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40 – चमगादड़ का मायाजाल | Chamgadad Ka Mayajaal | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि करण एक बुरा सपना देखता है, इसलिए वह अपनी माँ से मिलने चला आता है।

चमगादड़ जैसा दिखने वाला एक भयानक प्राणी करण की मां का रूप ले कर आया है। लेकिन करण ने उसे पहचान लिया था और अंत में उसे मार गिराया था। तो अब देखना यह है कि आखिर यह प्राणी वहां पर क्या कर रहा था और करण की मां का पता लग पायेगा या नही ??

चिड़िया- “करण तुम्हें कैसे पता चला कि यह तुम्हारी मां नहीं है?”

करन- “मै ज़ब से अपने घर आया था तब से देख रहा था कि मेरी मां बाएं हाथ से बिल्कुल सही से काम कर रही हैं,, और भारी भारी चीजें भी उठा पा रही है,, परंतु ये तो असंभव है क्योंकि बहुत पहले मेरी मां के बाएं हाथ में चोट लग गई थी… जिस के कारण वह शुरू से ही अपने बाएं हाथ से ज्यादा काम नहीं कर पाती थी!”

बुलबुल- “ओह अच्छा!!

करन- “हां बुलबुल,, बस तभी से मुझे शक हो गया और उस के साथ ही मैं देख रहा था कि वह बार-बार हमारी बात सुनने के लिए बीच-बीच में आ रही थीं!”

लव- “हो सकता है कि हम पर नजर रखने के लिए ऐसा कर रहा होगा वो प्राणी!”

कुश- “हां ताकि हमारी बातें सुन कर उसे हमारी योजना का पता लग सके!”

बुलबुल- “अगर हमें ना पता लगता कि वह कोई चमगादड़ है तो ना जाने क्या हो जाता”

करमजीत- “हां, कुछ भी हो सकता था, अब वो वक्त बीत गया!, परंतु अब करन की माँ का पता कैसे लगाएंगे!

कर्ण- “हाँ यही मैं सोच रहा हूँ, मुझे अपनी मां की बहुत चिंता हो रही है… ना जाने वो किस स्थिति में होंगी ?”

कुश- “तो अब क्या किया जाए कर्ण?”

चिडिया- “मुझे लगता है हमें बाबा के पास जाना चाहिए,, उन्हीं बाबा के पास जिन्होंने हमें माला दी थी!”

बुलबुल- “हां राजकुमारी जी, बाबा काफी शक्तिशाली है…हो सकता है कि उन्हें कुछ पता चल जाए!”

करन- “तो जल्दी चलो सब!”

वधिराज- “चलो मैं ले चलता हूँ सब को

सभी लोग बाबा के पास जाते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं।

करण- “बाबा जी, अब आप ही हमें कोई मार्ग दिखा सकते हैं!”

बुलबुल- “हम बहुत उम्मीद ले कर आप के पास आये हैं बाबा जी!!”

बाबा- “मैं समझ गया कि बात क्या है!,, वह सिर्फ एक छलावा है,, अब हमें यह बताओ कि क्या उस के शरीर में कोई निशान था… या उस के माथे पर या हाथ पर?”

टॉबी- “हां बाबा जी, उस के माथे पर निशान देखा था मैंने!”

शुगर- “हां कोई निशान तो था,!”

कुश- “मुझे भी याद है!”

बाबा- “कैसा निशान??… बताओ हमें कैसा दिखाई दे रहा था वो निशान?”

शुगर उस निशान को जमीन पर बना कर बाबा को दिखा देती है।

शुगर- “ऐसा निशान था बाबा जी!”

बाबा- “अच्छा तो मैं समझ गया, यह निशान तो एक प्रकार के राक्षस का होता है..! अभी पुस्तक में देख कर बताता हूं”

कुश- “ओह फिर से राक्षस!!”

लव- “ना जाने कितने राक्षस है इस दुनिया मे!”

तो बाबा जी एक पुरानी पुस्तक निकालते हैं और उस में उस निशान के बारे में देखते हैं।

बाबा- “इन राक्षसों का वास वहाँ होता है जहाँ ढेर सारे चमगादड हो, और इस पुस्तक में लिखा है कि ये प्राणी कालानगरी नामक स्थान पर रहते हैं,, क्योंकि यह स्थान काफी रहस्यमयी है इसीलिए पुस्तक में इस की जानकारी नहीं लिखी गई है!”

कर्ण- “तो बाबा, हम उस रास्ते तक कैसे जाएंगे??”

करमजीत- “हां बाबा जी, कोई तो मार्ग सुझाइए हमें!!”

बाबा जी- “ठीक है, मैं अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर बताता हूँ!”

इस के बाद बाबा आंखें बंद कर लेते हैं और उन्हें रास्ते के बारे मे जो कुछ भी पता चलता है, वह सबको बता देते हैं…लेकिन फिर भी पूरा रास्ता उन्हें खुद ही पता करना था।

करन- “ठीक है बाबा जी, प्रणाम, हमारी सहायता करने के लिए आप का बहुत-बहुत शुक्रिया!”

