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हमजा गौंस को नसीयत देनी – साखी श्री गुरु नानक देव जी

हमजा गौंस को नसीयत देनी

श्री गुरु नानक देव जी ने सिआलकोट शहर में आकर बेरी के वृक्ष के नीचे अपना डेरा लगा लिया| इस स्थान के पास ही एक फकीर जिसका नाम हमजा गौंस था, मकबरे के हजूरे में बैठा था| वह यही कहता था कि यह शहर झूठों का है और इस शहर को मैंने श्राप से नष्ट कर देना है|

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उसकी वजह यह थी कि एक क्षत्रि ने मन्नत मांगी कि अगर मेरे घर सन्तान होगी तो मैं पहला लड़का हमजा गौंस को दूंगा| पुत्र-रत्न प्राप्त होने पर उस क्षत्रि ने हमजा गौंस को पुत्र देने से इन्कार कर दिया| क्रोधित होकर उसने शहर को नष्ट करना शुरू कर दिया|

गुरु जी उसके मकबरे के पास पहुंचे| उसके मुरीदों ने यह कहकर गुरु जी को जाने से रोक दिया कि जब तक यह शहर नष्ट नहीं हो जाता तब तक हमजा गौंस न सूर्य देखेंगे न ही किसी स्त्री-पुरुष के दर्शन करेंगे|

गुरु जी यह वचन करके अपने ठिकाने बेरी के नीचे वापिस आ गए कि आज दोपहर को ही पीर सूर्य देख लेंगे और उनका प्रण भी टूट जाएगा| पीर के मठ का गुबंज खरबूजे को फांक की तरह तिड़-तिड़ करके नीचे तक फट गया और सूर्य की किरणें पीर के ऊपर जा पड़ी| जिस समय पीर ने देखा कि गुम्बज फट गया है तो शीघ्र ही दरवाजा खोलकर बाहर आ गया| गुरु जी के वचन से अपना प्रण टूटा देखकर पीर शीघ्र ही गुरु जी के पास आ गया| गुरु जी बोले, हे पीर जी! एक अपराधी के बदले आप सारे शहर को नष्ट कर रहे हो| यह अच्छी बात नहीं| दरवेशों को कहर की बजाय दया की नजर रखनी चाहिए| गुरु जी के वचन सुनकर गौंस को गलती का अहसास हुआ| उसने गुरु जी से क्षमा मांगी| साथ ही साथ सब की भलाई का प्रण लिया| जिस स्थान पर बैठकर गुरु जी ने हमजा गौंस को उपदेश दिया था उस स्थान पर गुरु जी का गुरुद्वारा बेर साहिब प्रसिद्द है|

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