HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 47)

पाण्डवों को एकचक्रा नगरी में रहते कुछ काल व्यतीत हो गया तो एक दिन उनके यहाँ भ्रमण करता हुआ एक ब्राह्मण आया। पाण्डवों ने उसका यथोचित सत्कार करके पूछा, “देव! आपका आगमन कहाँ से हो रहा है?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “मैं महाराज द्रुपद की नगरी पाञ्चाल से आ रहा हूँ। वहाँ पर द्रुपद की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर के लिये अनेक देशों के राजा-महाराजा पधारे हुये हैं।” पाण्डवों ने प्रश्न किया, “हे ब्राह्मणोत्तम! द्रौपदी में क्या-क्या गुण तथा विशेषताएँ हैं?”

अपने आप को धर्म और भगवान से ऊँचा मानने वाला हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था । वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें । पर हिरण्यकश्यप के पुत्र ने उसे भगवान मानने से साफ इनकार कर दिया । बहुत यातना व अत्याचार के बाद भी वह वह स्वयंभू अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद से अपने को भगवान कहलाने में असफल रहा । हार कर अन्त में उसने प्रह्लाद को जान से मारने का तरीका सोचा ।

किसी नगर में जीर्णधन नाम का एक वैश्य रहता था| कुछ ऐसा हुआ कि उसका सारा धन नष्ट हो गया और वह सर्वथा निर्धन हो गया| इससे जहां उसको कष्ट होता था वहां उसको ग्लानि भी होने लगी थी|

मद्र देश के राजा अश्वपति ने पत्नि सहित सन्तान के लिये सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री होने पर वर प्राप्त किया । सर्वगुण देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में अश्वपति के घर कन्या के रूप मे जन्म लिया ।

किसी वन में एक बहुत बड़ा वृक्ष था| उसमें बगुलों के अनेक परिवार निवास करते थे| उसी वृक्ष के कोटर में एक काला सर्प भी रहता था| अवसर मिलने पर वह बगुलों के उन बच्चों को मारकर खा जाया करता था जिनके पंख भी नहीं नहीं उगे होते थे| इस प्रकार बड़े आनन्दसे उसका जीवन व्यतीत हो रहा था| यह देखकर बगुले बड़े खिन्न रहते थे, किन्तु उनके पास कोई उपाय नही था| तब दु:खी होकर एक दिन एक बगुला नदी किनारे जाकर बैठ गया| रो-रोकर उसकी आँखें लाल हो गई थी|

एक मछुआरा एकदम तड़के नदी की ओर जाल लेकर जा रहा था| नदी के पास पहुँचने पर उसे आभास हुआ कि सूर्य अभी पूरी तरह नहीं निकला है और चारों और कुछ ज्यादा ही अंधकार फैला हुआ है|

द्रोणाचार्य ने पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों के शस्त्रास्त्र विद्या की परीक्षा लेने का विचार किया। इसके लिये एक विशाल मण्डप बनाया गया। वहाँ पर राज परिवार के लोग तथा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित हुये। सबसे पहले भीम एवं दुर्योधन में गदा युद्ध हुआ। दोनों ही पराक्रमी थे। एक लम्बे अन्तराल तक दोनों के मध्य गदा युद्ध होता रहा किन्तु हार-जीत का फैसला न हो पाया। अन्त में गुरु द्रोण का संकेत पाकर अश्वत्थामा ने दोनों को अलग कर दिया।

किसी नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे| एक बार पापबुद्धि ने विचार किया कि वह तो मुर्ख भी है ओर दरिद्र भी| क्यों न किसी दिन धर्मबुद्धि को साथ लेकर विदेश जाया जाए| इसके प्रभाव से धान कमाकर फिर किसी दिन इसको भी ठगकर सारा धन हड़प कर लिया जाए|