41 – रहस्य्मयी शादी | Rehasyamayi Shaadi | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
तो पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि चमगादड़ राजा को एक श्राप मिला था और वह उस श्राप को तोड़ने के लिए करन और उस के मित्रों की सहायता लेता है. वहीं दूसरी ओर आप ने यह भी देखा था कि उस का श्राप टूट जाता है लेकिन अंत में वह करन की माता को मुक्त नहीं करता है. तो अब देखना यह है कि आखिर ऐसा क्यों था?
वधिराज- “लगता है यह राजा इस की कोई चाल है! इस ने हम से छल किया है”
कर्मजीत- “हाँ, चमगादड़ राजा,परंतु आप यह ऐसा क्यों कर रहे हैं… हम ने तो आप की सहायता करी थी ना?!”
राजा- “अरे मैंने कब कहा कि आप सभी ने हमारी सहायता नहीं की आप सभी ने सहायता तो करी है… परंतु एक और सहायता की आवश्यकता है!”
करन- “अगर आप हम से प्यार से कोई सहायता मांगते तो हम जरूर आप की सहायता करते हैं, परंतु आप ने हमारे साथ छल करने का प्रयास किया है, जिस का दुष्परिणाम आप को भोगना होगा!”
राजा- “अरे मूर्ख बालक!!.. मेरे सामने ऐसा दुस्साहस मत कर.. और जो मैं कह रहा हूं वही कर! वरना पछतायेगा”
राजा दो तालियां बजाता है।
तभी उस के सैनिक एक कमरे का दरवाजा खोलते हैं जिस के अंदर बुलबुल और करण के बाकी साथी भी ममी बने हुए थे!
यह देख कर करण, करमजीत और वधिराज बेहद घबरा जाते हैं।
करमजीत- “नहीं, ये क्या किया, कपटी राजा! छोड़ दे इन को, तूने अच्छा नही किया!”
करण- “मेरे साथियों को बंदी बना कर तूने बहुत गलत किया है!! छोड़ दे इन को दुष्ट”
वधिराज- “अभी के अभी इन को तूने नही छोड़ा तो बाद में पश्चाताप का मौका नहीं देंगे हम!”
राजा- “हा हा हा, तुम्हारी गीदड़ धमकियां मुझे डरा नही सकती!!”
करमजीत- “छोड़ दे इन सब को!”
वो तीनों बार-बार राजा से यह बात कहते हैं लेकिन राजा नहीं मानता है
करमजीत- “करण, लगता है ये ऐसे नही मानेगा!! इसे सबक सिखाना ही होगा”
राजा- “तुम मुझे मार नही सकते, तुम्हारे नजदीक आते ही मैं गायब हो जाऊंगा, और कुछ ही वक्त बाद तुम्हारे साथी मेरे सैनिकों के हाथों मारे जाएंगे!”
करन- “आखिर तुम क्या चाहते हो, क्या मकसद है तुम्हारा बताओ!”
राजा- “हा हा हा, यही तो सुनना था!”
करमजीत- “बताओ जल्दी!”
राजा- “अब मेरा श्राप तो टूट गया है तो अब मैं विवाह कर सकता हूं, यही तो मेरा सपना था और मैं सिर्फ एक ही स्त्री से विवाह करना चाहता हूं और वह है मगराज की राजकुमारी भानूकला.. परंतु उन से विवाह करना इतना आसान नहीं है… वह बहुत शक्तिशाली और मायावी है, मैंने कई बार उन के सामने शादी का प्रस्ताव रखा परंतु उन्होंने हमेशा इंकार कर दिया… अब तुम सब मेरा ये काम करोगे!”
करमजीत- “तो हम अपनी जान खतरे में डालें, वो भी तुम्हारे विवाह के लिए, कदापि नहीं!”
राजा- “तो ठीक है, फिर मरते हुए देखो इन बेचारों को!!”
करण- “करमजीत शांत हो जाओ , अब जो स्थिति है, हमें ना चाहते हुए भी इस राजा की बात माननी ही पड़ेगी, वरना हमारे सब साथी मारे जाएंगे!”
