Homeतिलिस्मी कहानियाँ39 – जादुई माँ | Jadui Maa | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

39 – जादुई माँ | Jadui Maa | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि करण और उस के सभी मित्र आगे का रास्ता पूछने के लिए ठाकुर साहब के घर गए हुए हैं और वहां रुक कर उन्हें पता चलता है कि ठाकुर की पुत्री बहुत ही परेशानी मे है और किसी श्राप से घिरी हुई है। इस के बाद आप ने यह भी देखा कि करण नें कितनी बुद्धिमानी से उस का श्राप तोड़ दिया था।

तो सब कुछ अब ठीक हो चुका है , ठाकुर और उस की बेटी बहुत खुश थे।

ठाकुर- “आप सभी बच्चों ने तो कमाल कर दिया,, बहुत-बहुत शुक्रिया,,!”

वधिराज- “कोई बात नहीं,, यह तो हमारा फर्ज था!”

करमजीत- “हाँ बिल्कुल, हम भला कैसे आप की पुत्री को इतनी परेशानी में देख सकते थे?”

करन- “हाँ ठाकुर साहब,,, अब सब कुछ ठीक हो चुका है… तो कृपया हमें अब यहां से जाने की इजाजत दीजिए!”

तनु- “जी,,,चले जाइएगा,,, परंतु उस से पहले भोजन तो करना ही होगा, हमारी तरफ से छोटी सी दावत”

टॉबी- “अरे वाह!! बहुत अच्छा विचार है तनु,, और मुझे तो बहुत जोर की भूख भी लगी है!”

तनु- “हाँ हाँ,,, क्यों नहीं,, आप हमें बताइए कि आप को खाने में क्या पसंद है , हम वहीं बना कर लाएंगे!”

लव- “हां मैं भी बताऊंगा, मुझे भी बहुत भूख लगी है!!”

कुश- “तो फिर मैं क्यों पीछे रहूं!!”

बुलबुल- “हा हा हा, भुक्खड़ हैं ये सब तो!!”

तो टॉबी और लव कुश उन्हें काफी सारी अपनी पसंद की चीजें बता देते हैं

तनु- “ठीक है, मैं जा कर बनाती हूँ!”

ठाकुर- “चलो अब हम सब को भी अंदर जाना चाहिए, सुबह हो रही है!”

इस के बाद सभी लोग महल के अंदर जाते हैं और ढेर सारी बातचीत करते हैं। थोड़ी देर में सभी लोग खुशी खुशी तनु का बनाया हुआ भोजन करते हैं

( करीब 3 घंटे बाद )

चिड़िया- “अच्छा,,, ठाकुर साहब और तनु बेटा,,, अब हम यहां से चलते हैं!”

ठाकुर- “ठीक है राजकुमारी,, हम आशा करते हैं कि आप सभी का ये सफर सफल हो!”

करन- “बहुत-बहुत शुक्रिया ठाकुर साहब!”

और सभी लोग वहाँ से चले जाते हैं।

वहीं चलते चलते रास्ते में एक बहुत बड़ी नदी दिखाई देती है।

बुलबुल- “इतनी बड़ी नदी!!”

शुगर- “अब हम इस नदी को कैसे पार करेंगे!!”

टॉबी- “देखती जाओ तुम मेरे साथियों का कमाल!”

वधिराज- “तुम सभी लोग मेरे पीठ पर बैठ जाओ,,!”

सभी लोग वधिराज की पीठ पर बैठ कर नदी पार कर लेते हैं!
वहीं वे लोग ठाकुर के द्वारा बताई हुई दिशाओं पर ही जा रहे थे।

वधिराज- “आगे ठाकुर साहब ने बताया था कि यहीं कहीं एक बंजर इलाका है जिसे रोलक कहते हैं,,,हमें उस जगह के बारे में किसी से पूछना होगा,,,!”

