Homeतिलिस्मी कहानियाँ38 – जादुई पेड़ | Jadui Ped | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

38 – जादुई पेड़ | Jadui Ped | Tilismi Kahaniya | Moral Stories

तो पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि वह चुड़ैल किस तरीके से गांव वालों को मार रही थी। लेकिन चिड़िया और बाकी लोगों की समझदारी से उस चुड़ैल को पकड़ लिया जाता है। और इस तरह चिड़िया रामू की जान भी बचा लेती है।

गांव वाले करण और उस के सभी मित्रों का शुक्रिया अदा करते हैं।

एक औरत- “धन्यवाद बच्चों , हमारी इतनी सहायता करने के लिए!”

बूढ़ा आदमी- “हां बच्चों तुम सब ने बहुत बड़ा अहसान किया है हम पर!!”

करण- “यह तो हमारा कर्तव्य था!!”

करमजीत- “हां आप सभी को हम ऐसे परेशानी में छोड़ थोड़ी ना सकते थे,,,!”

वधिराज- “हमे आप की सहायता कर के बहुत अच्छा लगा!!”

दूसरी औरत- “इसी खुशी में मैं तुम सब का मुंह मीठा करवाती हूँ!!”

लव- “हां हॉं जल्दी से ले आइये!”

कुश- “मजा ही आ जायेगा मिठाई खा कर तो!!”

वो औरत ढेर सारी मिठाई ले आती है और सभी लोग मिठाई खाते हैं।

एक बूढ़ी औरत- “मैं इन बच्चों का मेरे हाथ से मुंह मीठा करवाउंगी! जरा यहां तो आओ सब बच्चे!!”

करण और उस के साथी उस बूढ़ी औरत के पास जाते हैं और वो सब को अपने हाथ से मिठाई खिलाती है।

बुलबुल- “गांव वालों का इतना प्यार देख कर मेरी आँखों मे तो आंसू आ रहे हैं!”

शुगर- “हॉं बुलबुल, सच मे!!”

टॉबी- “ऐसे करो तुम दोनों अच्छे से रो लो! हा हा हा!!

लव- “हां फिर हम चुप करवा लेंगे बाद में!”

कुश- “हा हा हा!!”

चिड़िया- “अब हमें यहाँ काफी देर हो गयी है दोस्तों!!”

करण- “हां राजकुमारी जी, उस चुड़ैल से छुटकारा ना पाना होता तो हम कब के यहां से निकल जाते!”

करमजीत- “तो चलो अब और देर नहीं करने चाहिए

चिड़िया- “वधिराज , अब हमें कहां जाना है?”

वधिराज- “राजकुमारी जी, अब हमें आलोकपुर जाना है!”

करण- “अच्छा तो,,, यहां के लोगों से पूछ लेते हैं, हो सकता है .कि उन्हें आलोकपुर का रास्ता पता हो!”

करमजीत- “मैं पूछ कर आता हूँ!!”

तो करमजीत गांव वालों से आलोकपुर का रास्ता पूछने जाता है और थोड़ी देर में वापिस आता है।

करमजीत- “यहाँ तो किसी को भी आलोक पुर का रास्ता सही से पता नहीं है, मैंने सब से पूछ लिया।

तभी एक आदमी उन के पास आता है।

आदमी- “मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो आप को आलोकपुर का रास्ता बता सकता है, वह हमारे गांव से थोड़ी दूर दूसरे गांव में रहते हैं!”

करमजीत- “पर वो है कौन!”

आदमी- “वो हमारे गांव के बड़े ठाकुर के ही बेटे हैं लेकिन कुछ सालों से वह अलग ही दूसरे गांव में रहते हैं!”

लव- “अच्छा,,,, तो कृपया कर के हमे वहां का पता बताइए!”

वह आदमी उन सभी को रास्ता बता देता है और कुछ ही देर में सब उस गांव से चले जाते हैं।

चलते-चलते शाम हो जाती है।

टॉबी- “अरे करन शाम हो रही है….कब पहुंचेंगे ?”

करण- “हाँ टॉबी,,, तुम चिंता मत करो.. बस हम पहुंचने ही वाले हैं!”