वधिराज- “हां करण ठीक कह रहे हो तुम! और तुम्हारी मां भी तो हैं यहां”
करमजीत- “हां, ठीक है, हम आप का यह कार्य कर देंगे, हमे मगराज जाने का रास्ता और वहां का पता बताओ!”
तो राजा उन सभी को उस जगह का पता बता देता है और
तीनों वहां से चले जाते है और मगराज नामक जगह पर पहुंच जाते हैं।
करन- “यहां पर तो बहुत ही ज्यादा सुरक्षा पहरा है, इतने सारे सैनिक को हम कैसे हरा पाएंगे?,
वधिराज- “ऐसे तो यह सब हमें अंदर जाने नही जाने देंगे, क्या करें”
करमजीत- “तुम परेशान मत हो, अब हमारे अंदर साधारण शक्ति नहीं बल्कि अन्य दिव्य शक्तियां भी आ चुकी है… मुझे आशा है कि हम ही जीतेंगे!,
करण- “परंतु कुछ भी करने से पहले हम उन से बात करने का प्रयास करेंगे..शायद वो समझ जाएं और हमें अंदर जाने दे”
करमजीत- “हाँ ये तो तुम ने सही कहा! पहले आक्रमण क्यों करना, तो चलो बात कर के देखते हैं”
और तभी वो तीनों महल के और पास जाने लगे जाते हैं। इस से पहले कि वो वहां के सैनिकों से कुछ बात करते।
सैनिक- “शत्रु आ रहे हैं, आक्रमण, सैनिकों!!”
तभी सब सैनिकों ने उन पर आग के तीर बरसाने शुरू कर दिए।
करमजीत- “बचो, ये तो आग वाले तीर से आक्रमण कर रहे हैं!!”
कर्ण- “जल्दी मेरे पास आ जाओ!!”
और तभी करन सही मौके पर अपनी जादुई अंगूठी का इस्तेमाल कर के सुरक्षा आवरण तैयार कर लेता है।
करमजीत- “अब तो इन्हें सबक सिखाना ही होगा!”
वधिराज- “पर कैसे, वो सब तो अभी तक आग बरसा रहे हैं! ये नही रुकने वाले
करमजीत- “रुकेंगे, सब रुकेंगे, अब देखो मैं क्या करता हूँ!!”
तभी करमजीत आवरण से बाहर हाथ निकाल कर एक तीर पकड़ लेता है।
वधिराज- “इस से क्या करोगे अब!”
करमजीत- “इस को अपनी शक्ति से बड़ी आग बना कर उन पर फेंकूँगा!”
वधिराज अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर के उन तीर के आग का आकार बड़ा कर देता है और उस बड़े से गोले को उन सैनिक के ऊपर फेंक देता है जिस से बहुत सारे सैनिक जल जाते हैं।
वधिराज- “हा हा हा! बहुत बढ़िया!”
और इस तरह लड़ाई चलती रहती है कि तभी वहां पर राजकुमारी भानुकला महल के द्वार पर आ जाती है।
भानुकला- “सैनिकों रुक जाओ,!”
कर्ण- “रुको करमजीत!”
भानुकला- “आखिर तुम लोग कौन हो, यहां क्यों आये हो, और क्या चाहते हो?”
करन- “राजकुमारी प्रणाम, हमारा इरादा आप के किसी भी सैनिक को कष्ट पहुंचाना नहीं था… परंतु हमे ये करना पड़ा!”
करमजीत- “उन्होंने ही हम पर पहले हमला किया था..हम तो सिर्फ आप से वार्तालाप करना चाहते थे!”
तभी राजकुमारी अपनी आंखों को बंद करती है और अपनी दिव्य शक्ति का इस्तेमाल कर के करण को पहचानने की कोशिश करती है।
कर्ण- “यह आप क्या कर रही है राजकुमारी जी!!”
