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सालस राए को निहाल करना – साखी श्री गुरु नानक देव जी

सालस राए को निहाल करना

गुरु जी मरदाने को साथ लिए चल रहे थे तो मरदाने ने कहा, गुरु जी मुझे बहुत भूख लगी है|

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गुरु जी ने कहा – मरदाना! तीन कोस पर एक नगर है, वहां जी भर कर खा लेना| मरदाने ने कहा – महाराज! हमारे पास तो धनराशि भी नहीं जो खर्च करके खा ले| गुरु जी ने अपने पांव से रेत को टटोल कर एक कीमती लाल निकाला व शहर में जाकर इसे बेचकर जरूरत की वस्तुएं लाने को कहा|

मरदाना उस लाल को जौहरी के पास बेचने के लिए ले गया| जौहरी उस बहुमूल्य लाल को देखकर मरदाने के साथ गुरु जी के पास आ गया| श्रद्धा से गुरु जी को माथा टेका व कहने लगा कि यह बहुमूल्य, कीमती लाल तो आपकी कृपा से मैंने पहली बार देखा है| आप लालों के लाल है, जिनके दर्शन करके मैं धन्य हो गया| गुरु जी ने वहां शब्द का उच्चारण भी किया|

गुरु जी ने फरमाया यह झूठे लाल एकत्रित करने का कोई फायदा नहीं| आप अपने आप को पहचानो जो असली लाल है| इस के भावार्थ को समझकर सालस राए ने गुरु जी की बड़े प्रेम व श्रद्धा से सेवा की व सत्यनाम का उपदेश लेकर धन्य हुआ| उसने गुरु जी के लिए धर्मशाला बनवाई और अधरके को उसका महंत थापा|

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