और फिर सभी लोग वहां से चले जाते हैं।

टॉबी- “करन तुम परेशान मत हो,, मैं उस चमगादड़ की खुशबू को अच्छे से पहचान लूंगा, तुम हिम्मत रखो!”

कुश- “लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि वह स्थान कहां पर है?”

लव- “अगर हम ये पता लगाएं कि वे चमगादड़ किन चीजों को खाते हैं? तो शायद हम उन तक पहुंच जाए”

टॉबी- “लेकिन ये पता लगाने से हम उन तक कैसे पहुंच सकते हैं

लव- “अरे टॉबी, अगर वो किसी विशेष फल फूल या फिर कीट पक्षी को खाते हैं और जहां पर उन फल / कीट की संख्या ज्यादा हो… उस जगह पर अगर हम जाएं तो कुछ पता चल सकता है!”

बुलबुल- “हां हो सकता है उन का कोई साथी हमें वहीं मिल जाये, तो हम उस का पीछा कर के वहां तक पहुंच सकते हैं!

करमजीत- “ये तुम ने सही बुद्धि लगाई है लव ! लेकिन अब पता कैसे लगाएंगे”

करन- “हां मुझे याद आया, मैने अपनी मां के कमरे में एक फल देखा था,मां वो फल नहीं खाती , हो सकता है कि वह प्राणी ही मेरे घर में रह कर वही फल खाता होगा!”

कर्मजीत- “हां,, तो चलो पता लगाते है !”

तभी पता करते-करते वे लोग उस जगह पर पहुंच जाते हैं जहां पर बहुत सारे वैसे फल थे

करन- “हां ये तो वही फल है , जो मैंने अपने घर में देखा था!”

वधिराज- “तो अवश्य वो स्थान भी आसपास ही होगा!”

करमजीत- “तो चलो ढूंढते हैं!

और बहुत ढूंढने के बाद उन्हें वहां पर एक गुफा मिलती है जो कि देखने में काफी भयानक लग रही थी।

शुगर- “यहाँ पर गंध बिल्कुल उसी प्राणी की तरह ही आ रही है!”

करन- “अंदर केवल वधिराज, मै और कर्मजीत ही जाएंगे,, और बाकी सब बाहर रहेंगे!”

लव- “ठीक है करण,, तुम लोग यहां से जाओ!”

और तीनो लोग चुपके से अंदर जाते हैं। वहाँ उसे एक बड़ा चमगादड़ दिखता है, जिस ने ताज पहना था और वह दूसरे चमगादड़ से बात कर रहा था।

राजा चमगादड़- “मैं बहुत दुखी हूं…ना जाने मुझे मेरे श्राप से कब मुक्ति मिलेगी… मेरे श्राप के कारण मेरा अभी तक विवाह भी नहीं हो पाया!”

नीला चमगादड़- “आप परेशान ना हो,, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा!”

लेकिन तभी वहाँ पीला चमगादड़ आ जाता है और वो कुछ लोगों को कैदी बना कर अंदर ले जाता है।

अंदर सभी लोग देखते हैं कि वहां पर करण की मां भी है जिसे ममी की तरह बनाया हुआ था,, एकदम सफेद कपड़ों में लिपटा कर।

करन- “ये तूने क्या कर किया?,, मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा!”

राजा चमगादड़- “तुम चिंता मत करो , वह अभी जीवित है परंतु जल्द ही मर जाएगी , मैं उसे मार दूंगा,,!

कर्मजीत- “देखो हमें पता है कि तुम मुसीबत में हो , लेकिन अगर तुम चाहो तो हम तुम्हारी सहायता कर सकते हैं!”

करन- “हां,, और बदले में तुम मेरी मां को छोड़ दो!”

राजा- “तुम क्या समझते हो ? यह कोई छोटी बात है?,, आज तक कोई भी इस श्राप को तोड़ नहीं पाया , कई लोगों ने अपनी जान भी गवायी है!”

वधिराज- “तुम चिंता मत करो..हम कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, हम मे भी शक्ति है,, हम ऐसा कर सकते हैं!”

और इन तीनों के बहुत समझाने के बाद राजा मान जाता है।

राजा- “ठीक है, तो चलो मेरे साथ,!”

इस के बाद राजा मंत्र पड़ता है और राजा चमगादड उन तीनों को एक दूसरी जगह पर ले जाता है, जहाँ एक बहुत बड़ा वृक्ष है और उस की जड़ें काफी फैली हुई है.. और उस वृक्ष से थोड़ी दूर पर ही महादेव का मंदिर है।

राजा- “देखो यदि इस पेड़ के पत्तियों को महादेव के मंदिर की सीढ़ियों से स्पर्श करा दिया जाए,,तो मेरा श्राप टूट जाएगा, परंतु ध्यान रहे कि पेड़ की पत्तियों को काटना नहीं है, और ऐसा केवल एक ही व्यक्ति कर सकता है, एक से ज्यादा नही!”