भानुकला- “मेरी दिव्य शक्ति ने मुझे बता दिया है कि तुम सब अच्छे लोग हो। अंदर चलो”
वधिराज- “धन्यवाद राजकुमारी जी!”
राजकुमारी भानु कला- “सैनिकों! इन सभी को अंदर ले कर आओ!”
राजकुमारी के कहने पर सैनिक उन्हें अंदर तक ले जाते हैं।
समय बहुत कम था इसलिए करण और बाकी तीनों लोग राजकुमारी को सारी बातें बता देते हैं..
करण- “माफ कीजियेगा राजकुमारी जी, हमारे पास समय नही है ज्यादा, मेरी आप से विनती है कि कृपया आप हमारी सहायता कीजिये!”
राजकुमारी (चिंतित होकर)- “ठीक है, आप सब चिंता मत करो, मैं आप सभी के साथ जाने के लिए तैयार हूं, परंतु इस से पहले हमें एक योजना बनानी होगी !”
करमजीत- “हां बिल्कुल ताकि अगर वह राजा कुछ गलत करने का प्रयास करता है तो हम उसे सही वक्त पर रोक ले!”
वधिराज- “हां लेकिन योजना क्या है!”
भानुकला- “यहां एक सिद्ध बाबा जी हैं, मैं उन्हें यहां बुला लेती हूं!! उन के पास अनेक शक्तियां हैं, वो हमें उपाय बताएंगे”
वहाँ बाबा जी को बुलाया जाता है, और उन्हें सारी बात बता कर उपाय बताने के लिए कहा जाता है।
तभी बाबा अपनी झोली से एक कंगन निकालते हैं।
बाबा- “देखो पुत्री, जैसे ही चमगादड़ राजा इस कंगन को स्पर्श कर लेगा ,वैसे ही वो एक आभूषण यानी की अंगूठी के रूप में परिवर्तित हो जाएगा…. परंतु शर्त यह है कि उसे इस बात का मालूम ना हो कि यह कड़ा एक मायावी कड़ा है…!”
राजकुमारी- “जी बाबा जी, समझ गए हम, आप का बहुत-बहुत शुक्रिया!”
और उस के बाद सारी योजना बना कर वे सभी लोग चमगादड़ राजा के अड्डे पर पहुंच जाते हैं।
राजा राजकुमारी भानुकला को देख कर बहुत ही प्रसन्न हो जाता है और उस की खूबसूरती में बिल्कुल खो ही जाता है।
राजा- “अरे वाह !! तुम सब ने तो कमाल ही कर दिया, तुम ने वह कर दिखाया है जो आज तक कोई ना कर सका हा हा हा हा!,जल्दी से अंदर आओ
करमजीत- “हमारे साथियों को जाने दो अब!”
राजा- “अरे जरा रुको, विवाह तो होने दो, मेरे सैनिक तैयारियों में लगे हैं! हा हा हा मैं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुआ,”
सभी सैनिक उन का स्वागत करते हैं और राजकुमारी की आरती उतारते हैं।
वहीं राजकुमारी ऐसा दिखा रही थी जैसे कि वह राजा से बहुत प्यार करती हों.
वहीं वो राजा तो उन की खूबसूरती में बिल्कुल खो चुका था।
राजा का खास मंत्री (धीरे से)- “महाराज, क्षमा कीजिये परंतु, हमें तो कोई गड़बड़ लगती है , आप को थोड़ा सावधान रहना होगा, जैसा कि हम ने आप को पहले ही बताया था कि जब राजकुमारी यहां आएंगी…तो आप उन्हें यहाँ के वस्त्र और आभूषण धारण करने को कहेंगे,!”
राजा- “ठीक है!! तो दासियों !! मेरा आदेश है कि राजकुमारी को नए कपड़े और आभूषण दिए जाएं.! इन्हें ले जाइए!”
यह सुन कर राजकुमारी थोड़ा घबरा जाती है, परंतु दासियों के साथ दूसरे कमरे में चली जाती हैं।
दासी- “राजकुमारी जी, आप अपने सारे आभूषण और कपड़े यहां रख दीजिए और ये नए कपड़े पहन लीजिये!!”
