गुरु जी का चालीसा काटना – साखी श्री गुरु हरिगोबिन्द जी
बादशाह जहाँगीर के साथ गुरु जी के मेल मिलाप बढ़ गए| ऐसा देखकर चंदू बहुत तंग था| वह उस मौके की तलाश में था जब किसी भी तरह मेल मिलाप को रोका जाये या तोड़ा जाये| एक दिन जहाँगीर को बुखार हो गया| चंदू ने एक ज्योतिषी को बुलाया|
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उसे पांच सौ रूपये भी दिए और साथ साथ यह भी सिखाया कि बादशाह को कहो कि आपके घर घोर कष्ट की घड़ी आई है| जिसके कारण और दुःख मिलने की संभावना है| इसका उपाय जल्दी करना चाहिए|
जब ज्योतिषी ने यह बात बताई तो राजे ने पूछा इसका क्या उपाय करना चाहिए? ज्योतिषी ने सब कुछ वैसा ही बोल दीया जैसे चंदू ने सिखाया था| उसने कहा कि जो परमात्मा का नाम लेने वाला प्रभू का प्यारा बंदा, जो लोगों में पूजनीय हो अगर वह 40 दिन ग्वालियर के किले में एकांत बैठकर आपके निमित माला फेरे और प्रार्थना करे तो ही आपका कष्ट दूर हो सकता है वरना नहीं|
राजे ने जैसे ही यह बात सुनी उसने अपने अहिलकारो को कहा ऐसे गुणों वाले बंदे को जल्दी लाओ| इस समय चंदू जो वही पास बैठा था झट से बोल पड़ा जहाँपनाह! श्री गुरु हरिगोबिंद जी इस काम के लिए योग्य हैं| अगर आप उनको प्रार्थना करे तो वह आपकी प्रार्थना को स्वीकार कर लेंगे और किले में चले जाएगें और आपका कष्ट भी टल जाएगा|
बादशाह जो सहमा बैठा था वह झट से ही उसकी बात मान गया| उसने गुरु जी को बुलाया और सारी बात बताई| उसने यह भी कहा कि आप मेरी भलाई के लिए एक चालीसा ग्वालियर के किले में बिताए| गुरु जी जो कि अन्तर्यामी थे भविष्य की वार्ता को जानते थे| इस बात को स्वीकार करते हुए पांच सिखों सहित ग्वालियर के किले में प्रवेश के गए|
ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने यह दिन 11 वैशाख संवत 1674 का लिखा है| जहाँगीर, जिसका गुरु जी के साथ प्यार था किले के दरोगा हरिदास को लिखा कि गुरु जी मेरे लिए किले में चालीसा काटने आ रहे इनको किसी प्रकार की कोई तकलीफ न होने देना| इनके हुकम का पालन करना|
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