करन- “हाँ,, ठाकुर साहब ने बताया था,, परंतु यहां तो कोई भी नहीं दिख रहा है

बुलबुल- “वही तो,, अब पूछे भी तो किस से!”

शुगर- “और देख कर लगता है कि यहां कोई गांव भी नहीं है!”

चिड़िया- “हमें यहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ कर देखना होगा… शायद आसपास यहां पर कोई न कोई तो रहता होगा!”

बुलबुल- “हाँ राजकुमारी जी,,, ऐसा ही करते हैं!”

तो बहुत ढूंढने पर उन्हे आखिर वहां पर एक बाबा मिल जाते हैं जो कई सालों से वहां पर अकेले ही रहते थे।

बुलबुल- “अच्छा हुआ जो बाबा जी मिल गए हमे, मैं तो डर ही गयी थी इतने सुनसान इलाके में!”

लव कुश- “हां हम भी!!”

तो सब बाबा के पास जाते हैं और बाबा उन सभी को उस बंजर इलाके के बारे में बता देते हैं।

करमजीत- “धन्यवाद बाबा जी!!”

करन- “तो चलो अब यहां से चलते हैं!”

वधिराज- “चलते चलते पूरा दिन निकल गया, ना जाने कब आएगा वो इलाका!”

टॉबी- “हां बहुत थक गया हूँ मैं तो!!”

कर्ण- “बस कुछ ही दूर चलते हैं, अंधेरा होने वाला है, हम आगे रुक कर आराम कर लेंगे!!’

आगे जाने पर उन्हें एक बहुत बड़ा पेड़ दिखता है, जिस के चारों तरफ बड़ी चौकी बनी थी!

बुलबुल- “वो देखो, आराम करने के लिए यह जगह एकदम सही है! है ना दोस्तों!”

चिड़िया- “हां बुलबुल!”

तो सभी उस चौकी पर आराम करते हैं और करण को नींद आ जाती है, और वह तेज चीख के साथ उठता है

टॉबी- “हे भगवान~~~~!! क्या हुआ करण!”

चिड़िया- “ये तो नींद में है!”

वधिराज- “करण उठो, कोई बुरा सपना देखा क्या??”

उन के उठाने पर कर्ण जाग जाता है और उस के पसीने छूट रहे थे

चिड़िया- “तुम ने क्या सपना देखा करण??

कर्ण- “मैने सपने में देखा कि एक अजीब सा प्राणी मेरी मां को मारने के लिए आया है। लेकिन मैं अपनी माँ को बचा नहीं पा रहा था, ना जाने मैं इतना लाचार कैसे हो गया??”

बुलबुल- “चिंता मत करो करण, तुम्हारी मां को कुछ भी नही होगा!”

चिड़िया- “हां यह तो सिर्फ एक बुरा सपना था!”

करन- “हाँ,,,लेकिन मुझे ही पता है, कि कितना दर्द भरा सपना था, मुझे अपनी माँ से मिलना होगा,,,!”

कर्मजीत- “अच्छा अगर तुम्हें अपनी मां की चिंता हो रही है तो यह ठीक है,,हम सब चलते हैं तुम्हारी मां से मिलने!”

चिड़िया- “हाँ करन,,,चलो, चलते हैं!”

वधिराज- “आप सब जल्दी मेरी पीठ पर बैठ जाओ,, समय बहुत कम है,, और सफर भी काफी लंबा है!”

और इस तरह सभी लोग फिर से लंबा सफर तय कर के करन की मां के घर पहुंच जाते हैं।

जब वे सभी वहां पहुंचते हैं तो देखते हैं कि करण की मां खाना पका रही है।

करण की मां- “अरे बच्चों!! तुम सब??”

बुलबुल- “देखा करन, मां बिल्कुल ठीक है!”

