Homeतिलिस्मी कहानियाँ09 – मायावी बुढ़िया | Mayavi Budiya | Tilismi Kahaniya

09 – मायावी बुढ़िया | Mayavi Budiya | Tilismi Kahaniya

जयदेव ( खुश होते हुए): “हमने कर दिखाया करण, हमने कर दिखाया, अब जल्दी से बाबा के पास चलते हैं और अपने मित्रों को बचाते हैं।”

करण: “हां जयदेव, तुम सही कहते हो चलो चलते हैं, अब यहां से।”

तो दोनों मित्र बाबा के पास पहुंचते है, बाबा उन दोनों को देखकर काफी हैरान हो जाते हैं और उन्हें यकीन ही नहीं होता कि इन दो जवान युवकों ने उस खतरनाक जादू घड़ियाल को मार गिराया है। तो इसका मतलब यह था कि अब बाबा जानकी माया का श्राप तोड़ देंगे।

बाबा: “मैं तुम दोनों की वीरता की दाद देता हूं, तुम दोनों ने यह कार्य बड़े आसानी से कर दिखाया, ये कार्य तो आज तक कोई नहीं कर पाया था।”

तो बाबा अपनी आंखें बंद करते हैं और एक मंत्र पढ़ते हैं जिससे जनकी माया का श्राप टूट जाता है और वह शीशे से बाहर आ जाती है।

बाबा: “जाओ युवकों! जानकी माया अब आजाद ही गयी है।”

करण: “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबा जी!”

दोनों वहां से चले जाते हैं और जब वहां जाते हैं तो देखते हैं कि बलराम बहुत खुश है क्योंकि उसकी बहन को एक लंबे श्राप से छुटकारा मिल चुका था।

तो दोनों जैसे ही उसके घर में जाते हैं वह उसका बड़े आदर सम्मान से स्वागत करता है और सभी को भोजन करवाता है।

वहाँ पर विभिन्न प्रकार के भोजन को देखते हुए टॉबी बहुत खुश होता है।

टॉबी: “वाह, करण ! आज तो अत्यंत ही आनंद आ गया, बहुत स्वादिष्ट भोजन है।”

बलराम: “हाँ, टॉबी खाओ खाओ!”

तो सभी लोग खाना खा लेते हैं और उसके बाद

करण: ”ठीक है मित्र अब हमें यहां से चलना होगा।”

बलराम (एक अंगूठी करण को देते हुए): “यह लो करण, ये अंगूठी अपने पास रख लो, ये अंगूठी एक जादुई अंगूठी है जो कि चारों ओर रक्षा कवच उत्पन्न करती है।”

करण अंगूठी पहन लेता है और बलराम और उसकी बहन को अलविदा कहकर वहां से अपने मित्रों के साथ तांगे में बैठकर चला जाता है।

वह लोग रास्ते में आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक से उन्हें रास्ते में एक बूढ़ी औरत दिखाई देती है जोकि अपने ठेले में फल लेकर जा रही थी, उसके सारे फल जमीन पर गिर गए थे और वह अपने फलों को अकेली उठाने में असमर्थ हो रही थी।

बूढ़ी औरत: “मेरी मदद करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया बच्चों!”

तभी अचानक से बूढ़ी दादी को ना जाने क्या हो जाता है कि उनकी आंखों का रंग बदल जाता है और उनके बोलने का ढंग भी बदल जाता है। क्योंकि उस सुनहरी नीली चिड़िया की अंतर्शक्ति से वह उसी क्षण समझ जाती है कि कुछ तो गड़बड़ होने वाली है।

नीली चिड़िया (चिलाते हुए): “सभी लोग बच कर रहो, वो आप सभी पर हमला कर सकती हैं!”