करमजीत- “वो देखो, सामने एक बहुत बड़ा बंगला है, वही है शायद!”

वधिराज- “हां करमजीत, यह बंगला जरूर उसी आदमी का होगा!”

कुश- “हाँ वधिराज, यही है!”

लव- “अब ठाकुर का बेटा है, तो ऐसे आलीशान बंगले में ही रहता होगा!”

और सभी लोग उस बंगले की तरफ बढ़ते हैं। बाहर से बंगला काफी बड़ा था!

बुलबुल- “वाह कितना बड़ा बंगला है, लेकिन यहां पर तो कोई दिख ही नहीं रहा!”

वधिराज- “हां यही तो मैं भी देख रहा हूँ, इतना सुनसान लग रहा है यह बंगला!!”

चिड़िया- “लगता है यहाँ कोई रहता ही नही!!”

तभी थोड़ी देर बाद बाहर से एक आदमी उन के पास आता है।

आदमी- “आप कौन हैं और बंगले के बाहर क्या कर रहे हैं!”

करण- “हम बड़े ठाकुर जी के बेटे से मिलना चाहते हैं, हमे बताया गया था कि वो यहीं रहते हैं!!

आदमी- “जी हां मैं ही बड़े ठाकुर का बेटा वीर ठाकुर हूँ,,बताइए मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं!”

करण- “ओह अच्छा है कि आते ही आप से मिलना हुआ! मैं करण हूँ और ये मेरे साथी हैं!”

आदमी- “किस ने भेजा है तुम्हे!”

करमजीत- “हम बड़े ठाकुर साहब के गांव से आये हैं, वहीं के एक आदमी ने हमें आप का पता दिया था!”

वीर- “ठीक है, आप सब मेरे साथ बंगले के अंदर चलिये!!”

और इतना कह कर वे सभी को अपने बंगले में ले जाता है

वीर- “अब बताइये यहां कैसे आना हुआ!”

करन- “हम आलोकपुर गांव में जाना चाहते हैं, क्या आप हमें वहां का रास्ता बता सकते हैं!”

ठाकुर- “हां जरूर, परंतु आप सब वहां पर जाना क्यों चाहते हैं? वो रास्ता तो काफी मायावी है और वहां जाना खतरे से खाली नहीं होगा!”

वधिराज- “यह बात आप को कैसे पता?.. क्या आप भी वहां पर गए हैं?”

वीर ठाकुर जी थोड़ा सा घबरा जाते हैं।

वीर ठाकुर- “हाँ मै भी वहां गया था,,,!”

सुनहरी चिड़िया- “अच्छा परंतु क्यों???,, आप थोड़ा घबरा रहे हैं… कोई परेशानी है क्या?”

ठाकुर- “जी, दरअसल.. जैसा कि आप देख सकते हैं कि इतने आलीशान घर में मैं अकेला ही हूं..इस की एक बहुत बड़ी वजह है!”

बुलबुल- “कैसी वजह है ठाकुर साहब?”

ठाकुर- “मेरी पुत्री तनु के लिए मैंने अपने परिवार जनों का त्याग कर दिया,, क्यूंकि मेरी पुत्री को एक श्राप मिला है जिस के कारण रात के करीब 1:00 बजे वह अपना संतुलन खो बैठती है… महल वालों को लगा कि मेरी बेटी पागल हो गई है या फिर उस के ऊपर किसी प्रेत आत्मा का साया है… सभी लोग उसे वहां से कहीं दूर भेजने की मांग करने लगे क्योंकि उस की तबीयत दिन ब दिन खराब होती जा रही थी, इसलिए मैं अकेला अपनी पुत्री को ले कर यहां आ गया !”

कुश- “परंतु यह सब हुआ कैसे? आप की पुत्री की हालत खराब कैसे हो गयी”

ठाकुर- “दरअसल,, एक बार हम आलोकपुर गांव में शिकार करने के लिए गए थे और तभी शिकार सीखते वक्त मेरी पुत्री ने एक हिरण का शिकार कर दिया लेकिन जब वह हिरण के पास गई तो उसे पता चला कि वह कोई हिरन नहीं बल्कि एक साधु था.. जो वहां पर हिरण के रूप में आया हुआ था,, और उस साधु ने मरते वक्त मेरी पुत्री को श्राप दे दिया!”