करण की मां करण को देख कर बहुत खुश होती है और उसे प्यार से गले लगा लेती है… वही करण को थोड़ा अजीब लग रहा था लेकिन फिर भी वह इन सब बातों को छोड़ कर अपनी मां को गले लगा देता है।

मां बहुत रोती है।

करन- “माँ आप ऐसे मत रो,,, मैं आ गया हूं ना,, और वैसे भी अब जल्द ही राजकुमारी जी को उन के श्राप से मुक्ति मिलने वाली है,,,

करमजीत- “हां और जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.. तो कर्ण हमेशा के लिए यहां आ जाएगा!”

मां- “अच्छा बेटा,,, बहुत भूख लगी होगी ना! चलो बच्चों तुम सब अब खाना खा लो !”

मां सभी को खाना परोसती है। सभी को खाना काफी पसंद आता है और सभी लोग बहुत खुश हो जाते हैं।

बुलबुल- “मां के हाथ का खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट होता है,,, है ना!”

करमजीत- “हां कुछ भी कहो, मां के हाथ के खाने जैसा कुछ नही होता!”

वधिराज- “हां मैं तो हमेशा मां के हाथ से बने खाने को याद किया करता था!”

टॉबी- “मैं भी बहुत याद करता था!’

माँ- “अच्छा तो फिर सिर्फ मेरे खाने को ही याद करते थे, मुझे नहीं टॉबी बेटा???”

टॉबी- “अरे नहीं मां ऐसी बात नहीं है!”

शुगर- “हा हा हा हा,,, भुक्कड़ कहीं के…!”

तब सभी लोग भोजन करने के बाद मां से बहुत सारी बातें करते हैं औऱ फिर सोने चले जाते हैं।

वहीं सुबह होती है तो उठने के बाद करन देखता है कि मां बगीचे में काम कर रही है। सभी लोग उठ जाते हैं और करण की मां सभी के लिए फल लाती है।

बुलबुल- “लाइए माँ मैं कर देती हूं….आप सुबह से कितना काम कर रही हैं!”

मां- “ठीक है बेटा,, तू तो मेरी बहुत चिंता करती है!”

कुश- “अच्छा है बुलबुल कर लो…कर लो,, थोड़ा घर का काम भी सीख लो!”

बुलबुल- “अरे मुझे आता है सब,,, तुम्हें क्या लगता है कुश, मुझे आता नहीं?”

लव (मजाक करते हुए)- “अरे बुलबुल तुझे याद है ना…कि तूने एक बार हम सब के लिए खीर बनाई थी और..

कुश- “और उस मे चीनी की जगह नमक डाल दिया था हा हा हा हा!”

बुलबुल- “अरे, क्या तुम लोग भी ना!”

लव- “और वो खीर करण ने फिर भी खा ली थी!”

कर्मजीत- “हमारा करन तो बहुत महान है!”

और सब लोग हंसने लगते हैं।

वहीं करन पता नहीं क्यों चुपचाप था।

तभी थोड़ी देर बाद सब नाश्ता कर लेते हैं।

करण- “माँ आज मेरा रामु काका के दुकान का मक्खन खाने का बहुत मन कर रहा है,,तो हम सभी वहां जाते हैं और और मक्खन खा कर आते हैं!”

माँ- “अरे बेटा इतना परेशान क्यों हो रहा है तू? मै ही बना देती हूं मक्खन!”

बुलबुल- “और क्या करन,,,मां के हाथ से बना हुआ मक्ख़न तो रामू काका की दुकान के मक्खन से भी अत्यधिक स्वादिष्ट होगा!”

करन- “नहीं बुलबुल ऐसी बात नहीं है दरअसल मैं चाहता हूं कि मां को थोड़ा आराम करने दिया जाए क्योंकि जब से हम लोग आए हैं मां बहुत काम कर रही हैं,,, और मैं नहीं चाहता कि वह हमारी वजह से और भी परेशान हो जाए!”

कर्मजीत- “हा करन,,, यह तो तुम ठीक कह रहे हो!”

करन- “क्यों माँ सही है ना?”

