संत मलूक दास का भ्रम दूर करना – साखी श्री गुरु तेग बहादर जी
चलते-चलते गुरु तेग बहादर जी मानकपुर नगर के पास जा ठहरे| इस गाँव में एक वैष्णव संत मलूक दस रहते थे| वह गुरु जी के दर्शन करना चाहता था, परन्तु वह यह निश्चय करके बैठारहा कि गुरु जी अगर अंतर्यामी है, तो स्वयं मुझे बुलाकर दर्शन देंगे|
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अन्तर्यामी गुरु मलूक दास कि प्रतिज्ञा जान गये| उन्होंने एक सिख को कहा कि मलूक दास के डेरे जाकर उसे पालकी में बिठाकर हमारे पास लाओ| एक सिख ने मलूक दास को जाकर बताया कि गुरु जी आपको याद कर रहे है| पालकी में बैठ जाओ, हम आपको ले चलते है|
गुरु तेग बहादर जी का ऐसा हुक्म सुनकर मलूक दास बहुत प्रसन्न हुआ| यह पालकी में बैठकर गुरु जी के पास पहुँच गया| पालकी से उतकर उसने गुरु को माथा टेका और फिर यह दोहरा उच्चारण किया-
मलूका पापी खेड को भगति ण जानी तोहि|| भगति लिखी थी और को प्रभू धोखा दे मोहि||४७||
गुरु जी ने कहा-
सुनि मलूक हरि के भगति नहि राखो मन दरोहि || भगति लिखी थी अवर को करि किरपा दई तोहि||४९||
गुरु जी के वचन सुनकर और दर्शन करके म्ल्लुक दास आनंदमय हो गया| उसने प्रार्थना कि आप मेरे डेरे चले| मैं भी आपकी सेवा करके जनम सफल करना चाहता हूँ| उसकी प्रार्थना सुनकर गुरु जी ने डेरे पे जाना स्वीकार किया|
मलूक ने भोजन तैयार करके गुरु जी के आगे रख दिया| उसने यह भी प्रार्थना की कि महाराज! पहले मैं पत्थर के ठाकरों को भोग लगाया करता हूँ| आज आप प्रत्यक्ष ठाकर मेरे पास बैठकर भोग लगा रहे हो|
गुरु जी अब तो मेरा भ्रम भी दूर हो गया है| अब मैं प्रत्यक्ष ठाकर की पूजा ही किया करूँगा| मलूक दास पास एक रात का विश्राम और वार्तालाप करके गुरु जी दूसरे दिन प्रातकाल ही मलूक दास को खुशी देकर आगे की ओर चल पड़े|
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