूंगा,, कि कौन किस पर भारी पड़ता है… मूर्ख बालकों…. तुम सब के लिए तो मैं एक ही काफी हूं!”

कुश- “तो आओ फिर….!”

और सभी लोग अपनी तलवार निकाल लेते हैं,, और युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।

करण की माँ- “ये सब क्या हो रहा है!”

टॉबी- “माँ, कुछ नही होगा, आप हमारे साथ रहिएगा,,, डरियेगा मत ठीक है,,,!”

शुगर- “हाँ, टॉबी, माँ की रक्षा करना तुम!”

चिड़िया- “हम सब को पीछे ही रहना होगा नहीं तो वह हम सब पर पहले हमला कर सकता है!”

टॉबी- “हाँ,,,, राजकुमारी जी!”

(शुगर, टॉबी, चिड़िया, करन की माँ पीछे खड़े हैं और बाकी लोग आगे खड़े हैं युद्ध करने के लिए!)

बुलबुल- “जय महाकाल!”

सब से पहले बुलबुल हमला करती है और तभी वो इंसान अपने हाथों से जादू से एक जादुई गोला उस की तरफ फेंकता है, जिस से बुलबुल उड़ कर दूर गिर जाती है।

टॉबी- “बुलबुल,,,, हे भगवान,,, मेरे मित्रों की सहायता करना और उन्हें बहुत सारी शक्ति देना!”

करमजीत- “इस से बचो सब, ये सब पर हमला कर रहा है!”

वधिराज- “बहुत ताकतवर है ये प्राणी तो!”

इस तरह वह सब पर आक्रमण करने लगता है और करण की मां यह सब देख कर बहुत ही डर जाती है..लेकिन राजकुमारी चिड़िया उन्हें संभाल लेती है।

इंसान- “तुम लोग तो बहुत ही बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे और क्या हुआ??? एक ही बार में तुम लोगों का सारा साहस निकल गया हा हा हा हा!”

और वहीं दूसरी तरफ बुलबुल फिर से उठ कर खड़ी हो जाती है जिसे देख कर वो इंसान बहुत ही आश्चर्यचकित हो जाता है।

इंसान- “असंभव,,,,,!!! यह कैसे संभव है???? मेरी शक्ति से आज तक कोई नहीं बच सका परंतु तुम सब कैसे बच रहे हो?,,,”

कर्मजीत- “हमारे पास सवाल-जवाब का कोई समय नहीं है,,,!”

और इतना कह कर करमजीत भी उस इंसान पर हमला करता है….और करमजीत अपनी गायब होने वाली शक्ति का इस्तेमाल कर के उस के वार से बार बार बच जाता है…

और इसी तरह इन सभी में घमासान युद्ध होता रहता है।

इंसान (गुस्से से)- “तुम सब आखिर चीज क्या हो? बार बार बच क्यों रहे हो!”

करमजीत- “हा हा हा!”

बुलबुल- “कहा था ना पहले ही!”

इस युद्ध मे कोई अपनी जादू शक्ति का इस्तेमाल कर रहा था , तो कोई अपनी तलवार का इस्तेमाल कर रहा था।
तभी एक जादुई गोला कुश के पीछे आने लगता है।

बुलबुल- “कुश,,, ध्यान से पीछे देखो,,,बचो,!”

लव- “कूद जाओ जल्दी!!”

और कुश जल्दी से एक तरफ कूद कर बच जाता है,,, लेकिन उसे थोड़ी चोट आ जाती है।

बुलबुल- “छोडूंगी नही तुझे दुष्ट!!”

तभी बुलबुल उस इंसान के पास जा कर उस का गला काटने का प्रयास करती है लेकिन वह इंसान भी काफी ताकतवर था। वह बार बार उन सभी को अपने से दूर करता जा रहा था।

करन (इंसान से)- “क्या हुआ??,, आप तो अभी बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे… आप कह रहे थे कि आप अकेले ही हम सब का सामना करेंगे???,, परंतु देखने से तो यह नहीं लगता??”

कर्मजीत- “ये तो होना ही था कर्ण, इस के पास हमारे जैसे साथी नहीं है ना!! हा हा हा”

वधिराज- “अरे मित्रों कैसी बातें कर रहे हो??? मुझे तो लगता है इन के कोई भी मित्र नहीं होंगे,, और वैसे भी अच्छे मित्र तो किस्मत वालों को ही मिलते हैं!”

और ऐसे ही यह तीनों मिल कर इंसान को भड़काने लगते हैं ताकि उस का ध्यान भटक जाए।

इंसान- “मुझे किसी मित्र की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं अकेले ही सैकड़ों के समान हूं!”

तभी लव चुपके से अपनी तलवार ले कर उस के बायीं और से आता है लेकिन इंसान काफी चालाक था…वह समझ जाता है कि यह लोग उसे भटकाने की कोशिश कर रहे हैं…

इंसान- “तुम सब मुझे बेवकूफ समझते हो, बातों में लगा कर मुझे भटकाना चाहते हो, हां!! खैर तुम इन मे सफल नही हुए! हा हा हा”

तभी वह जल्दी से अपनी बायीं ओर लव को काफी गुस्से से देखता है और लव के ऊपर जादुई शक्ति से वार करता है, जिस से लव बेहोश हो जाता है।

इंसान- “हा हा हा! बेचारा, मुझे मारने चला था, देखो तो कैसे पड़ा है!”

बुलबुल- “दुष्ट, तू देख अब!!”

तो जैसे ही वह अपनी दाई ओर देखता है.. तो वह देखता है कि एक बड़ा सा पैर उस की तरफ आ रहा है और वह पैर वधिराज का था…!!!

और वह इंसान वहीं कुचला जाता है,,, और मारा जाता है।

इस के बाद वधिराज अपना आकार छोटा कर लेता है।

करण की माँ- “करन ये सब क्या है बेटा??? इतना भयानक नजारा तो मैंने कभी नही देखा”

करन- “माँ आप चिंता मत करो,,,, मैं और मेरे सारे मित्रों में बहुत सारी शक्तियां हैं, हमें कोई भी नहीं हरा सकता!”

करमजीत- “और वैसे भी जब तक ईश्वर का और आप का हमारे सिर पर हाथ है तो हम कैसे हार सकते हैं भला???”

मां- “हां वह तो हैं ही बच्चों!”

माँ अपने बेटे की ऐसी बातें सुन कर, करन और बाकी लोगों को गले लगा लेती हैं।

अगले एपिसोड में हम देखेंगे की आगे के इस रोमांचक सफर में और क्या क्या होता है। तब तक के लिए बने रहियेगा हमारे साथ।

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