राजकुमारी ऐसा ही करती है, लेकिन वह कंगन नही उतारती।
एक दासी- “यह कंगन भी निकालना होगा राजकुमारी जी!”
राजकुमारी- “यह मेरी नानी मां ने मुझे दिया था और उन्होंने कहा था कि मैं कभी भी इसे अपने हाथों से ना निकालू , इसीलिए मैं ये पहनी रहूंगी, मुझे क्षमा करें!”
दासी को राजकुमारी पर शक होता है। और वह यह बात उस मंत्री को बता देती है।
वहीं दूसरी और राजा शादी करने के लिए बिल्कुल तैयार था और मंडप भी बिल्कुल तैयार हो चुका था।
थोड़ी देर बाद राजकुमारी मंडप पर आती है.. राजा उसे देखता ही रह जाता है…।
राजा- “वाह बहुत खूबसूरत, अद्भुत!!”
वही मंत्री बार बार राजा के कानों में कुछ कह रहा था लेकिन राजा अब मंत्री की कहां सुनने वाला था…।
मंत्री (मन मे)- “कहीं इस बेवकूफ राजा के चक्कर में हम सब न मारे जाएं,!”
राजा- “राजकुमारी भानुकला आओ, बैठो बैठो, अब तो तुम मेरी ही हो.. और तुम यहां की रानी बनने वाली हो!”
भानुकला (शर्माते हुए)- “जी हाँ, राजा जी!”
और तभी एक मकड़ी आ कर भानुकला के हाथ पर बैठ जाती है., और यह वही हाथ था, जिस हाथ पर उन्होंने वही मायावी कंगन पहन रखा था…।
भानुकला- “आ~~आ~~मकड़ी!!”
मकड़ी को देख कर भानुकला बहुत डर जाती हैं और जोर जोर से चिल्लाने लगती है।
भानुकला- “बचाओ हमें कोई, हमें बहुत पीड़ा हो रही है, लगता है इस मकड़ी ने हमें काट लिया है!”
राजा से यह बिल्कुल सहन नहीं होता और वह तुरंत उस के उस हाथ को पकड़ लेता है। तभी वह मकड़ी गायब हो जाती है
राजा- “अरे राजकुमारी जी, चिंता मत करिए….सब ठीक हो जाएगा, हम हैं ना.. हम यहां पर हैं तो डरने की क्या बात है?? पर ये मकड़ी कहाँ गायब हो गयी”
राजकुमारी- “हा हा हा! अभी पता लग जायेगा!”
और इतना कहते ही कंगन के प्रभाव से वह राजा एक अंगूठी में परिवर्तित हो जाता है… यह देख कर सभी सैनिक बहुत घबरा जाते हैं….।
राजकुमारी भानुकला ( सभी सैनिकों से)- “तुम सभी ने देखा ना कि हम सब कितने शक्तिशाली हैं और हम से युद्ध करने की सोचना भी मत, वरना तुम सभी का हाल भी ऐसा ही होगा….!”
मंत्री वहां से भागने लगता है लेकिन राजकुमारी सारे दरवाजों को बंद कर देती है।
करन- “अब भागने का कोई अर्थ नहीं है मंत्री, अब सभी सैनिक राजकुमारी की ही बात मानेंगे.
वधिराज- “बन्द महल में कहाँ तक भागोगे! हा हा हा!!”
मंत्री- “ठीक है, ठीक है, मैं आत्मसमर्पण करता हूँ!”
राजकुमारी- “मैं घोषणा करती हूँ कि ये कालानगरी अब हमारे राज्य में मिला ली जाएगी. और अब से यहां की रानी हम हैं
वधिराज- “रानी भानु कला की……”
कर्मजीत- “जय हो!”
सभी लोग रानी की जय करते हैं।
अगले एपिसोड में हम देखेंगे की आगे के इस रोमांचक सफर में और क्या क्या होता है। तब तक के लिए बने रहियेगा हमारे साथ।