जुलाही को आरोग्य करना – साखी श्री गुरु अंगद देव जी
एक दिन अमरदास जी गुरु जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये| गिरने कि आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है?
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जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिन समधियों का पानी ढ़ोता फिरता है| जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! में घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ| तू पागल है जो इस तरह कह रही हो|
उधर इनके वचनों से जुलाही पागलों की तरह बुख्लाने लगी| गुरु अंगद देव जी ने दोनों को अपने पास बुलाया और पूछा प्रातःकाल क्या बात हुई थी, सच सच बताना| जुलाहे ने सारी बात सच सच गुरु जी के आगे रख दी कि अमरदास जी के वचन से ही मेरी पत्नी पागल हुई है| आप किरपा करके हमें क्षमा करें और इसे अरोग कर दे नहितो मेरा घर बर्बाद हो जायेगा|
गुरु जी ने अमरदास जी को बारह वरदान देकर अपने गले से लगा लिया और वचन किया कि आप मेरा ही रूप हो गये हो| इसके पश्चात गुरु अंगद देव जी ने अपनी कृपा दृष्टि से जुलाही की तरफ देखा और उसे अरोग कर दिया| इस प्रकार वे दोनों गुरु जी की उपमा गाते हुए घर की ओर चाल दिये|
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