करमजीत- “हे प्रभु,,, परन्तु अब आप की बेटी कहां है?”

वीर- “वो घर मे ही है , अपने कमरे में!!”

बुलबुल- “क्या हम उन से मिल सकते हैं ठाकुर साहब!!?”

वीर- “हां क्यों नही, मैं अभी उसे बुला कर लाता हूँ!!”

तो ठाकुर वीर अपनी पुत्री तनु को बुला कर ले आते हैं
और तनु उन लोगों को देख कर काफी खुश हो जाती है।

वीर- “तनु बेटा, ये सब बहुत दूर से आये हैं, ये हमारे मेहमान हैं!!”

तो तनु उन लोगों से बहुत प्रेम से बात करती है और उन के साथ समय बिताती है।

बुलबुल- “तनु क्या तुम हमे अपना बंगला दिखा सकती हो??”

लव कुश- “हां, हमे भी देखना है!”

टॉबी- “मुझे भी और शुगर को भी! है ना शुगर!’

शुगर- “हां टॉबी, लेकिन पहले तनु से तो पूछिये!’

तनु- “हां चलो मैं तुम्हे मेरा कमरा भी दिखाती हूँ और बंगला भी!!”

तो तनु उन सब को बंगला दिखाने के लिए ले जाती है।

करण- “देखिए ना राजकुमारी जी, इतनी परेशानी होने के बावजूद भी बेचारी तनु कितना मुस्कुरा रही है!”

करमजीत- “हां करण, सही कहते हो तुम, हमे उन की परेशानी का हल निकालना हीं होगा।!”

और तभी थोड़ी देर बाद , कर्ण और उस के साथी एक कमरे में विश्राम करने लगते हैं।।

बुलबुल- “तुम ने देखा बेचारी तनु कितनी खुश थी!”

टॉबी- “हाँ,,, वो बहुत प्यारी है,, हमें कुछ करना होगा!”

वधिराज- “परंतु इस का क्या हल हो सकता है?”

कर्मजीत- “आज रात उसके साथ जब कुछ होगा तो हमें समस्या को समझने का प्रयास करना होगा।”

चिड़िया- “हाँ,, कर्मजीत!”

और सभी लोग रात के 1:00 बजने का इंतजार करते हैं।

और थोड़ी देर बाद एक बज जाता है।

और जैसे ही एक बज जाता है और सब को अजीब डरावनी आवाजें सुनाई देने लगती है।

करमजीत- “लगता है तनु के साथ वो सब हो रहा है!!”

वधिराज- “हां चलो हम सब जा कर देखते हैं!”

सब वहाँ पहुंच कर तनु को देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं।

लव- “ये तनु बहुत अजीब सी हरकतें कर रही है!”

कुश- “देखो वो दीवार पर चढ़ रही है, और उस की आवाज बदल गयी है!”

बुलबुल- “और यहां तक कि उस के चेहरे का रंग भी बदल गया है।”

शुगर- “बहुत डरावना लग रहा है ये सब!”

टॉबी- “लगता ही नही कि ये वही तनु है!’

चिड़िया- “देखो वहाँ ठाकुर साहब जमीन पर बैठ कर रो रहे है!”

कर्मजीत- “हमे उन के पास जा कर उन्हें दिलासा देना चाहिए!!”

तो सब लोग ठाकुर वीर के पास जाते है

करन- “आप घबराइए मत ठाकुर साहब, सब ठीक हो जाएगा!”

और तभी करण गौर से तनु के चेहरे को देखता है,,

करण (खुद से)- “ये तनु के चेहरे में बीच बीच मे किसी और पुरुष की झलक दिखाई दे रही है, लगता है यह वही साधु होगा!”

ठाकुर- “पता नही मेरी बेटी कभी ठीक भी होगी या नही??’

करण- “जरूर होगी, मैं जा कर बात करता हूँ!’

तभी करन तनु के पास जाता है।

करण- “आप जो कर रहें हैं यह गलत कर रहे हैं,, कृपया कर के उसे माफ कर दीजिए,,,!”