कि तभी वह बूढ़ी दादी अचानक से बेकाबू सी हो जाती हैं और वह उस चिड़िया को पकड़ने के लिए आने लगती है लेकिन तभी पीछे से लव आ जाता है और चिड़िया को बचाने की कोशिश करता है।

उस बूढ़ी दादी को गुस्सा आता है और लव को पकड़कर उसे उठा लेती है औऱ भागने लगती है। तभी जल्दी से सभी लोग तांगे पर बैठते हैं और उस बूढ़ी दादी का पीछा करने लगते हैं।

उस बूढ़ी दादी को देखकर साफ पता चल रहा था कि वह किसी के वश में है और यह सब वह स्वयं नहीं कर रही है क्योंकि उनकी उम्र काफी ज्यादा थी लेकिन उस समय वह बहुत तेजी से लव को लेकर दौड़ रही थी।

सुनहरी चिड़िया: “मुझे तो पहले ही आभास हो गया था कि कुछ गलत होने वाला है करण, अब हमें एक-एक कदम ध्यान से रखना होगा और हो ना हो ये कार्य अवश्य उसी जादूगर का है।”

तो थोड़ी देर पश्चात वह बूढ़ी दादी गायब हो जाती हैं और करण अपना तांगा रोक लेता है। उन्होंने जहां पर अपना तांगा रोका हुआ था वहां पर सिर्फ जंगल ही जंगल था लेकिन वहां जंगल के बीच एक अत्यंत पुरानी झोपड़ी थी।

जयदेव (उस झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए): “लगता है कि वह बूढ़ी दादी लव को लेकर वहीं गई होंगी। चलो जाकर देखते हैं!”

करण: “विदुषी! तुम राजकुमारी चंदा और टॉबी के साथ तांगे मे ही हमारा इंतजार करो, हम लोग वहां देख कर आते है।”

और इतना कहने के बाद जयदेव, कुश और करण झोपड़ी के अंदर जाते हैं। तो वो लोग जैसे ही अंदर जाते हैं वो देखते हैं कि वह बूढ़ी दादी लव को एक नुकीली लकड़ी से उसके पेट पर वार करके मारने ही वाली थी।

कुश (जोर से चिल्ला कर): “छोड़ दो मेरे भाई! को नहीं तो मैं तुम्हे छोडूंगा नहीं”

और कुश की आवाज सुनकर वह बहुत जोर जोर से हंसने लगती है। उस बूढ़ी दादी ने लव को बहुत मारा था इसलिए वह बेहोश हो गया था।

वहीं दूसरी ओर कुश अपने भाई की रक्षा करने के लिए उस बूढ़ी औरत पर हमला करने लगता है क्योंकि अगर वह ऐसा ना करता तो वह लव को उस दिन मार डालती।

लेकिन वह बूढ़ी औरत के अंदर ना जाने अचानक से इतनी ताकत कहां से आ गई थी कि वह कुश को एक ही वार मे हरा देती है और उसे नीचे पटक देती है।

ये देखकर जयदेव और करण भी उसका सामना करने लगते हैं लेकिन वह सभी पर भारी पड़ रही थी।

बूढ़ी औरत जयदेव के हाथ में वार कर देती है जिससे उसे चोट लग जाती है। हालात को नियंत्रण में ना होता हुआ देखकर करण कुछ सोचने लगता है और तभी उसे याद आता है कि बाबा ने उसे बहुत सारे ओम की पवित्र माला दी थीं।

तो वह शीघ्र ही अपनी जेब से एक माला निकलता है और बड़ी चतुराई से पीछे से आकर उन्हें वो माला पहना देता है।
उस समय वह बूढ़ी औरत जयदेव से लड़ने में व्यस्त थी इसलिए उन्हें पता नहीं चला कि करण कब उनके पीछे आया और उसने उसे वह माला उन्हें पहना दी।

तो जैसे ही वो माला बूढ़ी औरत के गले में जाती है वो वहीं पर उसी क्षण बेहोश हो जाती है जिससे यह बात पक्की हो जाती है कि उन पर कोई जादुई साया था।

करण: “लव की जान बच गई है और कुश तुम रो मत। अपने भाई को लेकर शीघ्र ही तांगे के पास चले जाओ। हम शीघ्र ही आते हैं।”

तो वहीं दूसरी और जयदेव और करण वहीं पर रुक कर उस बूढ़ी औरत के होश में आने का इंतजार करते हैं।

जयदेव: “हमें इन बूढ़ी दादी को ऐसे यहां पर छोड़कर नहीं जाना चाहिए, इन्हे होश में आने दो करण ततपश्चात् हम इन्हें इनके घर में छोड़कर अपनी यात्रा पर पुन: निकल पड़ेंगे!”

करण: “अवश्य जयदेव!”

तो अगले एपिसोड में हम ये जानेंगे कि कही वह बूढ़ी औरत फिर से उन लोगों पर हमला करेगी या नही?

FOLLOW US ON:
08 - समुंद
10 - राक्ष