HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 94)

किसी नगर में एक सेठ रहा करता था| वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था| उसके दरवाजे पर जो भी आता था, वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देता था और दिल खोलकर उसकी मदद करता था|

मैंने एक साल ही शांति से बिताया होगा कि एक बार फिर मेरे पाँव में खुजली होने लगी इसके बड़े सीधे माने थे कि मेरा दिल यात्रा पर जाने के लिए बेकरार होने लगा था| मैंने तैयारी की और एक दिन अपनी छठी यात्रा पर रवाना हो गया|

दूसरे महायुद्ध की बात है। एक जापानी सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गया था, काफी रक्त बह चुका था, ऐसा लग रहा था, वह कुछ ही क्षणों का मेहमान है। एक भारतीय सैनिक की मानवता जागी, शत्रु है तो क्या?

पांडिचेरी के श्रीअरविंद आश्रम के एक कक्ष में बैठा जब मैं माताजी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था, तब मेरे मस्तिष्क में विचारों का तूफान उठ रहा था, जिनकी ज्योति के आश्रम का कण-कण आलोकित था|

पहले वाली स्थितियों में ही बोर होकर मैं एक बार फिर पाँचवी यात्रा पर निकल पड़ा, जो मेरी पहले वाली चारों यात्राओं से भयानक रही| मगर इस बार मैं किसी किराए के जहाज़ पर नही गया बल्कि मैंने अपना ही एक जहाज़ खरीद लिया| इस यात्रा में मैंने अपने कुछ खास सौदागर साथियों को भी अपने साथ ले लिया| हमारा जहाज़ इस बार पूरब की ओर बढ़ा|

किसी समय वर्षा के मौसम में वर्षा न होने से प्यास के मारे हाथियों का झुंड अपने स्वामी से कहने लगा — हे स्वामी, हमारे जीने के लिए अब कौन- सा उपाय है? छोटे- छोटे जंतुओं को नहाने के लिए भी स्थान नहीं है और हम तो स्नान के लिए स्थान न होने से मरने के समान है।

इस बार भी वैसा ही हुआ, जैसे अक्सर मेरे साथ होता था| कुछ दिन घर पर बीवी-बच्चों के साथ गुजारने के बाद मेरे मन में फिर से सफ़र की हुड़क उठने लगी और दिल के हाथों मजबूर होकर मुझे अपनी चौथी यात्रा पर निकलना पड़ा|

एक व्यापारी था| उसने व्यापार में खूब कमाई की| बड़े-बड़े मकान बनाए, नौकर-चाकर रखे, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उसके दिन फिर गए| व्यापार में घाटा आया और वह एक-एक पैसे के लिए मोहताज हो गया| जब उसकी परेशानी सहन से बाहर हो गई, तब वह एक साधु के पास गया और रोते हुए बोला – “महाराज, मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मुझे शांति मिले|”