माँ- “हा बेटा,, क्यों नहीं,,,, जाओ जाओ,,, तुम लोग जा कर माखन खा कर आओ!”

करन- “ठीक है माँ,, कुछ देर बाद हम लोग जाते हैं!”

इस के बाद पता नहीं क्यों करण की मां थोड़ी परेशान सी दिखने लगती है।

खैर सभी दोस्त रामू काका की मक्खन की दुकान जाने के लिए निकल पड़ते हैं।

*** बीच रास्ते में ***

वधिराज- “क्या हुआ करण,, कुछ तो बात है, जो तुम हम से छुपा रहे हो??”

चिड़िया- “हां मुझे भी लग रहा है, चुपचाप है कल से!”

करमजीत- “बोलो करन, क्या हुआ!”

तभी करन चुपचाप खड़ा हो जाता है और अपने दाएं बाएँ देख कर आगे की तरफ भागने लगता है।

बुलबुल- “अरे भाग क्यों रहे हो?

टॉबी- “रुको करण!”

करमजीत- “ये आगे कहाँ भाग रहा है!”

टॉबी- “चलो हम जा कर देखते हैं!”

टॉबी भी करण के पीछे भागता है और बाकी दोस्त भी,
और तभी अचानक से आगे करण अपनी मां के पास रुक जाता है,,,!

करन- “माँ… आप यहां क्या कर रही हैं?”

माँ- “बेटा,,, वो?? मैं…??”

और तभी अचानक से करण को गुस्सा आ जाता है और वह छोटा खंजर निकाल कर उस के हाथ पर हमला कर देता है जिस से उस का हाथ कट कर नीचे गिर जाता है।

बुलबुल- “अरे.., करन…ये क्या?????”

चिडिया- “करनननननन!!”

उस की माँ दर्द से चिल्लाने लगती है!

कर्मजीत और वधिराज भी अपना खंजर निकाल लेते हैं।

करन (माँ से)- “तू मेरी मां नहीं है.. तू कोई और है,, जल्दी से बता तू कौन है?…वरना यहीं पर तेरी मौत निश्चित हो जाएगी!”

लेकिन मां जोर जोर से रोने लगे जाती है।

माँ- “बेटा ये तू कैसी बातें कर रहा है?? मैं तो तेरी ही मां हूं और तूने अपनी मां का यह हाल कर दिया?”

करन- “ढोंग मत कर, जल्दी बता है कौन तू??,, और बता कि मेरी मां कहां है?”

और तभी उस की मां एक चमगादड़ में बदल जाती है… जिस के पैर इंसानों जैसे हैं। यह देख कर सभी सावधान हो जाते हैं और उस चमगादड़ पर हमला करने लगते हैं।

करन (उसे पीटते हुए)- “अगर जान प्यारी है तो,, जल्दी बता कहां है मेरी मां?”

करमजीत- “ये तो जवाब ही नही दे रहा!”

वधिराज- “लेकिन यह मर गया तो तुम्हारी मां के बारे में कैसे पता लगेगा करण!”

कर्ण- “ये अपना मुंह नहीं खोलेगा, इसलिए हम इसे ऐसे ही नही जाने दे सकते, यह और खतरा ला सकता है

चमगादड़- “जितना चाहे मार लो, मैं कुछ नही बताऊंगा, भले मार दो मुझे!!”

तो करन गुस्से में उसे बहुत मारता है, लेकिन वह चमगादड़ एक शब्द भी नही बोलता और सब पर हमला करने लगता है।

बुलबुल- “आ~~~ये तो मार रहा है!”

लव कुश- “बचाओ~~~ …!!”

वधिराज- “लगता है आज ही इसका अंत होना लिखा है!!”

तभी वधिराज उस को पकड़ लेता है और मार देता है!

**अगले एपिसोड मे हम देखेंगे कि चमगादड़ तो मर चुका है, तो अब करन अपनी माँ के बारे में कैसे पता लगाएगा

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