लंगड़े की टांग ठीक करनी – साखी श्री गुरु अमर दास जी
तलवंडी का रहने वाला एक लंगड़ा क्षत्री सिख गुरु जी के भोजन के लिए बड़ी श्रधा के साथ दही लाता था| एक दिन रास्ते में गाँव के चौधरी ने उसकी बैसाखी छीन ली और मजाक उड़ाने लगा कि रोज दुखी होकर अपने गुरु के लिए दही लेकर जाता है, तेरा गुरु तेरी टांग नहीं ठीक कर सकता?
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सिख ने कहा मेरा गुरु बेपरवाह हें, एक क्षण में सब कुछ ठीक कर सकता है, अगर ना चाहे तो कुछ भी नहीं| उनकी अपनी इच्छा है, वे ठीक भी कर सकते है, और नहीं भी|
मैंने खुद उनको कुछ नहीं कहना| अपनी बैसाखी लेकर भगत सिख वहा से निकल पड़ा| वहा गुरु जी जी थाल रखकर प्रेमी कि प्रतीक्षा कर रहें थे| दही लेकर गुरु जी ने भोजन खाया और लेट पहुँचने का कारण भी पूछा| सिख ने सारी बात गुरु जी के आगे रख दी कि किस प्रकार रास्ते में आते हुए चौधरी ने उसकी बैसाखी छीन ली और कहा कि अगर तेरा गुरु समर्थ है तो तेरी टांग क्यों नहीं ठीक कर सकता?इतना सुनते ही गुरु जी उस सिख से कहने लगे कि शाह हुसैन के पास चला जा कि मुझे गुरु जी ने यहाँ आपके पास टांग ठीक कराने के लिए भेजा है|
गुरु जी का ऐसा वचन आते ही गुरुसिख उसी और ही चल दिया जहाँ गुरु जी ने भेजा था| शाह हुसैन जी के पास पहुंचकर सिख ने वहाँ आने का कारण बताया कि आप मेरी लंगडी टांग ठीक कर दे| हुसैन ने एकदम हाथ में मोटा डंडा उठा लिया और गुस्से से कहने लगा कि यह से भाग जा नहीं तो तेरी दूसरी टांग भी तोड़ दूँगा व लंगड़ा बना दूँगा| वह सिख डंडे कि मार से डरता हुआ जल्दी से उठकर भाग पड़ा| भागते-२ उसकी दूसरी टांग भी ठीक हो गई| तब वह पीछे मुड़कर हुसैन जी के चरणों में गिर पड़ा और धन्यवाद करने लगा| हुसैन जी कहने लगे कि करने वाले गुरु जी आप है मगर बदनामी मुझे देते है| मेरी तरफ से गुरु जी को नमस्कार करनी| गुरु जी कि ऐसी रहमत को देखकर हँसते-२ गुरसिख गुरु घर कि और चल दिया|
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