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गुरु वचन मानने में ही सुख – साखी श्री गुरु तेग बहादर जी

श्री गुरु तेग बहादर जी कैथल विश्राम करके बारने गाँव आ गये| इस गाँव के बाहर ही ठहर कर गुरु जी ने पुछा कि यहाँ कोई गुरु नानक देव जी का सिख रहता है? उसने कहा महाराज! यहाँ जिमींदार सिख रहता है| गुरु जी ने उसे बुलाने के लिए कहा| यह आदमी जाकर जिमींदार को बुला लाया|  

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उसने आकर गुरु जी के चरणों पर माथा टेका| उसने यह भी प्रार्थना की कि मेरे घर आकर विश्राम करो| तब तक मैं अपनी खेती कि कूत (मिनती) करा आऊँ| गुरु जी ने उसे कहा कि आप हमारे साथ घर चले| तुम्हारी खेती का गुरु रखवाला है| तुम कूत कराने ना जाओ|

जिमींदार ने वचन को काटते हुए कहा कि महाराज! आप चले जाये, हम शीघ्र ही आ जायेंगे| ऐसा कहता हुआ वह सिख वहाँ से चल दिया|

जब उसके खेत कि कूत हुई तो पहले वह दो सौ विघा थी, अब वह सौ विघा हो गई| उसके शरीको ने कहा कि कूत करने वाला रिश्वत खा गया है| कूत दुबारा होनी चाहिए| जब खेती कि दुबारा कूत हुई तो वह सौ विघा ही निकली| इस बात से उसे गुरु जी पर विश्वास हो गया कि उसे वचन नहीं काटना चाहिए था| उसने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका| उसने सारी बात गुरु जी को बताई|

गुरु जी प्रातकाल उठकर स्नान किया और उसे वचन किया कि आज से आप तम्बाकू पीना छोड़ दो व सिक्ख संगतो कि स्सेवा किया करो| तुम्हारा परलोक सुधर जायेगा| तुम्हारा वंश जब तक हुक्के का त्याग करके खेती करेगा तब तक बहुत बढेगा| परन्तु यदि हूका तम्बाकू पीना आरम्भ कर देगा, तो कंगाल हो जायेगा| सारा धन भी जाता रहेगा| गुरु जी का वचन मानकर जिमींदार ने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका और हुक्का पीना छोड़ दिया|

भाई संतोख जी लिखते है कि यह हमने अपनी आँखों से देखा कि जब उसकी कुल का एक आदमी हुक्का पीने लगा तो वह अति गरीब हो गया|

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