प्रेमा क्षत्रि का कोहड़ दूर करना – साखी श्री गुरु अंगद देव जी
एक क्षत्रि प्रेमा जिसे कोहड़ था, उसकी कोई देखभाल करने वाला नहीं था| गुरु जी की महिमा सुनकर गोइंदवाल आ गया|
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वह गुरु जी के निवास स्थान से कुछ दूर बैठ कर “मैं गया कछोटा लभा जी” मैं गया कछोटा लभा की रट लगाने लगा| सिक्खों ने गुरु जी को जाकर क्षत्रि प्रेमा की बात कह सुनाई| गुरु जी ने कहा – जो कुछ वह कहता है उस का भाव यही है की मेरा शरीर रूपी कपड़ा जो कुष्ट रोग से चला गया था, अब मुझे मिल गया है| गुरु जी ने सिक्खों को आज्ञा दी कि इस कुष्ट व्यक्ति को हमारे स्नान किए गड्डे में स्नान करवा कर नए मजीठ रंग के कपड़े में लपेट कर पास लाओ| गुरु जी ने उसके पास आते ही उसका मुंह कपड़े से बाहर निकाल दिया व अपनी कृपा दृष्टि से उसे देख कर आरोग्य कर दिया| उसका शरीर स्वस्थ हो गया|
गुरु जी ने उसका नाम मुरारी रख दिया| गुरु जी ने कहा हम उस गुर सिक्ख पर प्रसन्न होंगे जो अपनी कन्या का विवाह इस व्यक्ति से करेगा| तब गुरु जी की बात सुनकर शीहै उपल क्षत्रि ने अपनी मथो नामक पुत्री का विवाह उस क्षत्रि से कर दिया| साथ-साथ गुरु जी ने यह वचन किया कि जो पुरुष मथो मुरारी का नाम लेगा उसके सब कार्य सिद्ध होंगे| इस वरदान से मथो की माता प्रसन्न हो गई| इस प्रकार मुरारी को सत्यनाम स्मरण का उपदेश देकर उसका लोक-परलोक संवार दिया|