HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 120)

आसिफ शेख कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी था | उसने ढेरों दौलत जमा कर रखी थी | उसका व्यापार आस-पास के देशों में भी फैल चुका था | वह कभी-कभी उन देशों की यात्रा भी किया करता था | जब उसका बेटा जवान हो गया तो वह पिता के व्यापार में हाथ बंटाने लगा |

एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न-तीनों भाइयों ने माता सीता जी से मिलकर विचार किया कि हनुमान जी हमें रामजी की सेवा करने का मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं| अतः अब रामजी की सेवा का पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान जी के लिए कोई भी काम नहीं छोड़ेंगे| ऐसा विचार करके उन्होंने सेवा का पूरा काम आपस में बाँट लिया|

एक गांव में एक बूढ़ा किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था | उसका एक छोटा-सा खेत था | उस खेत में ही कुछ सब्जियां बोकर और उन्हें बेचकर किसान अपना व अपनी पत्नी का गुजारा करता था |

एक राजकुँअर थे| स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे| वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे| उनमें से पांच-सात बालक राजकुँअर के मित्र हो गये| वे मित्र बोले-‘आप राजकुँअर हो, राजगद्दी के मालिक हो| आज आप प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभाएंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है, नहीं तो क्या है?’ राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है|

प्राचीन काल में अतवाक नाम के एक महर्षि थे| बहुत समय तक उनकी पत्नी के गर्भ से कोई भी पुत्र पैदा नहीं हुआ, इस कारण वे बड़े दुखी रहते थे, लेकिन फिर विधाता की इच्छा को ही अंतिम सत्य मानकर अपने भाग्य पर संतोष कर लेते थे|

एक बाबा जी कहीं जा रहें थे| रास्ते में एक खेत आया| बाबा जी वहाँ लघुशंका के लिये (पेशाब करने) बैठ गये| पीछे से खेत के मालिक ने उनको देखा तो समझा कि हमारे खेत में से मतीरा चुराकर ले जाने वाला यही है; क्योंकि खेत में से मतीरों की चोरी हुआ करती थी| उसने पीछे से आकर बाबा जी के सिर पर लाठी मारी और बोला-‘हमारे खेतो में मतीरा चुराता है?’

एक बार द्वारिका निवासी यदुकुल के कुछ लड़के पानी ढूंढ़ते हुए एक पुराने कुएं के पास पहुंचे| वह कुआं घास और फैली हुई बेलों से पूरी तरह ढका हुआ था| लड़कों ने घास हटाकर देखा तो कुएं में उन्हें एक बड़ा गिरगिट दिखाई पड़ा| उस गिरगिट को उन्होंने बाहर निकालना चाहा और इसी इच्छा से उन्होंने कुएं से रस्सी फेंकी, लेकिन गिरगिट पर्वत की तरह भारी हो गया और वे कितना भी जोर लगाकर उसे नहीं खींच सके|

एक वैश्या थी| उसके मन में विचार आया कि मेरा कल्याण कैसे हो? अपने कल्याण के लिये वह साधुओं के पास  गयी| उन्होंने कहा कि तुम साधुओं का संग करो| साधु त्यागी होते हैं, इसलिये उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा| फिर वह ब्राह्मणों के पास गयी तो उन्होंने कहा कि साधु तो बनावटी है, पर हम जन्म से ब्राह्मण हैं| ब्राह्मण सबका गुरु होता है|