HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 35)

एक बार एक सैनिक घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जंगल जा रहा था| रास्ते में डाकुओं की एक बस्ती पड़ी| एक घर के दरवाजे के बाहर लटके पिंजरे में बैठा एक तोता चिल्ला उठा- “भागो, पकड़ लो, इसे मार डालो, इसका घोड़ा और माल-असबाब सब छीन लो|

एक समय की बात है| अचानक ओलों की वर्षा से सारी फसल नष्ट हो गई| कुरू प्रदेश में एक गाँव में हाथीवान रहते थे| इसी गाँव में एक निर्धन ऋषि उशस्ति चाकृायण अपनी पत्नी के साथ रहने लगे| गाँव में कहीं अनाज का दाना नहीं मिला|

उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय ‘चिंतामणि’ प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस ‘मणि’ को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।

एक बार की बात है| बंगाल के सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर गर्मी की छुट्टियों में अपने गाँव आए| वह रेल की तीसरी श्रेणी के डिब्बे में बैठे थे| गाँव के स्टेशन पर पहुँचकर वह रेल से उतरे| उनके ही डिब्बे से कॉलेज का एक छात्र भी उतरा| स्टेशन के बाहर पहुँचकर वह कॉलेज का विद्यार्थी अपन सूटकेस जमीन पर रखकर चिल्लाने लगा-

पाँचों पाण्डव – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव – पितामह भीष्म तथा विदुर की छत्रछाया में बड़े होने लगे। उन पाँचों में भीम सर्वाधिक शक्तिशाली थे। वे दस-बीस बालकों को सहज में ही गिरा देते थे। दुर्योधन वैसे तो पाँचों पाण्डवों ईर्ष्या करता था किन्तु भीम के इस बल को देख कर उससे बहुत अधिक जलता था। वह भीमसेन को किसी प्रकार मार डालने का उपाय सोचने लगा। इसके लिये उसने एक दिन युधिष्ठिर के समक्ष गंगा तट पर स्नान, भोजन तथा क्रीड़ा करने का प्रस्ताव रखा जिसे युधिष्ठिर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

यह घटना प्राचीन समय की है| देवताओं और दानवों का युद्ध चलता रहता था| एक बार की लड़ाई में देवों ने दानवों को हरा दिया| इस पर देवता घमंड में भर गए| उन्होंने सोचा कि यह विजय हमारी ही है|