यह सुनने के बाद तनु और भी भड़क जाती है और अपने बालों को नोंचने लगती है।

सभी लोग माहौल को समझने का प्रयास करते हैं परंतु समझ नहीं पाते हैं.. वहीं थोड़ी देर बाद तनु शांत हो जाती है और बिस्तर पर गिर जाती है।

अगली सुबह

करन- “तनु!! तुम बहुत परेशानी में हो और इस परेशानी का सिर्फ एक ही हल है…और हल ये है कि तुम याद करो,, क्या कोई ऐसी चीज है जो तुम को बार बार दिख रही है या फिर जब तुम्हे काफी अजीब लगता हो?”

तनु- “हाँ मुझे एक सपना आता है, मैं देखती हूं कि मैं अपने घर के बगीचे में खेल रही हूं और एक हिरण आ कर मुझे मार देता है,, मुझे बार-बार यही सपना आ रहा है!”

करन- “अच्छा,, परंतु सपने में वह आप को क्यों मार रहा है , क्या इस की कोई वजह है?”

तनु- “पता नहीं,,,!”

सुनहरी चिड़िया- “सोचने का प्रयास करो तनु…हो सकता है कि तुम्हारी परेशानी का जवाब इसी सपने में छुपा हो!”

ठाकुर- “हां बेटा…अच्छे से सोचो और फिर करण को बताओ!”

तनु काफी देर तक सोचती हैं और उसे कुछ याद आता है।

तनु- “हाँ, जब भी मै एक पौधे को छूती हूं तो वह हिरन गुस्सा हो जाता है और मुझे मारने को आता है!”

करन- “इस का तात्पर्य यह है कि उस पौधे में ही कोई राज छुपा है!”

बुलबुल- “हाँ,,, करन!”

तो सभी लोग बगीचे में जाते हैं। करन बगीचे में लगे पौधों को देखता है।

करण- “आखिर क्या हो सकती है वजह? हे ईश्वर,, मदद करो मेरी !!,

और तभी टॉबी एक पौधे को देख कर बहुत भौंकने लगता है।

करन- “लगता है,,, यहां पर ही कुछ है!”

करमजीत- “हां करण, सारे पौधों मे फूल लगे हुए हैं और एक पौधे में फूल नहीं लगा है।

वधिराज- “लगता है यह एक मायावी पौधा है, इसे हमें यहां से हटाना होगा!”

और जैसे ही करन उस पौधे को वहां से उखाड़ने लगता है , वहाँ एक जहरीला सांप आ जाता है।

ठाकुर- “हे प्रभु रक्षा करना!”

कर्मजीत- “चिंता मत करो, मैं कुछ करता हूँ!!”

वह सांप उन सभी को काटने का प्रयास करता है लेकिन तभी कर्मजीत गायब हो जाता है।

ठाकुर- “वहाँ कुछ झोले रखे हैं, उस मे कैद कर लो सांप को!!”

करमजीत अपनी सुझबुझ से उस सांप को पकड़ कर एक झोले में बंद कर देता है।

और मौका पा कर करण उस पौधे को जड़ से उखाड़ फेंकता हैं…और तभी वहां पर साधु की आत्मा उत्पन्न हो जाती है

साधु, “हम तुम सभी की बहादुरी से प्रसन्न हुए..तुम ने तनु का श्राप तोड़ दिया है,,, आज के बाद से उसे परेशान होना नहीं पड़ेगा…!”

यह सुन कर ठाकुर और उन की बेटी बहुत खुश हो जाते हैं और साधु को प्रणाम करते हैं।

तनु- “मुझे माफ कर दीजिएगा साधु महाराज.. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई थी और मेरा श्राप तोड़ने के लिए आप का बहुत-बहुत शुक्रिया!”

साधु- “शुक्रिया मेरा नहीं परंतु इन महान बालकों का करो… जिन्होंने बड़ी बहादुरी और बुद्धिमानी से तुम्हारे श्राप को तोड़ दिया!”

अब ठाकुर साहब बहुत खुश हैं और वहीं दूसरी ओर करण और उस के मित्र साधु को प्रणाम करते है।

साधु- “विजयी भवः!”

करण और उसके दोस्तों के इस मज़ेदार सफर में आगे भी बने रहिएगा हमारे साथ।

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