करमजीत- “परंतु यह कैसे संभव हो पायेगा? यह पेड़ बहुत भारी है”

वधिराज- “पर मेरे लिए तो इस कार्य मे कोई मुश्किल नहीं है, मैं कर लूंगा!”

राजा चमगादड़- “तुम एक राक्षस हो, लेकिन यह कार्य एक इंसान को करना होगा, राक्षस को नही, तभी मुझे इस का फल मिलेगा!”

करन- “हमें कोई उपाय सोचना होगा,,!”

वधिराज- “अब कौन करेगा ये कार्य, मुझे तो कोई बलशाली इंसान नहीं नजर आते यहां!”

करमजीत- “लेकिन करण की मां को बचाने के लिए ये करना अति आवश्यक है!”

और थोड़ा सोचने के बाद,,करन अपना मन बना लेता है।

करण- “मैं करूँगा ये कार्य!”

करमजीत- “लेकिन कर्ण, तुम इतना बड़ा पेड़ नहीं उठा सकते !”

करन- “लेकिन इस के अलावा कोई और चारा भी नही है, अपनी माँ की रक्षा करने के लिए मुझे यह करना ही होगा!”

वधिराज- “हम महादेव से प्रार्थना करते हैं कि तुम सफल हो जाओ!”

कर्ण- “हे महादेव, मुझे शक्ति देना, मुझे मेरी माँ को बचाना है!”

सब लोग- “हर हर महादेव!!”

और करन अपनी पूरी ताकत लगा कर ,अपनी भुजाओं का इस्तेमाल कर के उस बड़े और विशाल पेड़ को जड़ से उखाड़ देता है और ऐसे ही उस पेड़ को महादेव के मंदिर के पास ले जा कर उन की सीढ़ियों से स्पर्श करवा देता है।

करन- “हर हर महादेव!”

सब लोग- “हर हर महादेव

और सभी महादेव को प्रणाम करते हैं।

राजा चमगादड़ यह देख कर काफी हैरान हो जाते हैं।

राजा चमगादड़- “इतनी शक्ति !!! वो भी एक बालक मे??? यह कैसे संभव हो सकता है?”

सभी लोग मंदिर के पास जाते हैं। और करन उस पेड़ को वहीं मंदिर के पास ही वापस लगा देता है।

वधिराज- “लगता है करण तुम्हें एक नई शक्ति मिली है,, तुम बहुत ही बलवान हो चुके हो!”

करमजीत- “हां करन, तुम्हारी भुजाओं में नयी शक्तियों का वास हुआ है!”

करन- “हां मित्रों, ये सब हमारे कर्मों का ही फल है,,

वधिराज- “तुम्हारे नेक कर्मों से ही प्रसन्न हो कर देवताओं ने ही तुम्हे यह शक्तियां दी हैं!”

राजा चमगादड़- “जय हो, जय हो,, हमें तो अपने नेत्रों में यकीन ही नहीं हो रहा है, तुम तो कमाल हो करन!”

करन- “धन्यवाद आप का,, हमें प्रसन्नता है कि आप का श्राप अब खत्म हो चुका है!”

राजा चमगादड़– “हां बालक ये तो सत्य है,, चलो अब यहां से चलते हैं!”

और वे उस स्थान से दोबारा गुफा मे आ जाते हैं।

करन- “राजा जी,, कृपया अब मेरी माता को मुक्त कर दीजिए!”

राजा- “हां हां क्यों नहीं!,, थोड़ा ठहरो!!….थोड़ा ठहर जाओ,, इतनी भी जल्दी क्या है?,, हमें आप सब की मेहमान नवाजी करने का एक मौका तो दीजिए!”

तभी एक नौकर चमगादड़ उन के लिए थाली में लड्डू लाता है।

वधिराज- “नहीं राजा जी, हमें भूख नहीं है!”,,

करमजीत- “कृपया कर के आप करण की माता जी को मुक्त कर दीजिए और हमें यहां से जाने की इजाजत दीजिए!”

राजा चमगादड़- “पहले मुंह तो मीठा कर लो, लड्डू खाओ!”

वधिराज- “नही राजा जी, हमारी अभी लड्डू खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं है!”

करण- “आप मेरी माँ को यहां ले आइये जल्दी से, हमे देरी हो रही है!”

राजा चमगादड़-“अच्छा, नही खाओगे तुम सब ??”

राजा के बहुत समझाने पर भी वे लोग लड्डू नहीं खाते तो राजा बहुत गुस्सा हो जाता है लेकिन थोड़ी ही देर में उस के चेहरे का भाव बदल जाता है और वह जोर-जोर से हंसने लगता है।

कर्मजीत- “करन, ये क्या????”

वो तीनों हैरान थे कि राजा उन के साथ आखिर क्या करने का सोच रहा था।

अब अगले एपिसोड में हम देखेंगे के क्या राजा चमगादड़ करण की माँ को छोड़ेगा या नहीं यह जानने के लिए बने रहिये हमारे साथ इस तिलिस्मी सफर पर।

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