हवन कुंड के स्थान पर अमृत तीर्थ – साखी श्री गुरु अमर दास जी
एक दिन श्री रामदास जी को गुरु अमरदास जी ने अपने पास बिठा लिया व बताया कि सतयुग में इक्ष्वाकु जी, जो अयोध्या के पहले राजे थे उन्होंने इस स्थान पर यज्ञ कराया था|
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जहां अब भजनों का स्थान है| इस भारी यज्ञ पर ब्रह्मा, विष्णु और शिवाजी, इन्द्र सभी देवते व ऋषि मुनि आदि आए थे| सभी बहुत प्रसन्न हुए| वे राजे का प्रेम व श्रद्धा देखकर हर्षित हो रहे थे|
विष्णु जी ने राजे इक्षावकु को वर मांगने को कहा| उन्होंने प्रार्थना की कि महाराज! अगर मुझ पर प्रसन्न हुए हैं तो मुझे यह वरदान दो कि इस हवनकुण्ड के स्थान पर एक तीर्थ हो| जो संसार के जीवों का कल्याण करे व पापों का नाश करने वाला है| आप का निवास इस हवनकुण्ड के चारों तरफ ही हो| आप जैसे अब विराजमान है, वैसे ही सदैव विराजमान रहे| विष्णु जी ने कहा – हे राजन! आपने यह वरदान संसार के जीवों की भलाई के लिए मांगा है| यहां बहुत भारी तीर्थ प्रगट होगा| वह पापों का नाश करेगा व जीवों का उद्धार होगा| मेरी ज्योति शक्ति सदा ही यहां आवास करेगी|
यह प्रसंग बताकर गुरु अमरदास जी शांत हो गए| फिर एकदम कहने लगे कि अब आपके हाथों इस के शीघ्र प्रगट होने का समय आ चुका है|
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