श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – जीवन परिचय
वह प्रगटिओ मरद अगंमड़ा वरियाम अकेला || वाहु वाहु गोबिंद सिंह आपे गुर चेला || १७ || (भाई गुरदास दूजा)
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श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पोरव सुदी सप्तमी संवत 1723 विक्रमी को श्री गुरु तेग बहादर जी के घर माता गुजरी जी की पवित्र कोख के पटने शहर में हुआ|
मुर पित पूरब कीयसि पयाना || भांति भांति के तीरथि नाना || जब ही जात त्रिबेणी भए || पुन दान निन करत बितए || तही प्रकास हमारा भयो || पटना सहर विखे भव लयो ||
(दशम-ग्रंथ: बिचित्र नाटक ७ वां अध्याय)
माता नानकी जी ने अपने पौत्र के जन्म की खबर देने के लिए एक विशेष आदमी को चिट्ठी देकर अपने सुपुत्र श्री गुरु तेग बहादर जी के पास धुबरी शहर भेजा| गुरु जी ने चिट्ठी पड़कर जब राजा राम सिंह को खुशी भरी खबर सुनाई तब राजा ने अपने फौजी बाजे बजवाए| तोपों की सलामी दी तथा गरीबों को दान दिया| चिट्ठी लेकर आने वाले सिख को गुरु जी ने बहुत धन दिया उसका लोक परलोक संवार दिया|
इसके पश्चात गुरु जी ने माता जी को चिट्ठी लिखी कि माता जी! इस समय हम कामरूप के पास धुबरी शहर ठहरे हुए हैं| राजा राम सिंह का काम संवार कर जल्दी वापस आप के पास पटने आ जाएगे| गुरु नानक साहिब आपके अंग-संग हैं| आपने चिंता नहीं करनी| साहिबजादे का नाम “गोबिंद राय” रखना| यह आशीष और धैर्य पूर्ण चिट्ठी पड़कर माताजी और परिवार के अन्य सदस्य बहुत खुश हुए|
जो कोई भी भिखारी और प्रेमी माता जी को बधाई देने घर आता माता जी उसको धन, वस्त्र और मिठाई आदि से प्रसन्न करके घर से भेजते| माता जी ने साहिबजादे के सोने व खेलने के लिए एक सुन्दर पंघूड़ा बनवाया जिसमे साहिबजादे को लेटाकर माता जी लोरियाँ देती व पंघूड़ा हिलाकर मन ही मन खुश होती| आपके हाथों के कड़े, पाँव के कड़े और कमर की तड़ागी के घुंघरू खनखनाते रहते| माता नानकी जी बालक गोबिंद राय को स्नान कराकर सुंदर गहने व कपड़े पहनाते|
पटने से आनंदपुर साहिब बुलाकर श्री गुरु तेग बहादर जी ने अपने सुपुत्र श्री गोबिंद राय जी को घुड़ सवारी, तीर कमान, बन्दूक चलानी आदि कई प्रकार की शिक्षा सिखलाई का प्रबंध किया| बच्चो के साथ बाहर खेलते समय मामा कृपाल जी को आपकी निगरानी के लिए नियत कर दिया| इस प्रकार श्री गुरु तेग बहादर जी के किए हुए प्रबंध के अनुसार आप शिक्षा लेते रहे|
दशमेश जी इस प्रथाए अपनी आत्म कथा बचित्र नाटक में लिखते हैं –
मद्र देस हम को ले आए || भांति भांति दाईयन दुलराऐ || कीनी अनिक भांति तन रछा || दीनी भांति भांति की सिछा ||
(दशम ग्रंथ बिचित्र नाटक, ७ वा अध्याय)
प्राग राज के निवास समय श्री गोबिंद राय जी के जन्म से पहले एक दिन माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादर जी (Shri Guru Tek Bahadar Ji) को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र इश्वर का अवतार होगा| मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी| बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख कि प्राप्ति हो|
अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है| हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी ब्रह्मज्ञानी पोत्र देंगे|
गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए| माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल पुरुष कि आराधना करते|
गुरु जी कि नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई| उसुने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की| जिसे स्वीकार करके श्री दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया|
श्री दसमेश जी अपनी जीवन कथा बचितर नाटक में लिखते है –
|| चौपई ||
मुर पित पूरब कीयसि पयाना || भांति भांति के तीरथि नाना || जब ही जात त्रिबेणी भए || पुन्न दान दिन करत बितए || १ || तही प्रकास हमारा भयो || पटना सहर बिखे भव लयो || २ ||
(दशम ग्रन्थ: बिचित्र नाटक, ७वा अध्याय)
पहला विवाह
संवत 1734 की वैसाखी के समय जब देश विदेश से सतगुरु के दर्शन करने के लिए संगत आई और लाहौर की संगत में एक सुभीखी क्षत्री जिसका नाम हरजस था उन्होंने अपनी लड़की जीतो का रिश्ता श्री (गुरु) गोबिंद राय जी के साथ कर दिया| विवाह की मर्यादा को 23 आषाढ़ संवत 1734 को पूर्ण किया| आज कल यह स्थान “गुरु का लाहौर” नाम से प्रसिद्ध है|
साहिबजादे
1 चेत्र सुदी सप्तमी मंगलवार संवत 1747 को साहिबजादे श्री जुझार सिंह जी का जन्म हुआ| 1 माघ महीने के पिछले पक्ष में रविवार संवत् 1753 को साहिबजादे श्री जोरावर सिंह जी का जन्म हुआ| 1 बुधवार फाल्गुन महीने संवत् 1755 को साहिबजादे श्री फतह सिंह जी का जन्म हुआ|
दूसरा विवाह
संवत 1741 की वैसाखी के समय जब देश विदेश से सतगुरु के दर्शन करने के लिए संगत आई और लाहौर की संगत में एक कुमरा क्षत्री जिसका नाम दुनीचंद था उन्होंने अपनी लड़की सुन्दरी का विवाह सात बैसाख श्री (गुरु) गोबिंद राय जी के साथ कर दिया|
साहिबजादे
23 माघ संवत 1743 को साहिबजादे श्री अजीत सिंह जी का जन्म पाऊँटा साहिब में हुआ|
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